नए मोटर व्हीकल एक्ट के ख़िलाफ़ दिल्ली-एनसीआर में गुरुवार को ट्रांसपोर्ट हड़ताल है। इसका काफ़ी असर देखा गया है। कई जगहों पर जन-जीवन अस्त व्यस्त देखा गया है और लोगों को बेहद परेशानियों का सामना करना पड़ा है। बसें बड़ी तादाद में सड़कों से दूर रहीं, ऑटो नहीं चले। जिन जगहों पर कुछ ऑटो चालक सड़क पर आए, वहाँ हड़ताल लागू कराने वालों के जत्थों ने उन्हे बीच में ही रोक दिया और मुसाफ़िरों को उतार दिया। नतीजतन, मुसाफ़िरों को पैसे देकर भी बीच रास्ते में उतर कर पैदल चलना पड़ा।
मुसाफ़िर परेशान
दिल्ली-एनसीआर की 51 ट्रांसपॉर्ट यूनियनों ने हड़ताल में शामिल होने का एलान किया है। इसमें बस ऑपरेटर, ऑटो वाले, टैक्सी चालक शामिल हैं। ओला-उबर जैसे एग्रीगेटर भी इससे बाहर नहीं है। नतीजा यह है कि लोगों को बढ़ी हुई दरों पर ही सही, यह सुविधा भी नहीं मिल रही है। निजी बसों के बंद होने का असर स्कूलों पर पड़ा है। दिल्ली-एनसीआर के अधिकतर स्कूल बंद कर दिए गए हैं। इसकी सूचना एक दिन पहले देर रात तक एसएमएस के ज़रिए अभिभावकों को दी गई। कुछ अभिभावकों को यह जानकारी मिली ही नहीं और वे बेहद परेशान हो कर किसी तरह अपने बच्चे को लेकर स्कूल गए तो वहाँ स्कूल बंद पाया।
कई हवाई कंपनियों ने दिल्ली से उड़ान भरने वाले मुसाफ़िरों को एसएमएस कर समय से पहले घर से निकलने का आग्रह किया। रेल यात्रियों को काफ़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा, क्योंकि स्टेशनों पर उन्हें टैक्सी-ऑटो मिल नहीं रहे थे, जो मिल रहे थे, वे अनाप-शनाप पैसे माँग रहे थे।
डीटीसी, मेट्रो पर दबाव
इसका सबसे साफ़ असर यह दिखा कि दिल्ली ट्रांसपोर्ट निगम यानी डीटीसी की बसों पर बहुत ही अधिक दबाव पड़ा। इन बसों में ज़बरदस्त भीड़ देखी गई, लोग किसी तरह बसों में लद कर यात्रा करते रहे। मेट्रो रेल में सामान्य दिनों की तुलना में बहुत अधिक भीड़ देखी गई। ऑटो वाले सामान्य दिनों से भी अधिक लोगों को किसी तरह लाद कर गाड़ी चलाते हुए देखे गए, यात्रियों से पैसे सामान्य दिनों की तरह ही लिए गए, लेकिन उन्हें बीच में उतार दिया गया। वे फिर जिस ऑटो में बैठे, उन्हें उसे भी पैसे देने पड़े। इस तरह यात्रियों को दिक़्क़तें हुई और पैसे भी अधिक चुकाने पड़े।
मजे की बात यह है कि ऑटो वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई अधिक यात्रियों को बैठाने के लिए होती थी, उन पर जुर्माना लगता था, उसके ख़िलाफ़ उन्होंंने आज हड़ताल कर दी और आज ही उन तमाम नियमों की धज्जियाँ भी उड़ा कर रख दीं।
आम जनता में इस परिवहन हड़ताल पर ज़बरदस्त गुस्सा देखा गया। लोग यह कहते हुए सुने गए कि बस-ऑटो वाले नियम क़ानून नहीं मानेंगे और कड़ाई करने पर हड़ताल कर देंगे, भुगतना हमें है। लोगों ने सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा उतारा और खूब ट्वीट किए, फेसबुक पर पोस्ट कर आपबीती सुनाई।
क्या कहना है कि ऑटो वालों का?
ऑटो- टैक्सी ड्राइवरों का कहना है कि वे बढ़े हुए जुर्माने से परेशान हैं। उनका कहना है कि ऑटो- टैक्सी चलाने वालों के 20 से 30 हजार रुपये तक के जुर्माने हो रहे हैं और ऐसे में वे अपना घर कैसे चलाएंगे। ओला- उबर टैक्सियों के ड्राइवरों को भी इस तरह का जुर्माना देना पड़ रहा है। दिल्ली में 90 हजार से ज्यादा ऑटो और करीब 10 हजार काली-पीली टैक्सियाँ चलती हैं।
इस हड़ताल की वजह से दिल्ली-नोएडा में करीब 50 हजार गाड़ियाँ सड़कों से दूर हैं। नोएडा ट्रांसपोर्ट यूनाइटेड फ्रंट ने भी यूएफटीए का साथ देते हुए हड़ताल का ऐलान किया है और उसके सदस्य इसमें शामिल हुए हैं। यूएफटीए के अध्यक्ष हरीश सभरवाल ने दैनिक भास्कर से कहा कि मोटर व्हीकल एक्ट के नए प्रावधानों के तहत भारी जुर्माने पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने इसे भ्रष्टाचार का नया साधन बताया। उन्होंने कहा, “सरकार ने जुर्माना तो बढ़ा दिया, लेकिन इसे ठीक से लागू करने के लिए कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं तैयार किया। ट्रैफिक इंस्पेक्टरों के पास अब भी बॉडी कैमरा नहीं है, न ही उनके पास कोई माइक्रोफोन है। सरकार ने तय किया था कि सिर्फ एसीपी और एसडीएम रैंक का अफ़सर ही बड़े चालान करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।”
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