दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तारीख़ों की घोषणा कर दी गई है। आठ फ़रवरी को मतदान होगा। पूरे राज्य में सभी 70 सीटों पर एक ही चरण में वोटिंग होगी। मतगणना 11 फ़रवरी को होगी। चुनाव आयोग ने तैयारी पूरी कर ली है। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में इसकी घोषणा की। 14 जनवरी को अधिसूचना जारी होगी। 21 जनवरी तक नामाँकन दाखिल किए जा सकेंगे। 24 जनवरी तक नाम वापस लिए जा सकेंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि 13757 बूथ पर वोट डाले जाएँगे। चुनाव में 90 हज़ार कर्मचारी लगेंगे। 2689 जगहों पर वोटिंग होगी। दिल्ली में एक करोड़ 46 लाख वोटर हैं। इसके साथ ही दिल्ली में चुनाव आचार संहिता लागू हो गई है। वोटर लिस्ट को अंतिम रूप दे दिया गया है।
इस विधानसभा का कार्यकाल 22 फ़रवरी को पूरा हो रहा है। बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया 27 दिन में पूरी हो गई थी। 2015 में चुनाव के लिए 14 जनवरी को अधिसूचना जारी की गई थी और 7 फ़रवरी को चुनाव हुए थे। 10 फ़रवरी को चुनाव के नतीजे आए थे और 12 फ़रवरी को चुनाव प्रक्रिया पूरी हो गई थी। इस चुनाव में केजरीवाल की पार्टी ने ज़बरदस्त प्रदर्शन किया था। इसके आगे बीजेपी और कांग्रेस चारों खाने चित हो गई थीं।
क्या बीजेपी दोहरा पाएगी 2013 जैसा प्रदर्शन?
2013 के विधानसभा चुनाव में अपने सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। हालाँकि वह बहुमत नहीं पा सकी थी और 70 वाली सीटों वाली विधानसभा में वह 32 सीटें ही जीतने में कामयाब रही थी। वह सरकार बनाने में असफल रही थी। इस कारण दिल्ली के तब के लेफ़्टीनेंट गवर्नर नजीब जंग ने दूसरी सबसे बड़ी पार्टी आम आदमी पार्टी को सरकार बनाने का न्यौता दिया था। आप को 28 और कांग्रेस को आठ सीटें मिली थीं। 28 दिसंबर 2013 को कांग्रेस से बाहर से समर्थन लेकर आप ने सरकार बनाई। आप कांग्रेस के ख़िलाफ़ लड़कर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। अरविंद केजरीवाल कांग्रेस की बड़ी नेता शीला दीक्षित के ख़िलाफ़ खड़े हुए थे और जीते भी थे। हालाँकि अरविंद केजरीवाल की सरकार 50 दिन भी नहीं चल पाई थी। केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में विरोधियों के ज़बरदस्त विरोध को देखते हुए जन लोकपाल विधेयक को पेश करने में विफल रहने को कारण बताते हुए इस्तीफ़ा दे दिया था।
इसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लग गया। यह क़रीब एक साल तक रहा। नवंबर में तत्कालीन लेफ़्टीनेंट गवर्नर नजीब जंग ने दिल्ली विधानसभा को भंग कर फिर से चुनाव कराने की अनुशंसा की और इसके बाद चुनाव हुए। तब 2015 के चुनाव में उन्होंने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया था, लेकिन क्या इस बार वह इसके क़रीब भी पहुँच पाएँगे?
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