loader

दोस्तों, मौसम का बदलना एक सामान्य खबर नहीं है

कल दिल्ली से आलोक जोशी का फोन आया। उन्होंने Hindustan Times में मौसम के बदलने की कोई खबर पढ़ी होगी। कह रहे थे- "कभी आप मौसम पर खबरें लिखते थे। शायद आज भी लिखना चाहें क्योंकि खबर के अनुसार मार्च का तापमान फरवरी में होने लगा है।। मैंने उन्हें बताया कि मैं पहाड़ में अभी जनवरी में ही बुरांश का खिला पेड़ देख आया हूं। फेसबुक पर भी लगाया था। अब जनवरी में ही आम के बौर आने लगे हैं और सहजन के फूल भी एक-दो महीने पहले खिलने लगे हैं।

लखनऊ में अपना डेरा बदलने के बाद आजकल किताबों और पुरानी फाइलों की उखेला-पुखेली चल रही है। क्या संयोग है कि आज सुबह एक फाइल में उस खबर की कतरन मिल गई जो मैंने 15 मार्च 1992 को कानपुर के स्वतंत्र भारत में लिखी थी और 16 मार्च के अंक में पहले पन्ने पर छपी थी। तब में कानपुर में उप स्थानीय सम्पादक के तौर पर तैनात था। यह खबर मौसम के चुपचाप बदल जाने के बारे में थी, जिसकी ओर शहरों में हमारा ध्यान कम ही जाता है। उस खबर में जो बदलाव तीस साल पहले मार्च-मध्य में दिखे थे, वे अब जनवरी के अंत और फरवरी की शुरुआत में ही दिखने लगे हैं। नीचे वह पूरी खबर हू-ब-हू दर्ज कर रहा हूँ-
ताजा ख़बरें
"मौसम का इस तरह बदल जाना भी तो एक खबर होता है"नवीन जोशी"कानपुर, 15 मार्च (1992)।  आज सुबह-सुबह होटल से लगे नीम के पेड़ से कोयल की कूक सुनाई दी। पहले दिन स्टेशन से आते समय ठेले पर बिकते काले-भूरे शहतूत दिखे थे। हवा के झोंके के साथ सड़क पर फड़फड़ाते सूखे पत्तों और धूल के गुबार ने फालसों की याद दिला दी। लाल-लाल लट्टुओं से  लदे सेमल के पेड़ पर कहीं एक फूल पट से चिटका। चढ़ते सूरज के साथ ही बदन के स्वेटर ने अचानक चींटियों-सी चुभन दी। भीतर से बेसाख्ता आवाज आई- लो, मौसम बदल गया।
"एक और  सुबह गंगा तट की ओर जाना हुआ। रूखी रेत की मेड़ों पर उगाई गई हरी-हरी लतरों में खिले छोटे-छोटे पीले फूलोंं ने भी बदल रहे मौसम के साथ ककड़ी की याद दिला दी। उन पीले फूलों की जड़ों में वह धीरे-धीरे आकार ले रही होगी। वहीं कहीं लगभग वैसी ही बेलों में तरबूज और खरबूज की गोलाइयों का भविष्य तय हो रहा होगा। बालू की सतहों के नीचे गंगा की आर्द्रता और उर्वरा शक्ति से ताकत पाकर अलमस्त फैली बेलों की महीन शाखाओं में गुप-चुप वानस्पतिक प्रक्रियाएं चल रही होंगी प्रकृति का कोई अनचीन्हा पर गजब का चितेरा बांझ रेत की इन मौसमी फसलों को रूप, गंध और स्वाद देने के लिए बस तैयार ही समझिए।
"अपने आसपास देखिए। गुलमोहर, अमलताश, नीम जैसे पेड़ों की शाखाएं तेज हवा के झोंकों से सूनी होती दिख रही हैं। लेकिन और भी कुछ उनमें हो रहा है जो दिखाई नहीं दे रहा। मौसम के ताप और तेवर से इशारा पाकर सूनी होती शाखों की गांठों पर जीवन की हरियाली के अंकुर फूट रहे हैं। मिट्टी से खाद-पानी लेकर शाखाओं-प्रशाखाओं में एक खामोश हलचल मची है। नव-पल्लवों और कलियों का निर्माण हो रहा है जो फूटेंगे तो मई-जून की दुपहरियों को लाल गुलमोहर और पीले अमलताश के चटक रंगों और निमकौरियों की नीम -गंध से भर देंगी। देखिए कि हर चीज कितनी तैयारी मांंगती है और अभी भी उसी तरह से हो रही है जैसी सदियों से होती आई है। 

हौले-हौले कितना कुछ बदल जाता है आसपास लेकिन महानगरों की आपाधापी, सनसनी, आतंक और रोजी-रोटी की व्यस्तताओं के चलते इन चीजों पर नजर ही कहां जाती है। सब कुछ अचानक हुआ दिखता है। अचानक ही एक रोज धूप के दांत तीखे हो जाते हैं।


बिल्कुल अचानक एक सुबह धुंध और धूल से भरी उदासी ले आती है। अचानक ही सड़कें पीले पत्तों से भर जाती हैं। मूंगफली, अमरूद और हरी सब्जियों के दिन इने-गिने रह जाते हैं। बाजारों की शक्ल एक बार फिर बदलने लगती है। 'समर वियर' से सज जाते हैं शो-केस और सिल्क के चटक रंगों पर हावी होने लगते हैं सूत के शालीन रंग। लखनवी चिकन और बंगाली तांत की मांग बढ़ने लगती है। पत्र-पत्रिकाओं के महिला पृष्ठों पर 'गर्म कपड़ों की सुरक्षित संंभाल' जैसे विषयों पर लेख छापने की तैयारी होने लगी होगी। गर्मी बस आ ही पहुंची है। सुबह-सुबह की हवा भी तुर्शी खो रही है। क्यारियों में खिले जाड़ों के मौसमी फूल आंंखिरी हंसी हंस रहे हैं। तिपतिया पैंजी नन्हीं-नन्हीं आंखों से गदराए गेंदे को घूर रही है, जिसे अभी कुछ दिन और खिलना है।

ब्लॉग से और खबरें
"छह महीने से कहीं दुबकी हुई थी जो छिपकलियां, वे घरों की दीवारों-छतों पर फिर रेंगने लगी हैं। हवा और पानी में कुलबुलाने लगे हैं तरह-तरह के रोगाणु। शहर के बाहर खेतों में फूली पीली-पीली सरसों अब पकने लगी है। गेहूं की खड़ी बालियों के भीतर पनपा दुधिया प्राण तत्व ठोस आकार लेने लगा है और अमराइयों की शाखाओं में उठ रहा  है बौर। अर्थात मौसम सचमुच बदल गया है।
"और मौसम का इस तरह बदल जाना भी तो एक खबर होता है हुजूर, और ऐन इसी शहर में!"(लिखा गया 15 मार्च, 1992, यहां प्रस्तुत- 21 फरवरी, 2023)
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
नवीन जोशी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

ब्लॉग से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें