हमारे सर्वज्ञजी की सरकार की क़ाबिलियत का हाल यह है कि वह जो भी शेरवानी बनाती है, वह तब तक पहनने लायक नहीं होती, जब तक कि उसमें दर्जनों थेगले न लग जाएं। तीन तलाक़ जैसा हाल नोटबंदी, जीएसटी और फ़र्जिकल स्ट्राइक का पहले ही हम देख चुके हैं।
सर्वज्ञ है सरकार
इस तीन तलाक़ क़ानून में यह प्रावधान अभी तक बना हुआ है कि जिस मियाँ ने अपनी बीवी को तीन तलाक़ बोला, वह तुरंत जेल की हवा खाएगा। लेकिन सर्वज्ञजी से पूछिए कि वह बीवी और वे बच्चे क्या खाएँगे ? उनके भरण-पोषण की इस क़ानून में क्या व्यवस्था है? और तीन साल की जेल ? इसका क्या मतलब है ? मामला है, दीवानी और सज़ा है, फ़ौजदारी ! क्या खूब ? तीन तलाक़ ग़ैर-क़ानूनी है, इसीलिए मियां को बीवी का मियां ही बने रहना पड़ेगा। लेकिन बीवी घर में रहेगी और मियां जेल में ! यह क़ानून है या क़ानून का मज़ाक?
इसका मतलब यह नहीं कि तीन तलाक़ की कुप्रथा ख़त्म नहीं होनी चाहिए। ज़रूर होनी चाहिए। मोदी सरकार को बधाई कि उसने यह पहल की। लेकिन असली सवाल यह है कि यह इतने पुण्य का काम है और इस पर संसद में दंगल हो रहा है? क्यों हो रहा है ? सर्वसम्मति क्यों नहीं हो रही है ?
सरकार तीन टांग की कुर्सी पर बैठकर दो निशाने लगा रही है। एक तो वह मुस्लिम महिलाओं की सहानुभूति बटोरना चाहती है और दूसरा, अपने हिंदू वोटरों को वह यह बताना चाहती है कि देखो, हमने मुसलमानों को कैसे तान दिया है।
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