जेएनयू में नकाबपोशों के हमले की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया, लेकिन लगता है यह दिल्ली पुलिस को टस से मस तक नहीं कर पाई। इस मामले में अब तक कोई गिरफ़्तारी नहीं हो पाई है, लेकिन पुलिस चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी कर रही है। पुलिस का यह काफ़ी अजीब रवैया है। वह भी तब जब 40 दिन हो गए हैं। जेएनयू में दर्जनों नकाबपोश घुसे थे। कम से कम 34 घायल हुए। हिंसा की तसवीरें और वीडियो सामने आए। वाट्सऐप के स्क्रीनशॉट भी आए। इनमें कई की पहचान भी हो गई। कई लोगों के तार बीजेपी-संघ की छात्र ईकाई एबीवीपी से जुड़े होने की रिपोर्टें आईं। बाद में ख़ुद पुलिस ने भी कुछ तसवीरें जारी कीं।
इस मामले में कार्रवाई नहीं करने पर पुलिस को सफ़ाई देते नहीं बन रही है। इसी बीच पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल करने की यह रिपोर्ट 'एनडीटीवी' ने सूत्रों के हवाले से दी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस गिरफ़्तारी नहीं कर सीधे चार्जशीट दाखिल कर गिरफ़्तारी के इस मामले को कोर्ट पर छोड़ देगी। पुलिस के ऐसे रवैये पर सवाल उठते रहे हैं।
सवाल तब भी उठे थे जब हिंसा करने वालों पर पुलिस ने कार्रवाई नहीं कर, जिनपर हमला हुआ उनके ख़िलाफ़ ही एफ़आईआर दर्ज की थी। दरअसल, पाँच जनवरी को दर्जनों नकाबपोश लोगों ने जेएनयू कैंपस में छात्रों और शिक्षकों पर हमला किया था। हमला करने वालों में एबीवीपी से जुड़े सदस्यों का नाम आया। पाँच जनवरी की रात जब हिंसा हो रही थी उसी दौरान एक एफ़आईआर दर्ज कराई गई और इसके अगले दिन भी एक एफ़आईआर दर्ज की गई जिसमें छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष को तीन और चार जनवरी को कथित तोड़फोड़ के लिए आरोपी बनाया गया। वह वामपंथी संगठनों से जुड़ी हैं।
कई मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि इस हिंसा के दौरान की वीडियो फ़ुटेज और तसवीरों में दिख रहे कुछ लोग एबीवीपी से जुड़े हैं। ‘ऑल्ट न्यूज़’ और ‘इंडिया टुडे’ ने दावा किया था कि हमले करने वालों में शामिल एक लड़की का नाम कोमल शर्मा है और वह एबीवीपी की कार्यकर्ता है। ‘इंडिया टुडे’ ने स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया था कि अक्षत अवस्थी और रोहित शाह इस बात को कबूल कर रहे हैं कि जेएनयू में कैसे हमला किया गया। जब इनकी पहचान हुई तो पुलिस को सफ़ाई देनी पड़ी। तब पुलिस ने कहा था कि वह कोमल शर्मा और अक्षत अवस्थी और रोहित शाह को नोटिस भेज चुकी है।
स्टिंग के बाद जिन तीन लोगों की पहचान हुई थी उस पर पुलिस का कहना था कि वह इन तीनों की तलाश में जुटी है और इनके फ़ोन स्विच ऑफ़ हैं। हालाँकि इसके बाद भी वह उन्हें गिरफ़्तार नहीं कर पाई।
चौंकाने वाली बात यह भी है कि पुलिस ने इस पूरे मामले में तीन एफ़आईआर दर्ज की है और 70 गवाहों का बयान दर्ज कर चुकी है।
क़रीब दस दिन पहले ही रिपोर्ट आई थी कि जेएनयू में बनी जाँच कमेटी ने पिछले एक महीने में न तो पीड़ितों से बात करने की कोशिश की और न ही प्रत्यक्षदर्शियों से इस घटना के बारे में जानकारी जुटाने की। आरोप तो यह भी लगते रहे हैं कि पुलिस और जेएनयू प्रशासन पर कार्रवाई नहीं करने के लिए दबाव है। इसका एक कारण तो यह भी है कि दिल्ली पुलिस ने भी हिंसा के लिए फीस बढ़ोतरी का विरोध कर रहे छात्रों को ज़िम्मेदार माना था और उनके ख़िलाफ़ तीन और चार जनवरी के कथित तोड़फोड़ में एफ़आईआर दर्ज की थी।
ऐसे ही एक बयान में जेएनयू के कुलपति एम. जगदीश कुमार ने दावा किया था कि पाँच जनवरी को हिंसा की जड़ तीन और चार जनवरी को तोड़फोड़ में थी।
पिछले महीने पुलिस ने 9 संदिग्धों की तसवीरें जारी की थीं जिनमें से सात वामपंथी संगठनों से जुड़े थे। पुलिस ने इन्हीं सातों पर जोर दिया था। यानी एबीवीपी से जुड़े जिन लोगों के नाम आए उन पर उतना जोर नहीं दिया गया। अब जो सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट आ रही है उसमें भी कहा जा रहा है कि चार्जशीट में छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष और वामपंथी छात्र संगठनों से जुड़े छात्रों के नाम होंगे। हालाँकि कहा जा रहा है कि एबीवीपी सदस्यों के नाम भी आ सकते हैं।
लेकिन सवाल वही है कि चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी है तो कोई गिरफ़्तारी क्यों नहीं हुई है। जानकारों का तो कहना है कि ऐसी स्थिति में गिरफ़्तार करना ज़रूरी होता है। क्या ऐसा किसी दबाव में है?
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