एक के बाद एक दूर होते गठबंधन सहयोगियों और राज्यों में लगातार चुनाव हारती बीजेपी को अब नीतीश कुमार ने अचानक तगड़ा झटका दिया है। उन्होंने विधानसभा में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित किया। मोदी सरकार वाले एनपीआर यानी राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को खारिज कर 2010 वाले फ़ॉर्मेट को लागू करने का प्रस्ताव भी पारित किया है। ऐसे प्रस्ताव अब तक बीजेपी के ख़िलाफ़ रही सरकारें ही पास करती रही हैं और बीजेपी इशारों-इशारों में उन्हें एंटी-नेशनल क़रार देती रही है। यानी बिहार में नीतीश कुमार गठबंधन सरकार में शामिल बीजेपी के ख़िलाफ़ आरपार के मूड में हैं। रिपोर्ट तो यह है कि बीजेपी के नेताओं को इस बारे में पता भी नहीं था। तो नीतीश कुमार ने इतना कड़ा फ़ैसला कैसे ले लिया, वह भी तब जब कहा जा रहा था कि उनके पास बीजेपी का साथ देने के अलावा कोई चारा नहीं है? क्या बीजेपी लगातार चुनाव हारने के कारण बैकफ़ुट पर आ गई है? एक के बाद एक सहयोगी दलों के दूर होने से बीजेपी अपना रवैया बदलने को मजबूर है?