भारतीय विदेश सेवा से इस्तीफ़ा देकर 1984 में राजनीति में आने वाले नटवर सिंह का राजनीतिक सफर हिचकोले भरा रहा है। विदेश सेवा के दौरान वह प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में पीएमओ में रहे। राजीव गांधी सरकार में 1989 तक मंत्री रहे। फिर 1989 में चुनाव हारे, 1991 में भी सांसद नहीं रहे।
गांधी परिवार पर आस्था के कारण तब के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से उनके रिश्ते खराब रहे। अर्जुन सिंह और नारायण दत्त तिवारी के साथ कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बना ली। सोनिया गांधी के आने पर फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए।
गांधी परिवार के प्रति निष्ठा से 1998 में भरतपुर से टिकट लेकर सांसद बन गए, लेकिन 1999 का चुनाव हार गए। कांग्रेस ने साल 2002 में राजस्थान से राज्यसभा सांसद बनाया और 2004 में मनमोहन सिंह सरकार में विदेश मंत्री बनाए गए लेकिन वोल्कर घोटाले में नाम आने पर 2006 में मंत्री पद गंवाना पड़ा। बेटे और नटवर सिंह कांग्रेस पार्टी से बाहर हो गए।
2008 में बीएसपी में शामिल तो हो गए लेकिन चार महीने में निकाल दिए गए। पिछले दिनों उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मुलाकात की है। अब पढ़िए, विजय त्रिवेदी के सवाल और नटवर सिंह के जवाब।
विजय त्रिवेदी: किसान आंदोलन को दस महीने से ज़्यादा का वक्त हो गया, इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है और अब यह कैसे सुलझ सकता है?
नटवर सिंहः मुझे लगता है कि एक हद तक दोनों सही हैं और दोनों ग़लत भी, सरकार भी, किसान भी। मुझे नहीं लगता कि किसान इतने दिनों तक इसे खींच पाएंगे, मगर अब यह दोनों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है, शायद इसलिए कोई पीछे नहीं हटना चाहता। इस विवाद को खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री और किसानों के बीच बातचीत की ज़रूरत है, यदि प्रधानमंत्री मोदी बात करेंगे तो किसान मान सकते हैं और इसके लिए फिलहाल मुझे कैप्टन अमरिंदर सिंह सबसे सही व्यक्ति लगते हैं।
पहले स्तर पर अमरिंदर प्रधानमंत्री से बात करें और फिर किसानों और पीएम के बीच बातचीत हो। किसानों को कैप्टन पर भरोसा हो सकता है। अमरिंदर सिंह ठीक से रिस्पांस करें तो गाड़ी आगे बढ़ सकती है।
विजय त्रिवेदी: सरकार की तरफ से कृषि मंत्री और कुछ दूसरे नेताओं ने भी तो एक दर्जन से ज़्यादा बार बात की है लेकिन किसान नहीं माने?
नटवर सिंहः किसानों को कृषि मंत्री पर भरोसा नहीं है लेकिन प्रधानमंत्री देश की नुमाइंदगी करते हैं। उन्हें ऐसे विश्वास की ज़रूरत है जिस पर आगे बढ़ा जा सके, अब पीएम को आगे आना चाहिए। किसान भी थक गए हैं।
विजय त्रिवेदी: हाल में प्रदर्शनकारी किसानों के साथ यूपी के लखीमपुर खीरी में जो घटना हुई और फिर विपक्षी नेताओं को यूपी सरकार ने गिरफ़्तार कर लिया और अभियुक्त गिरफ्तार नहीं हुए?
नटवर सिंहः मैं समझता हूं कि यूपी सरकार ने इसे मिसहैंडल किया। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी को गिरफ्तार करने की ज़रूरत ही नहीं थी, उससे वो मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर उछल गया और दोषियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए था।
मुझे लगता है कि मंत्री जी यानी अजय मिश्रा को नैतिक आधार पर इस्तीफ़ा दे देना चाहिए या मांग लिया जाना चाहिए था।
विजय त्रिवेदी: आपने कैप्टन साहब का ज़िक्र किया, क्या आपको लगता है कि कैप्टन को बीजेपी में शामिल होना चाहिए या कांग्रेस ने ठीक बर्ताव नहीं किया उनके साथ, 80 साल के हो गए, पार्टी उन्हें कब तक सीएम बनाए रखे?
नटवर सिंहः बीजेपी में शामिल होने से क्या मिलेगा, पंजाब में तो बीजेपी कुछ है ही नहीं। मुझे लगता है कि उन्हें जल्दी से जल्दी अपनी नयी पार्टी बना लेनी चाहिए। लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने उनके साथ ठीक बर्ताव नहीं किया। वो सीएम हैं और उन्हें बताए बिना पार्टी की बैठक कर रहे हैं दिल्ली में। बिना उनसे सलाह या जानकारी के आपने नया मुख्यमंत्री चुन लिया।
सोनिया जी को कैप्टन को दिल्ली बुलाना चाहिए था और कहना चाहिए था कि हम नेता बदलना चाहते हैं, आपकी उम्र हो गई है या जो भी कारण उन्हें लगता हो। तो शायद कैप्टन भी मान जाते, लेकिन हाईकमान ने उन्हें आहत किया, जिसे किसी भी हाल में अच्छा नहीं कहा जा सकता।
विजय त्रिवेदी: क्या आपको लगता है कि किसान आंदोलन और इस घटना से बीजेपी को आने वाले विधानसभा चुनाव में नुकसान होगा?
नटवर सिंहः नुकसान तो होगा लेकिन लगता है कि वह फिर भी सरकार बना लेगी। जाट समाज का वोट पचास फीसद से ज़्यादा नहीं मिल पाएगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नुकसान होना है, लेकिन कांग्रेस को ज़्यादा फायदा होने वाला नहीं, उसकी दस-पांच सीटें कुल मिला कर बढ़ सकती हैं।
हां, प्रियंका के एक्शन से कांग्रेस को यूपी में फिर से जीवनदान मिल गया है और इससे कांग्रेस के कार्यकर्ता को ऊर्जा मिलेगी।
नटवर सिंहः देखिए, एक बात है कि आज भी कांग्रेस अकेली पार्टी है जिसका कार्यकर्ता आपको देश भर में मिल जाएगा, कन्याकुमारी से शिलांग तक, राष्ट्रीय स्तर पर उसकी मौजूदगी है। करीब बीस करोड़ वोटर भी हैं यानी वो विपक्षी पार्टियों में सबसे बड़ी पार्टी हो सकती है लेकिन उसकी लीडरशिप इतनी कमज़ोर है, ऐसे में दूसरी पार्टियां क्या उसकी लीडरशिप में या उसके छाते के नीचे आ सकती हैं।
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मुझे लगता है कि शरद पवार जैसे नेता लीड करें तो विपक्षी एकता की बात सिरे चढ़ सकती है, देश की आठ-दस बड़ी पार्टियां जुड़ जाएं तो फिर माहौल बन सकता है। मगर बीजेपी के ख़िलाफ एकजुट होने के लिए जिस जयप्रकाश नारायण या मोरारजी देसाई की ज़रूरत है वो नहीं हैं।
नटवर सिंह, पूर्व विदेश मंत्री।
विजय त्रिवेदी: विपक्षी एकता तो दूसरा कदम है, क्या खुद कांग्रेस एक हो सकती है, अभी तो वहीं घमासान चल रहा है, वह कैसे सुलझेगा?
नटवर सिंहः यह इतना आसान काम नहीं है। दरअसल, कांग्रेस में तीन हाईकमान हैं, ये तीनों हटेंगे नहीं। फिर दूसरी बात इनके ख़िलाफ़ कोई आएगा नहीं। जो लोग पार्टी में पद पर नहीं हैं, वो फ़ैसले ले रहे हैं। पिछले बीस साल से किसी दूसरे नेता को आगे बढ़ने ही नहीं दिया तो कौन होगा नेता और कोई आगे आएगा तो उसे ये तीनों मंज़ूर नहीं करेंगे।
अपने अलावा जिसे मजूंर करेंगे वो इनके आदेश के सिवाय कुछ नहीं करेगा, तो यह बहुत मुश्किल है और इससे भी बड़ा सवाल है कि क्या वो कुर्सी छोड़ना चाहते हैं।
अभी कपिल सिब्बल ने कुछ बोला तो किसी के इशारे पर कुछ लोग उनके घर के बाहर प्रदर्शन करने पहुंच गए, क्या कांग्रेस लीडरशिप ने इस पर आपत्ति या नाराज़गी जताई, किसी के ख़िलाफ़ कोई एक्शन हुआ?
विजय त्रिवेदी: राहुल गांधी ने तो कई बार कहा है कि वो फिर से अध्यक्ष नहीं बनेंगे, कोई दूसरा लीडर आगे क्यों नहीं आता और कोई गैर गांधी परिवार का नेता कांग्रेस को बेहतर प्रदर्शन के लिए तैयार कर सकता है?
नटवर सिंहः बिलकुल नहीं, इस कांग्रेस को गांधी परिवार ही चला सकता है, वो इसका एडहेसिव है, जिससे कांग्रेस जुड़ी हुई है। कोई दूसरा संभालेगा तो एकबार तो पार्टी टूट जाएगी। सच तो यह है कि कोई इतना दिग्गज नेता बचा नहीं है कांग्रेस में, जो पार्टी को फिर से खड़ा कर सके।
जितने लोग विरोध कर रहे हैं या आप जिसे G-23 कहते हैं वो कभी-कभार चिट्ठी लिखकर या प्रेस कॉन्फ्रेन्स से विरोध की रस्म अदायगी कर देते हैं, आगे क्यों नहीं आते।
अभी देश में जो हालात हैं, किसान आंदोलन है क्या कांग्रेस के इस ग्रुप का कोई नेता आपको दिखाई दिया और फिर वो लोग गांधी परिवार की लीडरशिप बदलने की बात नहीं करते, वो तो कहते हैं चर्चा कीजिए, बैठक कीजिए, कार्यसमिति और एआईसीसी की बैठक बुलाइए, लेकिन वो भी नहीं हो रही।
मुझे लगता है कि राजेश पायलट जैसा नेता होता तो वो ज़रूर आगे आता। उस वक्त भी हमने और दूसरे कई नेताओं ने पायलट को समझाया था, लेकिन वो पार्टी की बैठक में बोले, खुलकर बोले और कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि पार्टी में कोई दूसरा ओपिनियन ही ना हो।
विजय त्रिवेदी: इंदिरा गांधी ने दो-दो बार पार्टी तोड़ दी थी, उस वक्त तो बहुत दिग्गज नेता थे पार्टी में, क्या आपको लगता है कि राहुल गांधी को भी अपनी नयी पार्टी बना लेनी चाहिए और कांग्रेस में उनके विरोधी नेताओं को कह दें, वो संभाले पुरानी कांग्रेस को?
नटवर सिंहः (थोड़ा मुस्कराते हुए), नहीं, नहीं, इंदिरा गांधी से मौजूदा लीडरशिप की तुलना करना ठीक नहीं, वो बहुत हिम्मती नेता थीं, उस वक्त कितने बड़े नेता थे कांग्रेस में निजलिंगप्पा थे, कामराज थे, चव्हाण थे, सिंडिकेट को धराशायी कर दिया उन्होंने, लेकिन जब बात नहीं बनी तो ना केवल नयी पार्टी बना ली, बल्कि उसे फिर से खड़ा कर दिया और सरकार बना कर शानदार वापसी की। फिलहाल मुझे ऐसी टूट नहीं दिखाई देती।
विजय त्रिवेदी: कहा जाता है कि आपकी गांधी परिवार से बहुत नजदीकी रही, इंदिरा गांधी के वक्त पीएमओ में रहे, राजीव गांधी की सरकार में मंत्री और फिर सोनिया गांधी की लीडरशिप वाली पार्टी की मनमोहन सिंह सरकार में विदेश मंत्री, तो ऐसा क्या हुआ कि वोल्कर मामले में आपको कुर्सी ही नहीं कांग्रेस भी छोड़नी पड़ी?
नटवर सिंहः (थोड़ा रुकते हैं, चश्मा ठीक करते हैं, लंबी सांस लेते हैं), उस वक्त कांग्रेस के ही कुछ लोगों ने सोनिया जी को बहका दिया था, मामला तो कुछ था ही नहीं मेरे ख़िलाफ़, पैसा लेने की बात क्या होती, पैसा तो उसमें था ही नहीं।
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दरअसल, कुछ लोगों को मेरा उस सरकार में विदेश मंत्री बनना पसंद नहीं आ रहा था, तो उन सबने मिलकर पार्टी हाईकमान को समझा दिया कि इस मामले की आंच आप तक भी आ सकती है। मैंने इस्तीफ़ा दे दिया। फिर एक बार बात भी हुई, लेकिन मैंने उसे आगे नहीं बढ़ाया।
नटवर सिंह, पूर्व विदेश मंत्री।
विजय त्रिवेदी: आपने कुछ समय पहले प्रधानमंत्री मोदी से भी मुलाकात की थी, क्या बात हुई, प्रधानमंत्री मोदी के बारे में आपकी क्या राय है?
नटवर सिंहः सामान्य मुलाकात थी, अब नब्बे पार का हो गया हूं, मुझे कुछ पद या कुछ और नहीं चाहिए, लेकिन मोदी दबंग नेता हैं, अपने हिसाब से सरकार को चलाते हैं, लेकिन इंदिरा गांधी भी सरकार ऐसे ही चलाती थीं। उसके बिना चलती नहीं।
मोदी ने मंत्रियों को कह दिया, अपना-अपना काम कीजिए, मुझे परेशान मत कीजिए। नीति निर्धारण वो खुद करते हैं, उसमें किसी का दखल नहीं। और सबसे अहम बात अब मौजूदा राजनीति में उन्हें चुनौती देने वाला नेता फिलहाल कोई नहीं दिखता।
सब मिल जाएं और शरद पवार जैसे को लीडर बनाएं तो शायद चुनौती दी जा सके, लेकिन कुछ खास होता दिखता नहीं।
विजय त्रिवेदी: आप लंबे समय तक विदेश सेवा में रहे, पीएमओ में रहे और विदेश मंत्री भी, क्या मौजूदा सरकार की विदेश नीति पर कामकाज से संतुष्ट हैं?
नटवर सिंहः देखिए, विदेश नीति में दो चीज़ें होती हैं एक डिप्लोमेसी और दूसरा कूटनीति, तो डिप्लोमेसी यानी क्या करना है और कूटनीति यानी कैसे करना है। तो देशों की डिप्लोमेसी तो आमतौर पर बदलती नहीं है लेकिन कूटनीति अहम होती है।
जैसे अभी अफ़ग़ानिस्तान में सरकार को पहले जागना चाहिए था, तालिबान के साथ बात करनी चाहिए थी, ट्रैक-2 बातचीत, पर्दे के पीछे से बातचीत, अमेरिका ने की, लेकिन आपने नहीं की। दूसरा, आपने रूस के साथ मजबूत रिश्ते नहीं रखे हैं।
अब रूस और चीन एक साथ हैं, दोनों तालिबान के साथ दिखते हैं, पाकिस्तान के साथ हैं। एक ज़माने से रूस हमारा सबसे भरोसेमंद साथी रहा है, लेकिन वो भरोसा अब कम हुआ है। चीन तो कभी हमें सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता पर सपोर्ट नहीं करेगा, चाहे कुछ ही हो जाए। सीमा पर चीन के साथ माहौल अब भी ठीक नहीं है।
विजय त्रिवेदी: आख़िरी सवाल, आपने अपनी पिछली किताब का शीर्षक रखा- वन लाइफ इज नॉट एनफ, क्या मायने हैं इसके, क्या करना चाहते थे जो नहीं कर पाए आप?
नटवर सिंहः (जोर से हंसते हैं), ऐसा नहीं है, पीएम तो बनना नहीं चाहता था, लेकिन लगता है जिस पद पर या जिस जिम्मेदारी पर आप रहते हैं और जब वहां से निकल कर पीछे मुड़ते हैं तो लगता है कि अभी बहुत कुछ करना था, बहुत कुछ कर सकता था, लेकिन नहीं कर पाया, इसलिए हमेशा, शायद हरेक को लगता है कि एक जिंदगी काफी नहीं है।
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