देश के पहले प्रधानमंत्री और कांग्रेस के नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू इस समय बहस के केंद्र में हैं। कुछ लोग उन्हें खलनायक साबित करने पर आमादा हैं तो कुछ उनका महिमा गान गा रहे हैं। पंडित नेहरू का व्यक्तित्व बेहद सम्मोहक रहा है। उनके आलोचक भी उनकी तारीफ़ें करते रहे हैं। लेकिन एक रोचक पत्र मुझे पिछले दिनों मिला, जो पंडित जवाहरलाल नेहरू के एक अलग ही व्यक्तित्व पर प्रकाश डालता है। मैं समझता हूँ, इससे तटस्थ राय पंडित नेहरू के बारे में हो ही नहीं सकती, क्योंकि यह पत्र एक पाकिस्तानी ने लिखा है। वह पाकिस्तानी कोई सामान्य व्यक्ति नहीं, बल्कि सआदत हसन मंटो है। मंटो ने यह पत्र 27-अगस्त, 1954 को लिखा। अपनी मृत्यु से महज चार महीने बाईस दिन पहले। आइए, देखते हैं मंटो के उस ऐतिहासिक पत्र को :

सआदत हसन मंटो लिखते हैं, 'अश्लील लेखन के आरोप में मुझ पर कई मुकदमे चल चुके हैं मगर यह कितनी बड़ी ज़्यादती है कि दिल्ली में, आपकी नाक के ऐन नीचे वहाँ का एक पब्लिशर मेरी कहानियों का संग्रह प्रकाशित करता है। मैंने किताब लिखी है। इसकी भूमिका यही ख़त है जो मैंने आपके नाम लिखा है... अगर यह किताब भी आपके यहाँ नाजायज तौर पर छप गई तो ख़ुदा की कसम मैं किसी न किसी तरह दिल्ली पहुँच कर... फिर छोड़ूँगा नहीं आपको...