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हरियाणा की इन सीटों पर कांटे का मुकाबला, पूरे देश की नजरें

हरियाणा में आगामी विधानसभा चुनाव सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस के बीच उच्चस्तरीय राजनीतिक नाटक से भरा हुआ है। दोनों दलों में टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार में रोजाना कुछ न कुछ नया हो रहा है और उसके आधार पर राजनीतिक दल दावे कर रहे हैं। मसलन आम आदमी पार्टी की एंट्री को इतना बढ़ा दिया गया है कि लगता है कि हर सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होगा लेकिन सत्य यह नहीं है। सत्य यह है कि मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है। 

लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद अपने घटते प्रभाव के बारे में विपक्ष के दावों को खारिज करने के लिए हरियाणा चुनाव में जीत भाजपा के लिए बहुत जरूरी मानी जा रही है। राज्य में 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद पार्टी को सत्ता विरोधी लहर की बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस के लिए यह आम चुनावों में मजबूत वापसी के बाद चमकने का क्षण है। दोनों पार्टियों ने हरियाणा लोकसभा में पांच-पांच सीटें जीतीं, जिससे 8 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव परिणाम अप्रत्याशित होने की उम्मीदें बढ़ा गया है।

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कांग्रेस-भाजपा के अलावा भी हरियाणा के राजनीतिक परिदृश्य में बहुत कुछ चल रहा है। बाहरी लड़ाइयों के अलावा, भाजपा को आंतरिक संकट का भी सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उसके कई प्रमुख नेताओं ने चुनाव में टिकट नहीं मिलने के कारण पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। इस बीच, कांग्रेस चुनाव जीतने को लेकर काफी आश्वस्त दिख रही है, हालांकि, यह देखना बाकी है कि क्या आम आदमी पार्टी की सभी 90 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की योजना वोट शेयर को विभाजित करके कांग्रेस की संभावनाओं को कम कर देगी। संदर्भ के लिए, आप ने पिछले विधानसभा चुनाव में 46 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे 1 प्रतिशत से भी कम वोट मिले थे। चुनाव आयोग की वेबसाइट के आंकड़ों से पता चलता है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में उसे लगभग 3.5 प्रतिशत वोट मिले।
5 अक्टूबर को एक ही चरण में सभी सीटों पर मतदान होगा, लेकिन नतीजे वाले दिन 5 सीटों पर सभी की नजरें होंगी। वो सीटें कौन-कौन सी हैं, जानिएः
Haryana Assembly Elections 2024: Close contest on these seats, eyes of whole country on them - Satya Hindi
पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा

गढ़ी सांपला-किलोई सीट

यह इलाका पूर्व कांग्रेस मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा का गढ़ है। हुड्डा राज्य के सबसे महत्वपूर्ण जाट नेताओं में से एक हैं। जाट समुदाय हरियाणा की आबादी का 25 प्रतिशत हिस्सा है और देसवाली-बेल्ट का केंद्र है जिसमें रोहतक, झज्जर और सोनीपत जिले शामिल हैं। इस बार कांग्रेस ने 26 टिकट जाट उम्मीदवारों को दिए हैं। इसकी तुलना में, जाटों के बीच कमजोर आधार साझा करने वाली भाजपा ने समुदाय को 16 टिकट दिए हैं। हरियाणा के दो बार पूर्व सीएम रहे हुड्डा का राजनीतिक करियर पांच दशक लंबा है। वह एक बार भी चुनाव नहीं हारे। उनका मुकाबला करने के लिए भाजपा ने गैंगस्टर राजेश हुडा की पत्नी मंजू हुडा को मैदान में उतारा है। मंजू हरियाणा के एक पूर्व वरिष्ठ पुलिसकर्मी की बेटी भी हैं। भूपेंद्र हुड्डा को यहां अपनी जीत दोहराने से कोई रोक नहीं पाएगा।
Haryana Assembly Elections 2024: Close contest on these seats, eyes of whole country on them - Satya Hindi
जुलाना से कांग्रेस प्रत्याशी विनेश फोगाट

जुलानाः हाई प्रोफाइल सीट

जुलाना सीट इस बार सबसे हाई-प्रोफाइल विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। कांग्रेस ने ओलंपियन पहलवान विनेश फोगट को यहां से टिकट देकर राज्य का सबसे चर्चित मुकाबला बना दिया है। विनेश का मुकाबला भाजपा के कैप्टन योगेश बैरागी और आप की पहलवान कविता देवी करने उतरी हैं। हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुईं फोगाट से किसानों, युवाओं और महिलाओं के बीच पार्टी का प्रभाव मजबूत होने की उम्मीद है। दरअसल, जुलाना में विनेश फोगाट का चुनाव खाप पंचायतें और जनता लड़ रही है। विनेश के मामले में भाजपा का अतीत उसका पीछा कर रहा है। भाजपा नेता ब्रजभूषण शरण सिंह के बयानों ने यहां की जनता को भड़काने का काम किया है। यहां के लोग दिल्ली में विनेश फोगाट को पुलिस द्वारा पीटे जाने की घटना को भूले नहीं हैं। अब वे वोट के जरिये उसका बदला लेना चाहते हैं। लोगों को सबसे ज्यादा हैरानी आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी पर हो रही है। जो हमेशा विनेश फोगाट को समर्थन देने का दावा करती थी। लेकिन मौका आने पर उसने विनेश फोगाट के खिलाफ ही प्रत्याशी उतार दिया।
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मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी

लाडवाः मुख्यमंत्री ने सीट क्यों बदली

हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी मार्च से (लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए खट्टर के इस्तीफे के बाद) राज्य का नेतृत्व कर रहे हैं। वह खट्टर के गढ़ करनाल से उपचुनाव में विधानसभा के लिए चुने गए। पता चला है कि सैनी इस चुनाव में करनाल सीट पर ही लड़ने के इच्छुक थे, लेकिन उन्हें “अनिच्छा” से लाडवा से मैदान में उतारा गया। जिसे भाजपा के लिए “सबसे सुरक्षित” सीट के रूप में देखा जा रहा है। लोकसभा चुनाव में, भाजपा ने कुरुक्षेत्र संसदीय क्षेत्र के लाडवा विधानसभा क्षेत्र में 47.14 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। हालांकि यह 2019 के लोकसभा चुनावों में प्राप्त 58.5 प्रतिशत से कम है, यह 2019 के विधानसभा चुनावों में प्राप्त 32.7 प्रतिशत के मुकाबले महत्वपूर्ण सुधार है। सैनी के इस पसोपेश का असर उनके चुनाव क्षेत्र में देखा जा रहा है। वो अब अपने ही विधानसभा क्षेत्र में प्रचार करते नजर आ रहे हैं, जबकि उन्हें पूरे हरियाणा का दौरा करना था। प्रधानमंत्री मोदी की पहली रैली भी उनके इलाके में सोचसमझ कर रखी गई है। भाजपा अपने मुख्यमंत्री को जीतता हुआ देखना चाहती है।
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पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला

दुष्यंत चौटाला की साख क्या बचेगी

हरियाणा के पूर्व डिप्टी सीएम और जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला भाजपा के देवेंद्र अत्री और कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह के खिलाफ जींद की उचाना सीट से मैदान में हैं। बृजेंद्र सिंह पूर्व आईएएस हैं और भाजपा से इस साल मार्च में कांग्रेस में शामिल हुए हैं। 2019 के चुनावों में, चौटाला ने सिंह की मां प्रेम लता को हराया था जो बीरेंद्र सिंह की पत्नी भी हैं। अपने बेटे की तरह, बीरेंद्र सिंह भी एक पूर्व कांग्रेसी थे, जो 2014 में भाजपा में शामिल हो गए थे, और फिर कांग्रेस में यू-टर्न ले लिया। लेकिन यहां दुष्यंत की साख का अब सवाल है। 2019 के चुनाव में उनकी जेजेपी को विधानसभा में 10 सीटें मिली थीं लेकिन उन्होंने भाजपा को समर्थन देकर उसकी सरकार बनवा दी। इलाके के मतदाता खासकर जाट मतदाता दुष्यंत से बेहद खफा हैं। काफी समय तो दुष्यंत कई जाट बहुल गांवों में जाने ही नहीं पाते थे क्योंकि गांव के लोग विरोध में थे। कुल मिलाकर दुष्यंत यह सीट हारते हैं तो जेजेपी को बड़ा धक्का लगने वाला है।
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ओमप्रकाश चौटाला के बेटे अभय सिंह चौटाला

ऐलनाबाद सीट बचाने की लड़ाई

इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के महासचिव अभय सिंह चौटाला सिरसा में अपनी ऐलनाबाद सीट बरकरार रखने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। जेजेपी की तरह इनेलो ने भी हरियाणा के राजनीतिक परिदृश्य में अपना प्रभाव खो दिया है। पार्टी 20 साल से हरियाणा में सत्ता से बाहर है और लोकसभा चुनाव में उसे 1.74 फीसदी वोट शेयर मिला है। यहां कांग्रेस ने भरत सिंह बेनीवाल को उम्मीदवार बनाया है और बीजेपी ने राष्ट्रीय स्वयं संघ से जुड़े अमीर चंद मेहता को टिकट दिया है। चौटाला 2010 से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। पहले यह सीट उनके पिता ओपी चौटाला के पास थी। अभय की जीत मुश्किल नहीं है। क्योंकि वोटरों से इस परिवार के व्यक्तिगत संबंध हैं, इसलिए लोग चौटाला परिवार को ही वोट देते हैं। हालांकि राजनीतिक रूप से अभय चौटाला असफल हैं। लेकिन परिवार के बिखरने के बाद दूसरी तरफ अजय चौटाला के यहां भी यही हाल है। अगर इस चुनाव में चौटाला परिवार कोई करिश्मा नहीं कर सका तो राजनीतिक रूप से बेहद कमजोर हो जाएगा। चौधरी देवीलाल की विरासत वाला परिवार राजनीतिक रूप से इस समय हाशिये पर है।
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क़मर वहीद नक़वी
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