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हेमंत सोरेन
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गुजरात हाई कोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने मोरबी में हुए पुल हादसे के मामले में स्वत: संज्ञान लिया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को और राज्य के मानवाधिकार आयोग को नोटिस भी जारी किया है। सोमवार को दीपावली की छुट्टियों के बाद जब अदालत खुली तो अदालत ने इस मामले को देखा और राज्य सरकार से 14 नवंबर तक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा। स्टेटस रिपोर्ट में राज्य सरकार को बताना होगा कि उसने अब तक इस हादसे को लेकर क्या-क्या कार्रवाई की है।
मोरबी जिले में 30 अक्टूबर की शाम को हुए हादसे में कम से कम 140 लोगों की मौत हो गई थी और 150 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
गुजरात हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अरविंद कुमार ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार में 31 अक्टूबर को छपी खबर को पढ़ने के बाद उन्होंने इस मामले का संज्ञान लिया। इस मामले में अदालत में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है।
हाई कोर्ट ने गुजरात के मुख्य सचिव और गृह विभाग के मुखिया से कहा है कि वह तय वक्त में इस मामले में अपनी स्टेटस रिपोर्ट अदालत के सामने जमा कर दें। अदालत ने राज्य के मानवाधिकार आयोग से भी कहा है कि उसे इस मामले में अगली सुनवाई तक अपनी रिपोर्ट जमा करनी होगी। अदालत में सोमवार को जब कार्यवाही शुरू हुई तो मोरबी के हादसे में मारे गए लोगों के लिए 2 मिनट का मौन भी रखा गया।
राज्य सरकार ने इस मामले में शुक्रवार को मोरबी नगरपालिका के चीफ अफसर (सीओ) संदीप सिंह जाला को निलंबित कर दिया था। इस मामले की जांच स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम यानी एसआईटी कर रही है। पुलिस ने इस मामले में नौ लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत मामला दर्ज किया था।
संदीप सिंह जाला ने पुलिस को बताया था कि यह सस्पेंशन ब्रिज मोरबी नगरपालिका का था लेकिन इस साल की शुरुआत में इसकी मरम्मत के लिए इसे ओरेवा समूह को दे दिया गया था।
जाला ने ओरेवा समूह पर आरोप लगाया था कि इस समूह ने नगर पालिका को बिना बताए और बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के इस सस्पेंशन ब्रिज को खोल दिया। इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यही निकल कर आया है कि बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के और बिना नगर पालिका की इजाजत के आखिर ओरेवा समूह ने इस पुल को आम लोगों के लिए कैसे खोल दिया?
पुलिस को अपनी जांच में पता चला है कि ओरेवा समूह ने पुल की मरम्मत के लिए जिन ठेकेदारों को रखा था वे तकनीकी रूप से योग्य नहीं थे।
इस मामले को लेकर गुजरात की बीजेपी सरकार पर तमाम विपक्षी दलों ने हमला बोल दिया था। सोशल मीडिया पर भी गुजरात की बीजेपी सरकार को कटघरे में खड़ा किया गया और लोगों ने कहा कि यह कोई हादसा नहीं है बल्कि यह घटना लापरवाही के कारण हुई है और इस वजह से बड़ी संख्या में लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
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