भारत में हुकूमत चला रही बीजेपी इन दिनों गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जोर आजमाइश कर रही है। दोनों राज्यों के सियासी हालात देखने के बाद समझ आता है कि 182 विधानसभा सीटों वाले गुजरात में बगावत का कहीं कोई शोर नहीं है जबकि 68 सीटों वाले हिमाचल प्रदेश में 16 सीटों पर पार्टी के नेता बगावत पर उतर आए हैं और उन्होंने चुनाव में पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ नामांकन भर दिया है।
इन नेताओं को मनाने में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के पसीने छूट गए हैं। 29 अक्टूबर को नामांकन वापस लेने का अंतिम दिन है और अगर पार्टी अपने बगावती नेताओं को मैदान से हटाने में सफल नहीं रही तो उसे हिमाचल प्रदेश की सत्ता गंवानी भी पड़ सकती है।
गुजरात में बीजेपी मुख्यमंत्री बदलने के साथ ही पूरी कैबिनेट भी बदल चुकी है लेकिन बावजूद इसके असंतोष का कोई बड़ा स्वर नहीं सुनाई देता। जबकि हिमाचल प्रदेश बीजेपी में पिछले साल हुए उपचुनाव में मिली हार के बाद से ही नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया था।
जेपी नड्डा के साथ ही प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना, सह प्रभारी संजय टंडन और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर लगातार बीजेपी के असंतुष्ट नेताओं को मनाने में जुटे हैं।
सवाल इस बात का है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात में इतने बड़े बदलावों के बाद भी जब बगावत का कहीं कोई शोर नहीं है तो छोटे से राज्य हिमाचल प्रदेश में जेपी नड्डा सियासी हालात क्यों नहीं संभाल पा रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश में चंबा, इंदौरा, धर्मशाला, बिलासपुर सदर, मंडी सदर, सुंदरनगर, नालागढ़, किन्नौर, फतेहपुर, बंजार और कुल्लू आदि सीटें ऐसी हैं जहां पर अपने नाराज नेताओं को मनाने में पार्टी को खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
नड्डा के नेतृत्व पर सवाल
जिस प्रदेश से बीजेपी जैसी ताकतवर और बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आते हैं, उस छोटे से प्रदेश में इतनी बड़ी बगावत होने से निश्चित रूप से नड्डा के नेतृत्व पर भी सवाल खड़े होते हैं। हिमाचल प्रदेश में जबरदस्त गुटबाजी भी है और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और जेपी नड्डा के खेमों में टिकट बंटवारे को लेकर लंबी खींचतान चली है।
जेपी नड्डा अनुभवी राजनेता हैं और युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने के अलावा हिमाचल में विधायक और कैबिनेट मंत्री रहने के साथ ही केंद्र सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं। लेकिन फिर भी उनके राज्य में बीजेपी नेता बगावत पर उतारू हैं।
सवाल यह है कि हिमाचल प्रदेश में इतने बड़े पैमाने पर बगावत से क्या बीजेपी के सत्ता में वापसी करने की संभावनाओं पर असर नहीं पड़ेगा। जेपी नड्डा के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ नामांकन करने वाले नेताओं को समझा-बुझाकर नामांकन वापस लेने के लिए तैयार करना और उन्हें पार्टी प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार में लगाने की है।
देखना होगा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के गृह राज्य में पार्टी के कार्यकर्ता क्या उनके निर्देशों का पालन करेंगे? क्या नड्डा हिमाचल बीजेपी के बगावती नेताओं को मना पाएंगे?
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