हरियाणा के नए मुख्यमंत्री नायब सैनी की सरकार ने विधानसभा में विश्वास मत हासिल कर लिया है। बुधवार को हरियाणा विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पास किया गया।
मुख्यमंत्री नायब सैनी ने सदन में विश्वासमत रखा तो जननायक जनता पार्टी या जेजेपी के सभी 10 विधायक सदन छोड़ बाहर चले गए। एक निर्दलीय बलराज कुंडू ने भी सदन की कार्यवाही छोड़ दी।
विश्वास प्रस्ताव को देखते हुए जेजेपी ने व्हिप जारी किया था कि उसके सभी 10 विधायक वोटिंग के दौरान गैरहाजिर रहें। वहीं विधानसभा में विपक्ष ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हरियाणा आए और मनोहर लाल खट्टर की खूब तारीफ की थी, लेकिन उसके बाद जो चीरहरण हुआ, वैसा तो द्रौपदी के साथ भी नहीं हुआ था।
नायब सैनी सरकार ने बुधवार को विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था। सुबह 11 बजे से विधानसभा का सत्र शुरू हुआ था। विश्वास मत पेश किए जाने से पहले हरियाणा के सीएम बने नायब सैनी ने कहा है कि उनके पास 48 विधायकों का समर्थन है। इनमें 7 निर्दलीय विधायक शामिल हैं।
इससे पहले हरियाणा में मंगलवार को बड़ा राजनैतिक उलटफेर हुआ, भाजपा और जजपा का 4 वर्ष पुराना गठबंधन टूट गया। दोनों दल साथ मिलकर सरकार चला रहे थे। सीएम रहे मनोहर लाल खट्टर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद भाजपा ने नायब सैनी को हरियाणा का नया मुख्यमंत्री बनाया है।
मंगलवार को ही शपथ लेने के बाद नायब सैनी ने बुधवार को ही विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश किया था। विधानसभा में विधायकों के समीकरण को देखते हुए पहले ही माना जा रहा था कि वह आसानी से विश्वास मत हासिल कर लेंगे। जजपा के गठबंधन से हटने के बाद भाजपा ने निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बना ली थी।
इससे पहले आई इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि नायब सिंह सैनी के हरियाणा के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के एक दिन बाद, उनकी सरकार सदन में अपना बहुमत साबित करने के लिए बुधवार सुबह विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश करेगी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि सैनी सरकार के पक्ष में संख्याबल होने के कारण वह विश्वास प्रस्ताव आसानी से जीतने की उम्मीद कर रही है।
उसे सत्तारूढ़ भाजपा के 41 विधायकों के अलावा छह निर्दलीय विधायकों और हरियाणा लोकहित पार्टी (एचएलपी) के गोपाल कांडा का भी समर्थन प्राप्त है। दो बार के भाजपा विधायक हरविंदर सिंह कल्याण ने कहा था कि पार्टी के पास सदन में पर्याप्त बहुमत है जो बुधवार के विश्वास प्रस्ताव में साबित होगा।
भाजपा विश्वास मत के लिए जेजेपी के कुछ विधायकों के समर्थन की उम्मीद कर रही थी। जेजेपी के एक और विधायक राम कुमार गौतम पिछले काफी समय से खुलेआम पार्टी नेता दुष्यंत चौटाला को आड़े हाथों ले रहे हैं।
इन परिस्थितियों में, पार्टी सूत्रों का कहना है, जेजेपी के पास अब "केवल पांच विधायकों-दुष्यंत चौटाला, उनकी मां नैना चौटाला, अनूप धानक, अमरजीत ढाना और राम करण काला" का सक्रिय समर्थन है।
जेजेपी के एक नेता ने विश्वास प्रस्ताव से पहले ही कह दिया था कि इस बात की शायद ही कोई संभावना है कि “बागी” जेजेपी विधायक विश्वास प्रस्ताव के दौरान भाजपा सरकार का समर्थन करेंगे। तकनीकी रूप से, भाजपा को इस समय जेजेपी विधायकों के समर्थन की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि उसके पास पहले से ही 90 सदस्यीय सदन में 48 विधायकों का समर्थन है। ये बागी विधायक अब जेजेपी नेतृत्व के खिलाफ बोलना शुरू कर सकते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि एक जेजेपी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा है कि, कांग्रेस ने हाल के विधानसभा सत्र में "भगवा पार्टी के साथ रणनीतिक समझ के हिस्से" के रूप में "अविश्वास" प्रस्ताव लाया था।
विपक्षी विधायकों के विधानसभा से बाहर चले जाने के बाद अविश्वास प्रस्ताव ध्वनि मत से गिर गया। नियमों के अनुसार, सरकार द्वारा सदन में बहुमत साबित करने के बाद अगले छह महीने तक दोबारा अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है। इस तरह, कांग्रेस ने भाजपा सरकार की मदद की थी।
हालांकि, कांग्रेस इस बात पर जोर देती रही है कि वह गठबंधन सरकार की विफलता को उजागर करने के लिए अविश्वास लेकर आई है।
इस बीच, जेजेपी विधायक देवेंद्र सिंह बबली, जो गठबंधन सरकार में पंचायत मंत्रालय देख रहे थे, ने मंगलवार को द इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि वह नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए राजभवन आए थे। हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि दोनों पार्टियों ने अब अपनी राहें अलग कर ली हैं।
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