राजनीति में चोर-चोर मौसेरे भाई
चौटाला और लालू यादव को देख रहे हो या नहीं ? उधर कांग्रेस के प्रवक्ता कह रहे हैं, बस चार-छह महीने की देर है। जैसे ही पप्पूजी सत्ता में आए, राफ़ेल-सौदे की जांच होगी और गप्पूजी अंदर हो जाएंगे। वाह क्या बात है, हमारे नेताओं की ! उनकी इस अदा पर कुरबान हो जाने को जी चाहता है। सबको पता है कि भ्रष्टाचार के बिना आज की राजनीति हो ही नहीं सकती। सारे नेता जानते हैं कि जैसे सत्ता में रहते हुए उन्होंने बेलगाम भ्रष्टाचार किया है, बिल्कुल वैसा ही अब उनके विरोधी भी कर रहे हैं या कर रहे होंगे। सत्ता में रहने पर खुद को चोरी करनी पड़ी है तो उसी कुर्सी में बैठनेवाले को चोर कहने में उन्हें संकोच क्यों होगा ? चोर चोर मौसेरे भाई ! लेकिन यहां एक प्रश्न है। यदि आपको यह शक है या आपको पूरा विश्वास है किसत्ता में रहते हुए इन विरोधी नेताओं ने अवैध लूटपाट की है तो मैं आपसे पूछता हूं कि आप साढ़े चार साल से क्या घास काट रहे थे ? कौन सा कंबल ओढ़कर आप खर्राटे खींच रहे थे?
आपने अखिलेश, मायावती, हुड्डा वगैरह पर तब ही मुक़दमे क्यों नहीं चलाए? यदि वे मुख्यमंत्री रहते हुए जेल जाते तो अदालत की तो साख बढ़ती ही, आपके बारे में भी यह राय बनती कि यह उन राष्ट्रभक्तों की सरकार है, जो किसी का लिहाज़ नहीं करती है और ‘न ख़ुद खाती है और न किसी को खाने देती है।' लेकिन अब चुनाव के वक़्त आपके पिंजरे का तोता (सीबीआई) चाहे जितना रोए-पीटे, उसकी कोई कद्र होने वाली नहीं है। उसकी कोई सुननेवाला नहीं है।
इन नेताओं ने सचमुच कुछ जघन्य अपराध यदि किए भी हों, तब भी लोग यही मानेंगे कि सरकार अपनी खाल बचाने के लिए इनकी खाल उधेड़ने में जुटी हुई है। महागठबंधन की खबरों से डरी हुई सरकार अगर इस वक्त यह पैतरा अपनाएगी तो वह अपनी क़ब्र खुद खोदेगी।
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