क्या भारत में ऐसा कोई उदाहरण मिलेगा कि किसी सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों को खरीदने के लिए ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ चल रही हो और सत्ताधारी पार्टी अपने विधायकों को बचाने के लिए कोई कोशिश नहीं कर रही हो। झारखंड में तो यूपीए को जमाने भर से छिपाने की कवायद चल रही है। ऐसा ही पहले महाराष्ट्र में देखा गया, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान तक में देखा गया।
मगर, दिल्ली में न विधायकों को छिपाया गया, न रिजॉर्ट या होटल ले जाया गया और न ही राजनीति में कोई हलचल ही दिखाई दी। सत्ताधारी आम आदमी पार्टी में कोई चिंता भी दिखाई ही नहीं दी।
क्या कभी आपने ऐसा देखा है कि जिस पार्टी के पास 70 में से 62 विधायक हों, उस पार्टी की तरफ से यह कहा जा रहा हो कि हमारी सरकार गिराने की कोशिश की जा रही है? क्या कभी आपने ऐसा सुना है कि न तो किसी विधायक को खरीदने का कोई सबूत मिला है और न ही किसी विधायक के पास कोई नोटों से भरा बैग भेजा गया है। यहां तक कि आसपास तो क्या दूर तक ऐसा कोई बैग बरामद भी नहीं हुआ जिसे उन विधायकों को दिया जाना हो, तो भी यह कहा जाए कि हमारे विधायकों को खरीदने की कोशिश की जा रही है, तो सवाल उठेंगे ही। इन सबके बावजूद कहा जा रहा है कि आप विधायकों को खरीदने के लिए ऑपरेशन लोटस चलाया जा रहा है।
दिल्ली में पुरानी शराब नीति के तहत उस समय चल रही 639 दुकानों को बढ़ाकर 849 ठेके कैसे कर दिए गए? आखिर नॉन कनफर्मिंग इलाकों में शराब की दुकानें खोलने की अनुमति कैसे दे दी गई जबकि मास्टर प्लान इसकी मंजूरी नहीं देता?
केजरीवाल तो नॉन प्लेइंग कैप्टेन हैं और सत्येंद्र जैन के जेल जाने के बाद तो सिर्फ सिसोदिया की ही चलती है। अब जो व्यक्ति पहले ही उतना पॉवरफुल हो, उसे बीजेपी अपने यहां लाकर बेड़ियों में जकड़ने का ऑफर कैसे दे सकती है और कोई भी व्यक्ति उसे कैसे स्वीकार कर लेगा।
अगर 2013 वाला माहौल होता तो मान लेते कि बीजेपी चार विधायकों से सरकार बना सकती थी जब बीजेपी के 32 विधायक थे और आम आदमी पार्टी के 28 और तब चार विधायकों से बीजेपी बहुमत के आंकड़े 36 तक पहुंच सकती थी। तब बीजेपी की तमाम कोशिशें बेकार हो गई थीं और आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के आठ विधायकों के समर्थन से सरकार बना ली थी।
आज के हालात में अब अगर चार विधायक बीजेपी के पास आ भी जाते हैं तो कुल आंकड़ा 8 जमा 4 यानी यानी कुल एक दर्जन विधायक का ही हो पाएगा और आम आदमी पार्टी की मजबूत सरकार को तो कोई खतरा ही नहीं होगा। भला ऐसा फुस्स ऑपरेशन लोटस बीजेपी क्यों चलाएगी। जब आप को भी इस केलकुलेशन का आभास हुआ तो उसने कहा कि 4 नहीं, 40 विधायकों को खरीदा जा रहा था।
इस आरोप पर बीजेपी को घेरने के लिए ही दिल्ली में विधानसभा का सिर्फ एक दिन का स्पेशल सेशन 26 अगस्त को बुलाया गया।
हालांकि एजेंडा जारी करते हुए कहा गया कि आम आदमी पार्टी की शिक्षा और स्वास्थ्य में सफलताओं का गुणगान करने के यह सेशन बुलाया गया है लेकिन इसकी कोई चर्चा नहीं हुई। केजरीवाल का भाषण हुआ और उन्होंने अपने भाषण में बीजेपी को ऑपरेशन लोटस पर घेरते हुए कह डाला कि हम विश्वास मत हासिल करेंगे। हम दिखाना चाहते हैं कि हमारा एक भी विधायक नहीं टूटा और चुनौती भी दे डाली कि एक भी विधायक तोड़कर दिखा दो। इसलिए सेशन एक दिन और 29 अगस्त को भी बुला लिया गया।
केजरीवाल ने विश्वास मत पेश किया लेकिन अचानक ही दुर्गेश पाठक ने अपने भाषण में उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना पर 1400 करोड़ के घोटाले का आरोप लगा दिया। अब सभी ऑपरेशन लोटस को भी भूल गए और विश्वास मत को भी। क्या कभी ऐसा भी होता है कि विश्वास मत पेश किया जाए और वह चार दिन तक लटका रहे। उस पर कोई बात ही नहीं हो। क्या कभी ऐसा भी होता है कि विपक्ष को बाहर निकालने के बाद भी किसी सदन की कार्यवाही नहीं चल पाए लेकिन दिल्ली में ऐसा लगातार हुआ।
इस स्क्रिप्ट को पूरा करने के लिए आम आदमी पार्टी ने सीबीआई पर चढ़ाई कर दी कि ऑपरेशन लोटस की जांच की जाए। एक ख्याली पुलाव पका है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 40 विधायकों को खरीदने के लिए 20-20 करोड़ यानी कुल 800 करोड़ रखे गए हैं।
बीजेपी देश भर में अब तक 277 विधायक खरीद चुकी है तो हर विधायक की करोड़ों की कीमत के हिसाब से बीजेपी के पास इतना पैसा कहां से आया। केजरीवाल दूर की कौड़ी यह लाए हैं कि दही, छाछ, पनीर पर जो जीएसटी लगाया गया है, उसी पैसे से विधायक खरीदे जा रहे हैं यानी जीएसटी अब सरकार को नहीं बल्कि बीजेपी को मिल रही है। जीएसटी बढ़ाकर मोदी जी अपने ‘दोस्तों’ के कर्ज माफ कर रहे हैं।
इस सारी स्थिति को देखते हुए समझ में नहीं आता कि आखिर किसे कन्फयूज माना जाए-पब्लिक को कन्फयूज किया जा रहा है, आम आदमी पार्टी खुद कन्फयूज हो गई है या फिर बीजेपी को कन्फयूज करके सारे सवालों को टालने की कोशिश कर रही है। सच्चाई यह तो है ही कि आम आदमी पार्टी सवालों के घेरे में तो अवश्य उलझ गई है और उससे जवाब देते नहीं बन रहा।
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