दुष्यंत को डिप्टी सीएम बनाने के बाद बीजेपी को उन सवालों का जवाब देना भी मुश्किल नहीं होगा जिनमें उस पर हरियाणा में जाट-ग़ैर जाट की राजनीति करने के आरोप लगते हैं।
2014 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद बीजेपी ने ग़ैर जाट (मनोहर लाल खट्टर) को मुख्यमंत्री बनाया। जाट आरक्षण आंदोलन में इस समुदाय के नेताओं ने युवाओं के उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए खट्टर सरकार को जाट विरोधी बताया था। 2019 में जब केंद्र में फिर मोदी सरकार बनी तो तीन नेताओं को हरियाणा से केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी गई और ये तीनों ही ग़ैर जाट थे। इसे लेकर जाटों में नाराज़गी थी। लेकिन दुष्यंत को डिप्टी सीएम का पद देकर वह ऐसे सवालों का जवाब दे सकेगी।
दिसंबर 2018 में बनी जेजेपी ने सिर्फ़ एक साल के अंदर ही अपने पहले विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया है। चुनाव में 10 सीटों पर जीत के साथ दुष्यंत हरियाणा की जाट राजनीति के नए चेहरे बनकर उभरे हैं और उन्होंने सिर्फ़ 1 सीट लाने वाली अपनी पुरानी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल की सियासी ज़मीन ख़त्म कर दी है।
जाट नेता बनकर उभरे हैं दुष्यंत
इस बात को कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि हरियाणा के चुनावी नतीजे इस बात को स्पष्ट कहते हैं कि जाट मतदाताओं ने दुष्यंत पर भरोसा जताया है। हालांकि कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को जाट वोटरों ने बड़े पैमाने पर समर्थन दिया है लेकिन हुड्डा बहुत पुराने नेता हैं और दुष्यंत 31 साल के नये नेता। हालाँकि दुष्यंत भी एक बार सांसद रह चुके हैं लेकिन फिर भी हुड्डा के सामने उनका राजनीतिक अनुभव बेहद कम है और बावजूद इसके उन्होंने यह साबित किया है कि ताऊ देवीलाल की राजनीति के वही असली वारिस हैं।
बीजेपी की कथित ग़ैर जाट राजनीति और लंबे समय तक माँग करने के बाद भी कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा को चुनावी चेहरा नहीं बनाने से, राज्य के जाट मतदाता नाराज थे और ऐसे में दुष्यंत ने ख़ुद को विकल्प के रूप में पेश किया।
दिल्ली में जाट वोटरों का प्रभाव
दिल्ली की राजनीति में जाट वोटरों की अहम भूमिका है। अनुमान के मुताबिक़, दिल्ली में 20 से 25 लाख जाट मतदाता हैं। बाहरी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली में बड़ी संख्या में इस समुदाय के गाँव हैं और यहाँ की राजनीति में इनका ख़ासा सियासी दख़ल है। दिल्ली में इस समुदाय से साहिब सिंह वर्मा मुख्यमंत्री रह चुके हैं और उनके बेटे प्रवेश वर्मा दिल्ली में लगातार दूसरी बार सबसे ज़्यादा वोटों से लोकसभा चुनाव जीतने वाले नेता हैं। नरेला, नांगलोई, बवाना, नज़फगढ़ से लेकर 20 से 25 ऐसी सीटें हैं जहां जाट वोटर जीत-हार तय करते हैं। ऐसे में दुष्यंत को डिप्टी सीएम बनाया जाना पूरी तरह से राजनीतिक फ़ैसला है और बीजेपी ने यह फ़ैसला दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के लिए ही लिया है।
दिल्ली में सरकार बनाना लक्ष्य
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक़, 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी को इस बात को लेकर जाटों की नाराजगी का सामना करना पड़ा था कि उनके समुदाय के व्यक्ति को हरियाणा का मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया। तब बीजेपी दिल्ली में सिर्फ़ 3 सीटों पर सिमटकर रह गई थी। लेकिन इस बार अमित शाह का लक्ष्य किसी भी सूरत में दिल्ली में सरकार बनाना है और इसके लिए वह कोई भी सियासी क़ीमत चुकाने के लिए तैयार हैं।
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