गुजरात के विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने का वक्त बचा है। बीते कई विधानसभा चुनाव लगातार जीतती आ रही बीजेपी इस बार भी चुनाव से कई महीने पहले सक्रिय हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को गुजरात दौरे पर रहे और यहां उन्होंने उद्घाटन कार्यक्रमों के जरिए जनता के बीच पहुंचने की कोशिश की है।
खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार पाटीदार मतों को बीजेपी के पाले में लाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव भी लगातार बीजेपी की चुनावी तैयारियों को रफ्तार दे रहे हैं।
पाटीदारों का गुजरात की सियासत में अच्छा असर है और 6 करोड़ की आबादी वाले गुजरात में पाटीदारों की आबादी 20 से 22 फीसद मानी जाती है। यह समुदाय आर्थिक रूप से भी सक्षम है और इसलिए भी इसे लुभाने की कोशिश सभी राजनीतिक दल करते हैं।
आरक्षण आंदोलन
वैसे, गुजरात में पाटीदार समुदाय का बड़ा हिस्सा बीजेपी को समर्थन देता रहा है लेकिन आरक्षण के मुद्दे पर नाराजगी की वजह से उन्होंने बीजेपी से दूरी बनानी शुरू कर दी थी। तब हार्दिक पटेल आरक्षण आंदोलन के बड़े नेता बनकर उभरे थे। हार्दिक पटेल की वजह से ही कांग्रेस को 2017 में पाटीदार समुदाय का अच्छा समर्थन मिला था।
गुजरात में खासकर सौराष्ट्र और कच्छ के इलाके में पाटीदारों की अच्छी खासी आबादी है। राजकोट, जामनगर, भावनगर, अमरेली, पोरबंदर, जूनागढ़ में पटेल समुदाय के लोग हार-जीत का फैसला तय करने की ताकत रखते हैं।
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कांग्रेस की हालत पतली
दूसरी ओर, कांग्रेस के लिए राज्य में हालात अच्छे नहीं हैं। वह पिछले कई चुनाव लगातार हार चुकी है लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा था। उसके बाद एक के बाद एक कई विधायक और नेता कांग्रेस का साथ छोड़ कर चले गए। कांग्रेस को ताजा झटका कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष हार्दिक पटेल के पार्टी छोड़कर जाने से लगा है। क्योंकि हार्दिक पटेल का पाटीदार समुदाय में विशेषकर युवाओं में अच्छा असर माना जाता है।
पाटीदार समुदाय के प्रभावशाली नेता और व्यवसायी नरेश पटेल को भी अब तक कांग्रेस में शामिल करने के बारे में पार्टी फैसला नहीं ले सकी है। जबकि बीजेपी लगातार इस समुदाय के संपर्क में है।
गुजरात की राजनीति में वैसे तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच में ही मुकाबला रहा है लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम भी यहां पूरा जोर लगा रहे हैं।
अरविंद केजरीवाल बीते कुछ महीनों में कई बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं और उनकी कोशिश यहां पर कांग्रेस का विकल्प बनने की है। उनकी सक्रियता को देखते हुए बीजेपी भी पूरी तरह सतर्क है।
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ओवैसी भी सक्रिय
गुजरात में मुसलमानों की एक बड़ी आबादी है और इसे देखते हुए एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी यहां सक्रिय हो गए हैं। गुजरात में 12 फीसद मुसलमान हैं। ओवैसी ने बीते दिनों में मुसलिम बहुल इलाकों में अपनी सभाएं की हैं।
ओवैसी का कहना है कि आबादी के हिसाब से गुजरात की विधानसभा में 18 मुसलिम विधायक होने चाहिए लेकिन यह आंकड़ा सिर्फ तीन ही है।
हालांकि इससे पहले राज्य की विधानसभा में 8 मुसलिम विधायक भी चुनाव जीतकर पहुंचे थे।
कांग्रेस को इस बात का डर है कि ओवैसी के आने से निश्चित रूप से मुसलिम वोटों का बंटवारा हो जाएगा और यह उसकी मुश्किलों में इजाफा ही करेगा।
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