हरियाणा सरकार के एक फ़ैसले से हंगामा खड़ा हो गया है। फ़ैसला है रोज़गार में आरक्षण का। रोज़गार भी सरकारी नहीं, प्राइवेट। और आरक्षण भी किसी जाति, धर्म या आर्थिक आधार पर नहीं, बल्कि राज्य में रहनेवालों को। राज्य सरकार ने यह फ़ैसला तो किया अपने लोगों की भलाई के लिए या उन्हें खुश करने के लिए। वे खुश हुए या नहीं इसका पता तो चुनाव में लगेगा। और उनकी कितनी भलाई हुई इसका पता लगने में भी अभी काफी वक़्त लग सकता है, लेकिन फिलहाल तो इस फैसले से हंगामा खड़ा हो गया है। खासकर हरियाणा में जिन कंपनियों की फैक्ट्रियाँ या दफ्तर हैं उनमें गंभीर चिंता फैल गई है।

उद्योग और विकास के पैमाने पर हरियाणा देश के सबसे उन्नत राज्यों में रहा है, लेकिन इस वक़्त बेरोज़गारी बहुत बड़ी फिक्र है। सेंटर फ़ॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई के ताज़ा आँकड़ों के मुताबिक़, जहाँ पूरे देश में बेरोज़गारी की दर फरवरी के महीने में 6.5 प्रतिशत थी, वहीं हरियाणा में यह 26.4% पर थी। यानी देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी हरियाणा में ही है।
सरकार ने यह क़ानून बना दिया है कि हरियाणा में प्राइवेट कारोबार में भी 50 हज़ार रुपए महीने से कम तनख्वाह वाली नौकरियों में 75 प्रतिशत पर सिर्फ हरियाणा के ही लोग रखे जा सकेंगे। विधानसभा में तो यह विधेयक पहले ही पास हो चुका था, लेकिन अब 28 फरवरी को इस पर राज्यपाल ने दस्तखत कर दिए हैं।
हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में यह वादा किया था कि उनकी सरकार बनी तो वो 75 फ़ीसदी नौकरियाँ हरियाणा के लोगों के लिए रिज़र्व करवाएंगे।