एक चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है कि दिल्ली में हिंसा शुरू होने से एक दिन पहले यानी रविवार को ट्रकों में भरकर बाहर से लोग और ईंट-पत्थर लाए गए थे। शायद साथ में हथियार भी हों। इससे साफ़-साफ़ लगता है कि दंगा कराया गया है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि इसकी पहले से तैयारी की गई थी और इसमें एक साथ कई प्रयोग किए गए। ये प्रयोग क़त्लेआम करने के लिए थे। क्या एक साथ 10 ट्रकों में भरकर लोगों को बाहर से लाया जाए तो इसे प्रयोग नहीं कहेंगे? ट्रक में ईंट-पत्थर बाहर से मंगाया जाए तो इसे क्या कहेंगे? क्या कहेंगे जब दंगे में तलवार-चाकू, लाठी-डंडे, ईंट-पत्थरों से काफ़ी आगे बढ़ नये-नये तरीक़े इस्तेमाल किए जाएँ? बंदूकें चलें। पेट्रोल बम का इस्तेमाल हो। इन्हें ज़्यादा से ज़्यादा दूर फेंकने के लिए बड़े-बड़े गुलेल बनाए जाएँ। चार-पाँच मंजिली बिल्डिंगों पर चढ़ने के लिए रस्सी का ऐसे इस्तेमाल किया जाए जिसे ख़ास ट्रेनिंग वाले लोग ही इस्तेमाल करते हैं। ख़ासकर मिलिट्री के लोग या रॉक क्लाइंबर। क्या ये बड़ी साज़िश की तरफ़ इशारा नहीं करते और क्या इसकी तैयारी काफ़ी पहले से नहीं की गई थी?
दंगे से जुड़ी जैसी-जैसी जानकारियाँ सामने आ रही हैं, वे चौंकाती हैं। अब एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसा शुरू होने से एक दिन पहले यानी रविवार को एक साथ दस ट्रकों को दिल्ली में देखा गया जिसमें क़रीब 70 लोग भरे थे। उत्तर-पूर्वी दिल्ली के भजनपुरा में रहने वाले ओमवीर नाम के व्यक्ति ने उस वक़्त के वाक़ये को सुनाया जब पुश्ता रोड पर वह अपनी दुकान पर बैठे थे। 'हिंदुस्तान टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार, ओमवीर ने दस ट्रकों को सर्विस लेन में पार्क किया हुआ देखा जिसमें 20-30 साल की उम्र के क़रीब 70 युवा थे।
ओमवीर ने कहा कि वे सभी बाहरी लोग थे। उन्होंने कहा कि 20 मिनट में एक और ट्रक आया और उसमें बिल्डिंग निर्माण में काम आने वाले ईंट के टुकड़े भरे थे। उन्होंने कहा कि तब वह इस बारे में दोनों मामलों को जोड़कर नहीं देख पाए थे। ओमवीर के अनुसार, लेकिन जब अगले दिन हिंसा की ख़बर आई और कहा जाने लगा कि बाहरी लोग शामिल थे तब उनको इसका अहसास हुआ। उन्होंने कहा, 'वे स्थानीय नहीं थे। वे मज़दूर भी नहीं दिख रहे थे। सभी युवा थे। कौन जानता है कि वे अपनी पीठ पर बैकपैक (बैग) में क्या ले जा रहे थे? पत्थर होंगे या हथियार।'
ओमवीर ने ट्रक में भरे लोगों के बारे में उनके बाहर के होने की जो बात कही है वही बात ख़ुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तीन दिन पहले ही विधायकों के साथ बैठक करने के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कही थी। उन्होंने कहा था कि सीमा क्षेत्र के विधायकों ने कहा है कि दिल्ली में बाहर से लोग आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को रोकने की ज़रूरत है और संदिग्ध लोगों को गिरफ़्तार किया जाना चाहिए।
हिंसा में बाहर के लोगों के हाथ होने के आरोप हिंसा प्रभावित क्षेत्र के लोगों ने भी लगाए हैं। कई रिपोर्टों में स्थानीय लोगों ने ऐसा ही दावा किया है।
कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि शुक्रवार से ही सीमापुर में बाहरी लोगों की हलचल हो रही थी। 'हिंन्दुस्तान टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार सीमापुरी निवासी मुहम्मद इरफ़ान ने बाहरी लोगों के होने की बात कही। उन्होंने कहा कि वह अपनी कॉलोनी की रखवाली कर रहे थे तभी उन्होंने हरियाणा रजिस्ट्रेशन नंबर के तीन वाहनों को देखा। उन्होंने कहा, 'हम यह नहीं देख पाए कि उन गाड़ियों में कितने लोग थे, लेकिन जब कॉलोनी के लोगों से घिरते हुए दिखे तो वे गाड़ी घुमाकर चले गए।'
ज़ीरो पुश्ता के निवासी नीलम मिश्रा ने कहा कि उनके पड़ोस में मंगलवार देर रात को एक दर्जन से ज़्यादा मोटरसाइकिलों पर लोग आए। उन्होंने कहा कि वे सब बाहरी थे क्योंकि यदि वे आसपास के लोग होते तो उनको पहचान लिया जाता।
बाहरी लोगों के हाथ होने का अंदेशा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि हिंसा की जगहों से बड़ी मात्रा में बंदूकों की गोलियाँ पायी गई हैं।
दंगों में या हिंसा की ऐसी घटनाओं में आम तौर पर ऐसा नहीं देखा जाता है कि इस स्तर पर बंदूक जैसे हथियारों का इस्तेमाल किया जाता हो। दिल्ली दंगे के मामले में पुलिस ने घायलों की जो संख्या 250 बताई है उसमें 82 लोगों को गोली लगी है।
सवाल है कि हिंसा भड़कने के दौरान लोगों के पास इतनी बड़ी मात्रा में हथियार कहाँ से आए?
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