अवध ओझा
आप - पटपड़गंज
हार
अवध ओझा
आप - पटपड़गंज
हार
अरविंद केजरीवाल
आप - नई दिल्ली
हार
प्रवेश सिंह वर्मा
बीजेपी - नई दिल्ली
जीत
मनीष सिसोदिया
आप - जंगपुरा
हार
क्या कांग्रेस आप के साथ गठबंधन में होती तो दिल्ली चुनाव के नतीजे ठीक उलट होते? क्या कांग्रेस के प्रत्याशियों को इतने वोट मिले हैं कि इनके वोट आप प्रत्याशी के साथ जुड़ जाने पर बीजेपी उम्मीदवार हार जाते? कम से कम 13 सीटों पर ऐसी स्थिति बनी है जहाँ कांग्रेस को मिले वोट यदि आम आदमी पार्टी को ट्रांसफर हो जाते तो बीजेपी उम्मीदवार की हार तय थी।
यदि कांग्रेस को मिले वोट आप उम्मीदवार को ट्रांसफर हो जाते तो जिन सीटों पर नतीजे उलटते उनमें अरविंद केजरीवाल की सीट नई दिल्ली, मनीष सिसोदिया की सीट जंगपुरा, सौरभ भारद्वाज की सीट ग्रेटर कैलाश, दुर्गेश पाठक की सीट राजिंदरनगर भी शामिल है।
राजिंदरनगर और जंगपुरा सीट तो बेहद कम अंतर से बीजेपी जीत पाई है। यदि कांग्रेस को मिले वोटों को इसमें शामिल कर लिया जाए तो आसानी से बीजेपी उम्मीदवार से ज़्यादा वोट हो जाएँगे। राजिंदरनगर में कांग्रेस के विनीत यादव को 4015 वोट मिले, जबकि आप के दुर्गेश पाठक 1231 वोटों से हार गए।
जंगपुरा सीट पर मनीष सिसोदिया 675 वोटों से हार गए। कांग्रेस के फरहाद सुरी को 7350 वोट मिले। इस सीट पर तरविंदर सिंह मारवाह 38859 वोट पाकर 675 वोटों से जीत गए। संगम विहार में बीजेपी 344 वोट से जीती। बीजेपी के चंदन कुमार चौधरी को 54049 वोट मिले, जबकि आम आदमी पार्टी के दिनेश मोहनिया को 53705 वोट मिले। कांग्रेस को 15863 वोट मिले। आम उम्मीदवार मोहनिया सिर्फ़ 344 वोट से हार गए।
मादीपुर में राखी बिडलान 10899 वोट से हारीं। बीजेपी के कैलाश गंगवाल को 52019 वोट मिले जबकि बिडलान को 41120 वोट मिले। कांग्रेस को 17958 वोट मिले।
तिमारपुर में बीजेपी 1024 वोट से जीती और कांग्रेस को 8313 वोट मिले। बादली विधानसभा क्षेत्र में आप उम्मीदवार 15163 वोट से हारे, जबकि कांग्रेस को 41071 वोट मिले।
मालवीय नगर में आप 2131 वोट से हारी और कांग्रेस को 6770 वोट मिले। त्रिलोकपुरी में बीजेपी 392 वोट से जीती और कांग्रेस को 6147 वोट मिले। ग्रेटर कैलाश में आप 3188 वोटों से हारी और कांग्रेस को 6711 वोट मिले। महरौली में बीजेपी 1782 वोटों से जीती और कांग्रेस को 9338 वोट मिले।
बता दें कि आम आदमी पार्टी मोहल्ला क्लीनिक, सरकारी स्कूलों में सुधार, बिजली और पानी की सब्सिडी सहित केजरीवाल के कल्याणकारी मॉडल पर भरोसा जता रही थी। यह केजरीवाल का दिल्ली मॉडल ही था जिसने आप को गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के वोट बैंक पर कब्ज़ा कराया और कांग्रेस की हवा निकालने में मदद की थी। कांग्रेस को कभी इन वर्गों का काफ़ी समर्थन प्राप्त था।
बीजेपी ने अपना पूरा ध्यान भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आप पर हमला करने और सीएम आवास के जीर्णोद्धार 'शीशमहल' को लेकर केजरीवाल को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाने पर केंद्रित किया। आप पहली बार भ्रष्टाचार के मोर्चे पर इतनी आलोचनाओं का सामना कर रही थी।
2013 में सत्ता में आने के बाद आप ने कभी खुद को बदलाव लाने वाला बताया था, लेकिन अब भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही है। केजरीवाल ने खुद को ईडी द्वारा पहले गिरफ्तार किए जाने के बाद लगभग छह महीने जेल में बिताए और बाद में कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले में उनकी भूमिका के लिए सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किया गया। पिछले साल सितंबर में उन्हें जमानत मिली। केजरीवाल के सहयोगी और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी आबकारी नीति मामले में 17 महीने से अधिक समय जेल में बिताया। एक अन्य पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन और राज्यसभा सांसद संजय सिंह को भी गिरफ्तार किया गया और वे जमानत पर बाहर हैं।
दिल्ली में कांग्रेस का उत्थान और पतन किसी नाटकीय घटना से कम नहीं है। पार्टी 1998 में दिल्ली में सत्ता में आई थी, लोकसभा चुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा था। दिल्ली में भी भाजपा ने सात में से छह सीटें जीती थीं। कांग्रेस की एकमात्र विजेता मीरा कुमार करोल बाग सीट से थीं। वास्तव में, शीला दीक्षित जो सीएम बनीं, पूर्वी दिल्ली सीट पर भाजपा के लाल बिहार तिवारी से हार गई थीं।
लेकिन नवंबर 1998 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 47.76% वोट शेयर के साथ 70 में से 52 सीटें जीतीं और कांग्रेस सरकार के मुखिया के रूप में शीला दीक्षित ने 15 साल तक दिल्ली की कमान संभाली। यह सत्ता 2013 में ख़त्म हो गई, जब कांग्रेस सिर्फ आठ सीटों पर सिमट गई, और शीला दीक्षित खुद केजरीवाल से हार गईं।
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