प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में राम मंदिर निर्माण के लिये ट्रस्ट बनाने की बात कही और कहा कि यह विषय उनके दिल के बेहद क़रीब है। प्रधानमंत्री के ट्रस्ट को लेकर घोषणा करते ही बीजेपी नेताओं और दक्षिणपंथी संगठनों ने सोशल मीडिया पर कमेंट्स की बमबारी कर दी और इसे राम मंदिर निर्माण की दिशा में अहम क़दम बताया। लेकिन कांग्रेस और एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस एलान की टाइमिंग पर सवाल उठाया और कहा कि दिल्ली के चुनाव में सियासी फायदे के लिये इस वक्त़ यह घोषणा की गई है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है।
शाहीन बाग़ तक सिमटा चुनाव
दिल्ली का पूरा चुनाव नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में शाहीन बाग़ में चल रहे धरने तक सिमट कर रह गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अगुवाई में चुनाव लड़ रही बीजेपी के तमाम नेताओं ने शाहीन बाग़ के धरने और एक समुदाय विशेष के लोगों को निशाने पर रखा। शाह अपनी लगभग हर सभा में कहते रहे कि ईवीएम का बटन इतनी जोर से दबायें कि करंट शाहीन बाग़ में लगे। इसके अलावा पश्चिमी दिल्ली से बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा ने शाहीन बाग़ में बैठे लोगों को लेकर घरों में घुसकर रेप करेंगे और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने 'देश के गद्दारों को, गोली मारो…का' नारा लगाया और लगवाया।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई बार कहा कि केजरीवाल सरकार शाहीन बाग़ में बैठे प्रदर्शनकारियों को बिरयानी खिला रही है। सांसद और केंद्रीय मंत्री ने केजरीवाल को आतंकवादी भी कहा। यह भी कहा गया कि दिल्ली में 20 फ़ीसदी बनाम 80 फ़ीसदी की लड़ाई है।
साफ़ हो गया कि बीजेपी की कोशिश चुनाव में ध्रुवीकरण करने की है। इसी वक़्त प्रधानमंत्री ने राम मंदिर निर्माण के लिये ट्रस्ट की घोषणा कर हिंदू मतदाताओं को लुभाने की एक और कोशिश की। वैसे भी बीजेपी नेता हर रैली में राम मंदिर निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को लेकर कांग्रेस को घेरते रहे, उस पर मंदिर निर्माण में अंडगा डालने का आरोप लगाया और कोर्ट के फ़ैसले का श्रेय मोदी सरकार को देते रहे।
2 करोड़ मतदाताओं वाली दिल्ली में अधिकांश तबक़ा शिक्षित और बेहद जागरूक है। उसे धर्म, जाति के नाम पर बहलाना आसान नहीं होता। परचून की दुकान पर बैठा शख़्स भी काफ़ी ज्ञान रखता है और वह इस बात को समझता है कि उसके लिये किसने क्या किया है। लेकिन जैसा, ऊपर कहा कि दिल्ली में ऐसा चुनाव पहली बार हुआ है जिसमें धर्म के आधार पर लाइन खींचने की कोशिश की गई है।
बीजेपी के पास दिल्ली में चेहरा नहीं
बीजेपी की सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि उसके पास दिल्ली में कोई चेहरा नहीं है। अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर उसे चुनौती दी है कि वह अपने मुख्यमंत्री पद के चेहरे को घोषित करे। केजरीवाल इससे पहले भी बीजेपी पर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने को लेकर दबाव बनाते रहे हैं। लेकिन पार्टी नेताओं में गुटबाज़ी बढ़ने के डर से और पिछले कुछ चुनावों में इसका अनुभव अच्छा नहीं रहने की वजह से बीजेपी ने इस बार किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया। लेकिन मतदान से ठीक पहले केजरीवाल ने यह दांव खेलकर बीजेपी पर दबाव बढ़ा दिया है। इसके अलावा बीजेपी के सामने एक और मुसीबत यह है कि वह दिल्ली के तीनों नगर निगमों में काबिज होने के बाद भी उसके कामकाज के आधार पर वोट मांगने की हिम्मत नहीं कर सकी। ‘आप’ लगातार नगर निगमों में भ्रष्टाचार को लेकर बीजेपी को घेरती रही है।बीजेपी को थी मुद्दे की तलाश
नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में दिल्ली के कई इलाक़ों में पिछले कई दिनों से धरना दे रहे मुसलिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के ख़िलाफ़ वोट डाल सकता है। क्योंकि शाहीन बाग़ का आंदोलन लगातार बीजेपी नेताओं के निशाने पर है। चुनाव से कुछ दिन पहले तक सीन से ग़ायब नज़र आ रही बीजेपी ने अचानक शाहीन बाग़ को मुद्दा बनाया क्योंकि उसे यह लगा कि इस मुद्दे पर वह दिल्ली में ध्रुवीकरण कर सकती है। अपनी सरकार के कामकाज को चुनावी मुद्दा बना रहे अरविंद केजरीवाल से मुक़ाबले के लिये बीजेपी को ऐसे ही मुद्दे की ज़रूरत थी और वह उसे शाहीन बाग़ के रूप में मिल गया।
मतदान से ठीक पहले राम मंदिर निर्माण के लिये ट्रस्ट के गठन की घोषणा करके बीजेपी ने दिल्ली का विधानसभा चुनाव जीतने के लिये अपना अंतिम पासा फेंका है। लेकिन देखना होगा कि मिली-जुली संस्कृति और पेशेवरों से भरी दिल्ली के मतदाता क्या पहली बार धार्मिक आधार पर वोट देंगे या वे यह देखेंगे कि कौन उनके लिये बेहतर काम कर सकता है, फिर चाहे वह बीजेपी हो, आम आदमी पार्टी हो या फिर कांग्रेस।
अपनी राय बतायें