केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लाए जा रहे तीन कृषि अध्यादेशों को लेकर भारत के कृषि प्रधान राज्य हरियाणा और पंजाब के किसानों में जबरदस्त गुस्सा है। इन दोनों राज्यों के किसान पिछले तीन महीने से इन अध्यादेशों का पुरजोर विरोध कर रहे है हालांकि मोदी सरकार इन्हें किसान हितैषी बता रही है।
इन अध्यादेशों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों पर 10 सितंबर को हुए लाठीचार्ज के बाद हरियाणा सहित पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत गर्म है। किसान संगठन बीजेपी को किसान विरोधी कह रहे हैं और इसे लेकर हरियाणा में बीजेपी के साथ गठबंधन में सरकार चला रही जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बहुत दबाव में है।
जेजेपी के समर्थक उससे किसानों के हक़ में आवाज़ उठाने और किसानों पर लाठीचार्ज करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। किसानों के गुस्से से सहमते हुए हरियाणा बीजेपी ने उनके प्रतिनिधिमंडल से बातचीत की पेशकश की है।
क्या है मामला
10 सितंबर को भारतीय किसान यूनियन ने इन अध्यादेशों के ख़िलाफ़ कुरूक्षेत्र के पीपली नेशनल हाईवे पर जाम लगा दिया था। इसके बाद उनकी पुलिस से भिड़ंत हुई थी। पुलिस ने इसे लेकर किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी के ख़िलाफ़ कई मुक़दमे दर्ज कर दिए हैं और इससे भी किसानों का पारा सातवें आसमान पर है। चढ़ूनी ने कहा है कि अगर इन अध्यादेशों को रद्द करने की उनकी मांग नहीं मानी गई तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे। प्रदर्शनकारी किसानों ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के पुतले भी फूंके थे।
केंद्र सरकार का तर्क
केंद्र सरकार ने जून में कृषि ने संबंधित तीन अध्यादेशों को संसद के मॉनसून सत्र में लाने की बात कही थी। इनके तहत तहत अब किसानों को अपना सामान मंडी में बेचने की ज़रूरत नहीं होगी, वे सीधे अपनी पसंद से अपना सामान किसी को भी बेच सकते हैं और निजी क्षेत्र में किसी भी व्यापारी या कंपनी से सीधे क़रार कर फ़सल का मूल्य निश्चित कर सकते हैं। केंद्र सरकार का कहना है कि अध्यादेशों के जरिये मंडियों की भूमिका ख़त्म हो जाएगी और किसान अब सही मायनों में आज़ाद हो जाएंगे। लेकिन किसान इससे बेहद नाराज हैं।
किसान नेताओं का तर्क
इस अध्यादेश को लेकर भारतीय किसान यूनियन (राजोवाल) के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजोवाल कहते हैं, ‘नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल द्वारा पारित अध्यादेश साफ़ तौर पर मौजूदा मंडी व्यवस्था का ख़ात्मा करने वाले हैं। केंद्र सरकार लॉकडाउन के चलते समूचे कृषि क्षेत्र को कॉरपोरेट घरानों के हवाले करना चाहती है।'
किसान नेता राजोवाल कहते हैं कि नए अध्यादेश के ज़रिए पंजाब और हरियाणा की मंडियों का दायरा और ज़्यादा सीमित कर दिया जाएगा और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर ख़रीद बंद होने से किसान पूरी तरह बर्बाद हो जाएंगे।
बीजेपी में ही नाराजगी
हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज का कहना है कि किसानों पर कोई लाठीचार्ज नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि पुलिस सिर्फ यही चाहती थी कि सड़कों को जाम न किया जाए। लेकिन सोशल मीडिया पर ऐसी फ़ोटो वायरल हुई हैं, जिनमें पुलिस किसानों पर लाठीचार्ज करती दिख रही है। इससे बीजेपी के ही सांसद नाराज हैं।
भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से बीजेपी के लोकसभा सांसद धर्मबीर सिंह और हिसार के सांसद बृजेंद्र सिंह किसानों के समर्थन में उतर आए हैं। हरियाणा में किसानों की अच्छी-खासी आबादी है और राज्य सरकार यह जानती है कि उनकी नाराज़गी मोल लेने का मतलब है सत्ता से विदाई हो जाना।
धर्मबीर सिंह ने ट्वीट कर कहा कि किसानों की आवाज़ सुने बिना उन पर लाठीचार्ज करना निंदनीय है। बृजेंद्र सिंह ने कहा कि किसान आंदोलन के दौरान कुरूक्षेत्र में जो हुआ, वह दर्दनाक है।
बीजेपी ने धर्मबीर सिंह, बृजेंद्र सिंह और कुरूक्षेत्र से सांसद नायब सिंह सैनी को किसानों से बात करने और उनका ग़ुस्सा शांत करने के लिए कहा है।
उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के छोटे भाई और जेजेपी नेता दिग्विजय चौटाला ने कहा कि किसानों पर लाठीचार्ज होना ग़लत है। चौटाला ने कहा कि यह अध्यादेश किसानों के पक्ष में है।
‘सभी सड़कों को जाम कर देंगे’
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, किसान नेता चढ़ूनी ने खट्टर सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि सरकार अपनी जेलों को तैयार रखे और अगर किसानों की मांग नहीं मानी जाती है तो अगले हफ़्ते से राज्य के सभी जिला मुख्यालयों में प्रदर्शन होगा और 20 सितंबर को राज्य की सभी सड़कों को जाम कर दिया जाएगा। चढ़ूनी कहते हैं कि अगर बीजेपी किसानों के प्रति ईमानदार है तो इन अध्यादेशों को संसद के सत्र में नहीं रखा जाना चाहिए।
हरियाणा की विपक्षी पार्टियां इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) और कांग्रेस भी खुलकर किसानों के समर्थन में आ गई हैं और इससे बीजेपी-जेजेपी सरकार पर दबाव बढ़ गया है।
दिग्गज कांग्रेसी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा है कि इन अध्यादेशों को तब तक लागू नहीं होने दिया जाएगा जब तक केंद्र सरकार एक चौथा अध्यादेश नहीं लाती जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य और स्वामीनाथन फ़ॉर्मूले को लागू करने का वादा न किया जाए। इनेलो के नेता अभय चौटाला ने कहा कि ये अध्यादेश किसानों के लिए डेथ वारंट की तरह हैं।
पंजाब में भी विरोध
पंजाब के प्रमुख किसान संगठन भी इन अध्यादेशों का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। इनका मानना है कि ये अध्यादेश किसानों के लिए नहीं बल्कि व्यापारियों के लिए ज़्यादा फ़ायदेमंद हैं। किसान नेताओं का मानना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य ख़त्म करने तथा प्रचलित मंडीकरण व्यवस्था में इस तरह बदलाव किसानों को तबाही की ओर धकेलने वाला है।
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फ़सल कहीं भी बेचने की छूट का ज़्यादा फ़ायदा व्यापारियों को होगा। किसान तो अपने सूबे में भी बहुत मुश्किलों से मंडियों तक पहुंचते हैं। वे दूसरे राज्यों में आसानी से फ़सल बेचने नहीं जा पाएंगे। कॉरपोरेट घराने ज़रूर अपनी सुविधानुसार खुली लूट करेंगे। हम इस अध्यादेश के ख़िलाफ़ राज्यव्यापी आंदोलन करेंगे।
अजमेर सिंह लक्खोवाल, बीकेयू (लक्खोवाल) के प्रधान
पंजाब के एक अन्य वरिष्ठ किसान नेता सुखदेव सिंह कहते हैं, "एक देश-एक कृषि बाज़ार' की अवधारणा सरासर किसान विरोधी है और यह किसानों के लिए बेहद मारक साबित होगी।"
‘किसान विरोधी अध्यादेश’
वरिष्ठ कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर देवेंद्र शर्मा के अनुसार, ‘केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पारित कृषि संबंधी तीनों अध्यादेश मूलतः किसान विरोधी हैं। किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य ही आमदनी का एकमात्र ज़रिया है, अध्यादेश इसे भी ख़त्म कर देगा। पंजाब और हरियाणा के किसानों को इसका सबसे ज़्यादा नुक़सान होगा। इसलिए कि इन राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य और ख़रीद की गारंटी है।’
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