द वायर के ख़िलाफ़ कार्रवाई का मामला अजीब है। कह सकते हैं कि मेटा पर द वायर की रिपोर्ट भी अजीब थी। लेकिन मीडिया संस्थान ने अपनी ग़लती मानी, माफ़ी भी मांगी और फिर उन स्टोरी को वापस लिया। द वायर ने उस रिपोर्ट को तैयार करने वाले और कथित तौर पर साक्ष्यों से छेड़छाड़ करने वाले शोधकर्ता देवेश कुमार के ख़िलाफ़ केस भी दर्ज कराया। तो फिर सवाल है कि जब मीडिया संस्थान ने अपनी ग़लती मान ली तो फिर पुलिस ने अचानक छापे क्यों मारे? द वायर के संपादकों के मोबाइल, आईपैड, लैपटॉप जैसे उपकरणों को जब्त क्यों किया गया? क्या इसके लिए नियमों का पालन किया गया? सवाल यह भी है कि उस रिपोर्ट को तैयार करने में तकनीकी मदद करने वाले और साक्ष्यों से छड़छाड़ करने के आरोपी के उपकरण क्यों नहीं जब्त किए गए?