ऐसे समय जब कई सरकारें कोरोना से होने वाली मौतों को छुपाने की कोशिशें कर रही हैं, मृत्यु प्रमाण पत्र उनकी पोल खोल रहा है। दिल्ली में अप्रैल 2021 में इसी महीने के पिछले साल की तुलना में लगभग ढ़ाई गुणा मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया गया। दूसरी ओर आगरा में 11 गुण अधिक मृत्यु प्रमाण पत्र दिए गए हैं। सवाल यह उठता है कि ये मौतें कैसे हुई हैं? सरकार इन्हें कोरोना मौत नहीं मानती तो ये मौतें हुईं कैसे, इसका जवाब कौन देगा?
गुजरात के बाद दिल्ली में जारी मृत्यु प्रमाण पत्रों की संख्या ने दोनों सरकारों की पोल खोल दी है। अप्रैल 2020 में दिल्ली के म्युनिसपल कॉरपोरेशनों ने 4,441 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किए, जबकि अप्रैल 2021 में जारी किए गए मृत्यु प्रमाण पत्रों की संख्या 10,750 है। यह लगभग ढाई गुणे यानी 242 प्रतिशत ज़्यादा है।
नॉर्थ दिल्ली म्युनिसपल कॉरपोरेशन ने पिछले साल अप्रैल में 2,388 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया था, जबकि इस साल अप्रैल में 5,168 मृत्यु प्रमाण दिया था। इसी तरह दक्षिण दिल्ली नगर निगम ने अप्रैल 2020 में 1,383 और अप्रैल 2021 में 3,351 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किए।
वास्तविक संख्या ज़्यादा
विशेषज्ञों का कहना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि कोरोना का प्रभाव कम होने और स्थिति सामान्य होने के बाद जो मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किए जाएंगे, उससे स्थिति साफ़ हो सकेगी और पता चल सकेगा कि इसकी वजह क्या है।
यह स्थिति सिर्फ दिल्ली की नहीं है। दूसरे शहरों के अलाना कस्बों से भी इस तरह की खबरें आने लगी हैं।
गोरखपुर
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में सामान्य दिनों में मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए दो-चार आवेदन आते थे, वहीं अब 30 से 40 आवेदन आ रहे हैं। नगर निगम ने अप्रैल महीने में 392 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किए थे। लेकिन 1 मई से 17 मई तक 254 प्रमाण पत्र जारी हो चुके हैं।
अभी सौ से ज्यादा आवेदन लंबित हैं। कई लोग महीनों बाद भी प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करते हैं। इससे यह साफ है कि पहले से बहुत अधिक लोग मृत्यु प्रमाण पत्र ले रहे हैं।
आगरा
उत्तर प्रदेश के ही आगरा शहर की भी स्थिति इससे मिलती जुलती ही है। वहाँ अप्रैल 2020 में 86 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किए गए, इस साल अप्रैल में 995 मृत्यु प्रमाण पत्र दिए गए हैं। यानी ताजमहल के इस शहर में 11 गुणे अधिक मृत्यु प्रमाण पत्र दिए गए हैं।
शहर के ताजगंज स्थित श्समान घाट के प्रमुख संजीव गुप्ता ने पत्रकारों से कहा कि इस साल अप्रैल में 1,700 लोगों की अत्येष्टि की गई, जो पिछले साल के अप्रैल में हुई अंत्येष्टि का पाँच गुणा है।
गुजरात मॉडल!
गुजरात से छपने वाले अख़बार 'दिव्य भास्कर' ने अपनी एक ख़बर में कहा है कि 1 मार्च से 10 के बीच 1.23 लाख मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया गया है, जबकि सरकार का कहना है कि कोरोना से 4,218 लोगों की मौत हुई है। तो बाकी लगभग 1.18 लाख लोगो की मौत कैसे हुई?
पिछले साल गुजरात में इसी दौरान 58 हज़ार मृत्यु प्रमाण पत्र दिए गए थे। यानी, पिछले साल की तुलना में इसी अवधि में 65 हज़ार अधिक लोगों की मौत हुई है। लेकिन सरकार पर भरोसा करें तो कोरोना से सिर्फ़ 4,218 लोगों की ही मौत हुई है, बाकी मौतें कैसे हुई हैं?
मध्य प्रदेश का झूठ
कोरोना से मौतें छिपाने का आरोप मध्य प्रदेश पर भी लग रहा है। सरकार का झूठ इससे पकड़ में आसानी से आता है कि कोरोना प्रोटोकॉल के तहत अंतिम संस्कार किए गए लोगों और कोरोना से होने वाली मौतों के सरकारी आँकड़ों के बीच बड़ा अंतर है। इसे 16 अप्रैल से 1 मई के बीच मध्य प्रदेश के बड़े सात शहरों के आँकड़ों से समझा जा सकता है।
भोपाल में कोरोना प्रोटोकॉल के तहत 1663 लोगों की अंत्येष्टि की गई जबकि सरकार कोरोना से मरने वालों की तादाद 67 बता रही है। जबलपुर में ये आँकड़े क्रमश: 969 और 99 हैं। छिंदवाड़ा में कोरोना प्रोटोकॉल से 635 लोगों का अंतिम संस्कार हुआ जबकि सरकार कोरोना से मरने वालों की संख्या 19 बता रही है। इंदौर में ये आँकड़े 511 और 105 हैं।
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