द वायर के ख़िलाफ़ कार्रवाई का मामला अजीब है। कह सकते हैं कि मेटा पर द वायर की रिपोर्ट भी अजीब थी। लेकिन मीडिया संस्थान ने अपनी ग़लती मानी, माफ़ी भी मांगी और फिर उन स्टोरी को वापस लिया। द वायर ने उस रिपोर्ट को तैयार करने वाले और कथित तौर पर साक्ष्यों से छेड़छाड़ करने वाले शोधकर्ता देवेश कुमार के ख़िलाफ़ केस भी दर्ज कराया। तो फिर सवाल है कि जब मीडिया संस्थान ने अपनी ग़लती मान ली तो फिर पुलिस ने अचानक छापे क्यों मारे? द वायर के संपादकों के मोबाइल, आईपैड, लैपटॉप जैसे उपकरणों को जब्त क्यों किया गया? क्या इसके लिए नियमों का पालन किया गया? सवाल यह भी है कि उस रिपोर्ट को तैयार करने में तकनीकी मदद करने वाले और साक्ष्यों से छड़छाड़ करने के आरोपी के उपकरण क्यों नहीं जब्त किए गए?
द वायर के संपादकों पर छापे, उपकरण जब्त करने का मक़सद क्या?
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- 2 Nov, 2022
मेटा पर द वायर की रिपोर्ट को भले ही वापस ले लिया गया है, लेकिन इस मामले में जो कार्रवाई हो रही है उस पर विवाद हो गया है। सवाल है कि जब मीडिया संस्थान ने आरोप को मान लिया तो ऐसी अचानक कार्रवाई क्यों?

द वायर के संपादकों के मोबाइल, आईपैड, लैपटॉप जैसे जो उपकरण जब्त किए गए हैं क्या उससे उनके सूत्रों की पहचान का खुलासा होने का ख़तरा नहीं है? क्या न्यूज़ वेबसाइट की खोजी पत्रकारिता और उनकी रिपोर्टों पर असर नहीं पड़ेगा? ये सवाल इसलिए कि द वायर उस कंसोर्टियम का हिस्सा है जिसने पेगासस जैसे मामलों में जाँच रिपोर्ट प्रकाशित की। पेगासस एक सैन्य-ग्रेड स्नूपिंग सॉफ़्टवेयर है जिसका कथित तौर पर सरकार द्वारा विरोधियों की जासूसी करने के लिए उपयोग किया जाता है।