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ये प्लाज्मा थेरेपी क्या है जिसमें कोरोना इलाज में उम्मीद की किरण दिख रही है?

कोरोना बीमारी का अब तक न तो टीका बना है और न ही इलाज के लिए कोई दवा है। फिर इलाज कैसे हो? इसी उलझन में कई तरह के उपचारों में लोगों को उम्मीद दिख रही है। कोरोना के मरीजों को मलेरिया वाली दवा देना भी ऐसी ही एक उम्मीद भर है। ऐसी ही उम्मीद की किरण अब प्लाज्मा थेरेपी में दिख रही है। तो ये प्लाज्मा थेरेपी क्या है और कितना कारगर है?

प्लाज्मा थेरेपी को आसान तरह से ऐसे समझें। कोरोना का पक्के तौर पर इलाज फ़िलहाल नहीं है। अभी तक जो पक्का है वह यह है कि आदमी का शरीर ही उस दुश्मन वायरस से लड़ रहा है। शरीर में इम्यून सिस्टम होता है और यही उस दुश्मन वायरस से लड़ता है। इम्यून सिस्टम यानी बीमारियों से लड़ने की शरीर की क्षमता। शरीर के ख़ून में यह क्षमता यानी रोग प्रतिरोधी क्षमता विकसित होती है। आसान भाषा में कहें तो शरीर राज्य है तो इम्यून सिस्टम उसका सैनिक। जब वायरस, बैक्टिरिया या फंगस जैसा कोई दुश्मन बाहर से हमला करता है तो यह सैनिक बचाव में उतर आता है। कोरोना वायरस से लड़ाई में अधिकतर मरीज़ों में यह सैनिक वायरस को ख़त्म कर दे रहा है और कुछ मामलों में शरीर हार जा रहा है और मौत हो जा रही है। 

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मरीज़ों में वायरस को ख़त्म करने का मतलब है कि शरीर का इम्यून सिस्टम उस वायरस से लड़ना अच्छी तरह जान जाता है और उस वायरस को ख़त्म करने के लिए ख़ुद को तैयार कर लेता है। अब यहीं पर लोगों को उम्मीद की किरण दिखती है। यदि इस वायरस से लड़ने में सक्षम इम्यून सिस्टम को कोरोना वायरस से संक्रमित दूसरे मरीज़ को दे दिया जाए तो? अब दूसरे व्यक्ति में जिस प्रक्रिया से रोग प्रतिरोधी क्षमता को दिया जाता है उसे ही प्लाज्मा थेरेपी कहते हैं।

प्लाज्मा एक गैस की तरह की चीज होती है। ख़ून से उसके मूल पदार्थ निचोड़ कर उसे प्लाज्मा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इस प्लाज्मा में ठीक हो चुके कोरोना वायरस मरीज के ख़ून में से निचोड़ी गई रोग प्रतिरोधी क्षमता भी शामिल होती है। इसी प्लाज्मा को दूसरे कोरोना पीड़ित मरीज़ के शरीर में डाला जाता है।

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यानी यह ठीक उस तरह से है जिसमें एक राज्य के सैनिक यदि तीर-भाले से ही लड़ने में सक्षम हों और दुश्मन गोला-बारूद से हमला कर दे तो वे सैनिक सुरक्षा देने में असफल भी हो सकते हैं। लेकिन यदि गोला-बारूद से हमले का मुक़ाबला करने वाले सैनिक को उस राज्य को दे दिया जाए तो वे सैनिक बेहतर तरीक़े से निपट सकते हैं और दुश्मन को हराने की उम्मीद ज़्यादा हो जाती है। प्लाज्मा भी ठीक उसी तरह से है जिसमें कोरोना वायरस से लड़ने में सक्षम रोग प्रतिरोधी क्षमता को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में डाल दिया जाता है। 
हालाँकि अभी तक यह साफ़ नहीं है कि प्लाज्मा थेरेपी का कितना फ़ायदा होगा या फिर यह सफल होगा भी या नहीं, इसका कोई ठोस आधार अब तक नहीं मिला है। इसके लिए दिल्ली में ट्रायल शुरू हो चुका है।

दिल्ली के एक निजी मैक्स हॉस्पिटल में दो मरीज़ों- पिता और पुत्र पर प्लाज्मा थैरेपी का इस्तेमाल किया गया। दोनों की हालत गंभीर थी और दोनों वेंटिलेटर पर थे। डॉक्टरों का कहना है कि इलाज के दौरान 70 वर्षीय पिता की तो मौत हो गई है, लेकिन पुत्र की सेहत में सुधार है। कोरोना से ठीक हो चुकी एक महिला ने इन्हें प्लाज्मा डोनेट किया था। डॉक्टर का कहना है कि एक व्यक्ति के डोनेट करने पर दो लोगों को इस प्लाज्मा से इलाज किया जा सकता है।

अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सरकारी अस्पतालों में इसका ट्रायल करने जा रहे हैं और इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर से हरी झंडी भी मिल गई है। अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि उनको उम्मीद है कि इससे इलाज संभव हो सकेगा और मरीज़ ठीक हो जाएँगे।

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अमित कुमार सिंह
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