हार्दिक पटेल की उम्र भले ही 26 साल हो लेकिन कांग्रेस ने उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर गुजरात में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। लेकिन इस जिम्मेदारी के साथ ही हार्दिक के सामने बहुत सारी चुनौतियां भी हैं और इनमें राज्य सरकार द्वारा दर्ज कराए गए मुक़दमों से निपटने के अलावा गुजरात कांग्रेस में जारी विधायकों की भगदड़ को रोकना सबसे अहम है।
गुजरात में विधानसभा की 8 सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं और माना जा रहा है कि हार्दिक इसमें ताल ठोक सकते हैं।
2017 का विधानसभा चुनाव
आज़ादी के बाद लंबे समय तक गुजरात की सत्ता में रही कांग्रेस 90 के दशक में बीजेपी के उभार और 2000 में नरेंद्र मोदी के राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद कमजोर होती चली गई। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने पार्टी के लिए जमकर पसीना बहाया और सीटों की संख्या में इजाफ़ा किया। 2012 में कांग्रेस को जहां 61 सीटें मिली थीं, वहीं 2017 में यह आंकड़ा 77 हो गया था, दूसरी ओर बीजेपी 2012 में मिली 115 सीटों के मुक़ाबले 2017 में 99 सीटों पर आ गयी थी।
तब यह माना गया था कि हार्दिक पटेल के आंदोलन से बीजेपी को ख़ासा नुक़सान हुआ है। 2017 के विधानसभा चुनाव में हालात ऐसे थे कि ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात में कई चुनावी रैलियां करनी पड़ी थीं और उन्होंने दिल्ली का कामकाज छोड़कर पूरा फ़ोकस गुजरात चुनाव पर कर दिया था। फिर भी 182 सीटों वाली गुजरात की विधानसभा में बहुमत के लिए ज़रूरी 92 सीटों से सिर्फ 7 ही ज़्यादा सीटें बीजेपी ला पाई।
सौराष्ट्र के इलाक़े में तब कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था। इस इलाक़े में पाटीदारों (पटेलों) की अच्छी आबादी है और बड़ी संख्या में पाटीदारों ने बीजेपी के ख़िलाफ़ वोट डाला था। इसके पीछे बड़ा कारण हार्दिक ही थे।
गुजरात में राहुल गांधी की मेहनत तब बिखरती दिखाई दी जब कांग्रेस विधायकों ने पार्टी का साथ छोड़ना शुरू कर दिया। मार्च, 2019 से शुरू हुआ यह सिलसिला पिछले महीने हुए राज्यसभा चुनाव तक जारी था। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान की चिंता लगातार बढ़ रही थी और पार्टी में जारी विधायकों की भगदड़ को रोकने के लिए कोई बड़ा क़दम उठाना ज़रूरी था। शायद इसीलिए, सोनिया गांधी ने हार्दिक को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का फ़ैसला किया।
कांग्रेस को इस बात पर ज़रूर मंथन करना होगा कि 12 विधायकों के साथ ही आख़िर अल्पेश ठाकोर जैसे युवा और राज्य के कुछ हिस्सों में अच्छा जनाधार रखने वाले नेता पार्टी छोड़कर क्यों चले गए?
बीजेपी के निशाने पर हार्दिक
हार्दिक पर राज्य की बीजेपी सरकार ने पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा को लेकर कई मुक़दमे दर्ज कर रखे हैं। यहां तक कि हार्दिक पर राजद्रोह का मुक़दमा भी दर्ज किया गया है। बीजेपी जानती है कि हार्दिक ने जिस तरह गुजरात के बाहर भी ख़ुद का विस्तार किया है, उससे उनकी लोकप्रियता बढ़ी है। आरक्षण के अलावा किसानों की कर्जमाफ़ी की मांग को लेकर भी आंदोलन कर हार्दिक ख़ुद को सिर्फ़ पाटीदारों के नेता की छवि से बाहर निकाल चुके हैं।
हार्दिक दो साल पहले गुजरात से बाहर निकले थे और उत्तर प्रदेश में उन्होंने कई राजनीतिक सभाएं की थीं। हार्दिक अपनी सभाओं में और सोशल मीडिया पर बीजेपी के ख़िलाफ़ लगातार हमला बोलते रहे हैं।
हार्दिक 2019 के लोकसभा चुनाव में ताल ठाेकना चाहते थे लेकिन दंगों के एक मुक़दमे में कोर्ट ने उनकी सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इस कारण वह चुनाव मैदान में नहीं उतर सके थे। हार्दिक ने कांग्रेस के लिए पूरा जोर लगाया था और अच्छी-खासी संख्या में भीड़ भी जुटाई थी। हालांकि नतीजे बेहतर नहीं रहे।
रसूखदार है पटेल समाज
पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर गुजरात में बड़ा आंदोलन खड़ा करने वाले हार्दिक अपने समाज के युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं। गुजरात में पाटीदार समाज पैसे से काफी मजबूत है। दुनिया भर में इस समाज के लोगों ने काफी नाम और धन कमाया है और राज्य में इस वर्ग की सियासी हैसियत भी अच्छी है।
गुजरात में लगभग 18 फ़ीसदी आबादी पटेलों की है और अपने समाज में हार्दिक की बढ़ती लोकप्रियता को कम करने के लिए ही बीजेपी को इस समाज से आने वाले नितिन पटेल को उप मुख्यमंत्री बनाना पड़ा।
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