चुनावों में सभी ईवीएम के वोटों का मिलान वीवीपैट मशीन की पर्चियों से कराने की मांग वाली याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर इस पर जवाब मांगा है।
अब इस मामले में अगली सुनवाई 17 मई को होगी। सुप्रीम कोर्ट की यह खंडपीठ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अरुण कुमार अग्रवाल की ओर से अगस्त 2023 में दायर की गई उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें मांग की गई थी कि सभी ईवीएम में पड़े मतों का मिलान वीवीपैट की पर्चियों से करना चाहिए।
इस याचिका में कहा गया है कि मतदाताओं को वीवीपैट की पर्ची को फिजिकली वेरिफाई करने का भी मौका दिया जाना चाहिए। मतदाताओं को खुद बैलेट बॉक्स में इस पर्ची डालने की सुविधा दी जानी चाहिए।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि इससे चुनाव में गड़बड़ी होने की आशंका खत्म होगी। वर्तमान में चुनाव में उस निर्वाचन क्षेत्र के 5 ईवीएम का रैंडम तरीके से वीवीपैट की पर्चियों से मिलान किया जाता है।
लॉ से जुड़ी खबरों की वेबसाइट बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना की है कि प्रत्येक ईवीएम वोट का मिलान वीवीपैट पर्चियों से किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से यह निर्देश देने की भी मांग की है कि मतदाताओं को वीवीपैट द्वारा उत्पन्न पर्चियों को मतपेटी में भौतिक रूप से डालने की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मतदाता का मत 'रिकॉर्ड के रूप में गिना गया है।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है और इस याचिका को ईवीएम और वीवीपैट से संबंधित अन्य लंबित मामलों के साथ टैग कर दिया है।
अरुण कुमार अग्रवाल द्वारा दायर इस याचिका में चुनाव आयोग के उस दिशानिर्देश को चुनौती दी गई है जो वीवीपैट सत्यापन को क्रमिक रूप से आयोजित करने का आदेश देता है, यानी, एक के बाद एक, जिससे अनुचित देरी होती है।
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पूरा वीवीपैट सत्यापन 5-6 घंटे में हो सकता
बार एंड बेंच की यह रिपोर्ट कहती है कि इस याचिका में तर्क दिया गया कि एक साथ सत्यापन करने और प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में गिनती के लिए अतिरिक्त अधिकारियों को तैनात करने से 5-6 घंटे के भीतर पूरा वीवीपैट सत्यापन किया जा सकता है।इस याचिका में कहा गया है कि सरकार द्वारा लगभग 24 लाख वीवीपैट की खरीद पर लगभग 5,000 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद, केवल लगभग 20,000 वीवीपैट की पर्चियों का सत्यापन किया जाता है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वीवीपैट और ईवीएम के बारे में विशेषज्ञों द्वारा कई चिंताएं उठाई जा चुकी हैं। पूर्व के समय में ईवीएम और वीवीपैट वोटों की गिनती के बीच कथित विसंगतियों की महत्वपूर्ण संख्या के बीच, यह आवश्यक है कि सभी वीवीपैट पर्चियों की सावधानीपूर्वक गिनती की जाए।
इसके साथ ही इस याचिका में दलील दी गई है कि मतदाताओं को अपनी वीवीपैट पर्चियों को भौतिक रूप से मतपेटी में जमा करने की अनुमति देकर यह पूरी तरह से सत्यापित करने का अवसर दिया जाना चाहिए कि ईवीएम पर उनके वोटों का सटीक हिसाब लगाया गया है।
बार एंड बेंच की यह रिपोर्ट कहती है कि ईवीएम के साथ वीवीपैट पर्चियों का मिलान हमेशा विवाद का विषय रहा है। 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले, लगभग 21 विपक्षी राजनीतिक दलों के नेताओं ने सभी ईवीएम के कम से कम 50 प्रतिशत वीवीपैट सत्यापन की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।उस समय, चुनाव आयोग प्रति विधानसभा क्षेत्र में केवल एक रैंडम ईवीएम का वीवीपैट से मिलान करता था।
8 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने यह संख्या 1 से बढ़ाकर 5 कर दी और उस याचिका का निपटारा कर दिया था।वहीं मई 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने सभी ईवीएम के वीवीपैट सत्यापन की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया था।
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