गुजरात के कथित इशरतजहां फर्जी एनकाउंटर में सीबीआई जांच में मदद करने वाले सीनियर आईपीएस अधिकारी सतीश चंद्र वर्मा को बर्खास्त किए जाने के केंद्र सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 19 सितंबर को रोक लगा दी। यह रोक एक हफ्ते के लगाई गई है। केंद्र सरकार ने हाल ही में गुजरात काडर के आईपीएस सतीश चंद्र वर्मा को सेवा से बर्खास्त किया था, हालांकि वो 30 सितंबर को रिटायर होने वाले हैं लेकिन केंद्र सरकार ने उससे पहले ही उन्हें बर्खास्त करने का फैसला किया था।
लाइव लॉ के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के.एम. जोसेफ और हृषिकेश रॉय ने वर्मा को बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती देने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट के सामने लंबित याचिका में संशोधन के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश दिया।
वर्मा को 30 सितंबर को उनके रिटायरमेंट से पहले 30 अगस्त को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उन्होंने अप्रैल 2010 और अक्टूबर 2011 के बीच 2004 के इशरत जहां मामले की जांच की थी और उनकी जांच रिपोर्ट पर, एक विशेष जांच दल ने इसे एक फर्जी मुठभेड़ माना था।
लाइव लॉ के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह हाईकोर्ट के लिए है कि वह इस बात की जांच करे कि बर्खास्तगी के आदेश पर रोक जारी है या नहीं, क्योंकि इसने वर्मा को अपनी बर्खास्तगी को चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट जाने की अनुमति दी थी।
बेंच ने कहा कि यह इंसाफ का तकाजा है कि अपीलकर्ता को आज से एक सप्ताह तक का समय अपील के लिए दिया जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि यह हाईकोर्ट पर विचार करने के लिए है कि क्या अनुशासनात्मक प्राधिकारी (केंद्र सरकार) द्वारा पारित आदेश के कार्यान्वयन पर रोक का आदेश एक हफ्ते की अवधि से आगे जारी रहना चाहिए।
वर्मा का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट समय-समय पर उनकी याचिका पर आदेश पारित कर रहा था, और अब मामले को जनवरी 2023 के लिए पोस्ट किया है। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल की याचिका नाकाम हो रही है, और बेंच या तो सुनवाई के लिए मामले को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करे या फिर हाईकोर्ट को सुनवाई को आगे बढ़ाने के लिए कहे।
हाईकोर्ट द्वारा गृह मंत्रालय को विभागीय जांच के मद्देनजर उनके खिलाफ कार्रवाई करने की अनुमति देने के बाद वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसने उनके खिलाफ आरोपों को साबित कर दिया था। आरोपों में "सार्वजनिक मीडिया के साथ" बातचीत करना शामिल था। उस समय वो नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन, शिलांग के मुख्य सतर्कता अधिकारी थे।
क्या है इशरतजहां एनकाउंटर मामला
15 जून 2004 को अहमदाबाद पुलिस ने इशरतजहां, जिशान जौहर, अमजद अली अकबर अली राणा और जावेद शेख को एक एनकाउंटर में मार गिराया और दावा किया कि ये लोग तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के लिए भेजा गया फिदायीन दस्ता था। ये लोग मोदी से 2002 के गुजरात दंगों का बदला लेने आए थे। उस समय केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी। इस मुद्दे पर गुजरात पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्रालय के मतभेद सामने आए।
6 अगस्त, 2009 को इशरत की मां, शमीमा कौसर ने अदालत में एक रिट याचिका दायर कर कहा गया था कि उनकी बेटी को गुजरात पुलिस द्वारा "फर्जी मुठभेड़" में मार दिया गया था।
इस पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच लंबे समय तक विवाद होता रहा। कांग्रेस और गुजरात के तमाम नागरिक संगठन इसे आज भी फर्जी एनकाउंटर मानते हैं। इस एनकाउंटर के समय आईपीएस सतीश चंद्र वर्मा गुजरात पुलिस में थे। 2016 में इस एनकाउंटर को लेकर वर्मा ने एक इंटरव्यू दिया था। केंद्र सरकार का मानना है कि बतौर सरकारी कर्मचारी वो टीवी को इंटरव्यू नहीं दे सकते। समझा जाता है कि आईपीएस वर्मा के पास न सिर्फ इस एनकाउंटर के बारे में बल्कि गुजरात दंगों के बारे में भी तमाम जानकारियां हैं। वो सरकार की नजर में बराबर बने हुए हैं।
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