मोदी सरकार द्वारा संसद में लाए गए कृषि विधेयकों का उत्तर भारत के दो राज्यों हरियाणा और पंजाब में जोरदार विरोध हो रहा है। विरोध यहां तक आ पहुंचा है कि इस मुद्दे पर बीजेपी की पुरानी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया है। इसके बाद एक दूसरी सहयोगी जेजेपी से सवाल पूछा जा रहा है कि आख़िर वह कब बीजेपी से नाता तोड़ेगी क्योंकि वह हरियाणा में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रही है।
जून में जब मोदी सरकार ने इन कृषि अध्यादेशों को संसद के मॉनसून सत्र में लाने का एलान किया था, तभी से हरियाणा और पंजाब में इनके ख़िलाफ़ चिंगारी सुलग रही थी। किसानों ने रणनीति बनाई और 10 सितंबर को भारतीय किसान यूनियन के नेतृत्व में इन अध्यादेशों के ख़िलाफ़ हरियाणा के कुरूक्षेत्र के पीपली नेशनल हाईवे पर जाम लगा दिया। इसके बाद उनकी पुलिस से भिड़ंत हुई थी। प्रदर्शनकारी किसानों ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के पुतले भी फूंके थे।
तेज़ होगा आंदोलन
पुलिस ने इसे लेकर किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी के ख़िलाफ़ कई मुक़दमे दर्ज कर दिए। लेकिन चढ़ूनी का कहना है कि अगर इन अध्यादेशों को रद्द करने की उनकी मांग नहीं मानी गई तो 20 सितंबर को राज्य की सभी सड़कों को जाम कर दिया जाएगा।
तब भी जेजेपी को हरियाणा में लोगों ने जमकर घेरा था और पूछा था कि किसानों की राजनीति करने वाली यह पार्टी इन अध्यादेशों पर बीजेपी का साथ क्यों दे रही है। इसके अलावा किसानों पर लाठीचार्ज को लेकर लोगों में बहुत ग़ुस्सा था और उन्होंने उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाते हुए उन्हें सबक सिखाने की बात कही थी।
जेजेपी को कुर्सी का मोह?
लेकिन शायद जेजेपी कुर्सी नहीं छोड़ना चाहती। इसलिए जेजेपी की छात्र विंग इनसो के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिग्विजय सिंह चौटाला ने एक चैनल के साथ बातचीत में कहा कि ये अध्यादेश किसानों के पक्ष में है। हालांकि उन्होंने किसानों पर हुए लाठीचार्ज को ग़लत बताया। इसके बाद दुष्यंत चौटाला को भी किसानों पर हुए लाठीचार्ज की निंदा करनी पड़ी।
राजनीतिक नुक़सान होने की आशंका को भांपते हुए जेजेपी की ओर से किसानों पर हुए लाठीचार्ज को लेकर माफ़ी भी मांगी गई और कहा गया कि वह हमेशा से किसानों के साथ खड़ी है।
जिस तरह के दबाव में जेजेपी हरियाणा में थी, वैसा ही दबाव शिअद पर पंजाब में पड़ रहा था। किसान आंदोलन की राह पर थे और शिअद को समझ नहीं आ रहा था कि अब वह करे तो क्या करे। जेजेपी की तरह शिअद का भी मुख्य आधार किसान ही हैं। ऐसे में शिअद ने मोदी सरकार में मंत्री हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफ़ा करवा दिया।
जेजेपी पर हमलावर कांग्रेस
इसके बाद, कांग्रेस ने जेजेपी पर जबरदस्त दबाव बना दिया। पार्टी के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने जेजेपी से पूछा कि जब पंजाब के सारे दल किसानों के पक्ष में एक होकर अध्यादेशों के विरोध में साथ आ सकते हैं तो हरियाणा के बीजेपी-जेजेपी नेता क्यों किसानों से विश्वासघात कर रहे हैं?
हुड्डा का सीधा निशाना जेजेपी पर ही था क्योंकि इतना वे भी जानते हैं कि हरियाणा बीजेपी के नेता मोदी सरकार के किसी फ़ैसले का विरोध नहीं करेंगे। इसलिए जेजेपी पर दबाव बढ़ गया। इसके अलावा हाल ही में प्रमोट कर पार्टी के महासचिव बनाए गए रणदीप सिंह सुरजेवाला ने सीधा जेजेपी को निशाने पर लिया।
सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा- ‘दुष्यंत जी, हरसिमरत के इस्तीफ़े के नाटक को ही दोहरा कर छोटे सीएम के पद से इस्तीफ़ा दे देते। पद प्यारा है, किसान प्यारे क्यों नहीं?’ सुरेजवाला ने कहा कि जेजेपी सरकार की पिछलग्गू बन किसान की खेती-रोटी छिनने के जुर्म की भागीदार है।
इनेलो से मिल रही चुनौती
दुष्यंत के चाचा और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला भी इस मुद्दे पर ख़ासे मुखर हैं। उन्होंने इन अध्यादेशों को किसानों के साथ धोखा बताया है और किसानों पर हुए लाठीचार्च के ख़िलाफ़ 24 सितम्बर से प्रदेश के सभी 14 ज़िलों में प्रदर्शन करने की बात कही है।
जेजेपी का जन्म ही इनेलो से हुआ है। उसे इस बात का डर सता रहा है कि उस पर कहीं किसान विरोधी होने का ठप्पा न लग जाए और उसके समर्थक इनेलो के साथ न चले जाएं।
खट्टर सरकार जेजेपी पर निर्भर
दुष्यंत चौटाला ने हालात को देखते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से बात की है और वह पार्टी के शीर्ष नेताओं से भी इसे लेकर विचार कर रहे हैं। अगर जेजेपी सरकार से समर्थन वापस ले लेती है तो खट्टर सरकार की विदाई तय है। क्योंकि 90 सदस्यों वाली विधानसभा में बीजेपी के पास 40 जबकि जेजेपी के पास 10 सीटें हैं। बहुमत के लिए 45 विधायकों की ज़रूरत है।
जेजेपी के अंदर घमासान
जेजेपी के अंदर भी बवाल चल रहा है। उसके विधायक राम कुमार गौतम लगातार दुष्यंत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले हुए हैं। इसके अलावा एक और विधायक देवेंद्र बबली ने पार्टी नेतृत्व में बदलाव की मांग की है और दावा किया है कि पार्टी के अधिकांश विधायकों में नाराज़गी है।
कुल मिलाकर जेजेपी अपने अंदर चल रहे घमासान के कारण और इन अध्यादेशों को लेकर क्या रूख़ अपनाए, इसे लेकर बेहद परेशान है। लेकिन इतना तय है कि अगर किसान आंदोलन तेज़ हुआ तो जेजेपी की मुसीबतें बढ़ना तय है और इससे उसे जो राजनीतिक नुक़सान होगा, शायद उसकी भरपाई करना उसके लिए बहुत मुश्किल होगा।
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