दिल्ली का कोई भी निजी अस्पताल अब किसी रोगी को यह नहीं कह सकता कि वह किसी और अस्पताल जाकर पहले कोरोना जाँच करवाए और उसकी रिपोर्ट आने और उसमें निगेटिव पाए जाने के बाद ही उसे भर्ती किया जाएगा।
अदालत का आदेश
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बेहद अहम फ़ैसले में आदेश दिया है कि सभी निजी अस्पताल, जिन्हें 20 प्रतिशत बिस्तर कोरोना रोगियों के लिए सुरक्षित रखने को कहा गया है, और जिनके पास कोरोना जाँच की सुविधआएं हैं, वे भर्ती के लिए आए सभी रोगियों की कोरोना जाँच खुद करें और उसके बाद उस हिसाब से उनका इलाज करें।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद के खंडपीठ ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करने के बाद यह फैसला दिया है। बेंच ने कहा, 'हमें यह सूचना मिली है कि जो लोग कोरोना के अलावा दूसरे रोगों के इलाज के लिए अस्पताल जाते हैं, उन्हें भर्ती नहीं किया जाता है और तब तक उन पर ध्यान नहीं दिया जाता है जब तक वे कोविड-19 की जाँच न करा लें और उसमें निगेटिव न पाए जाएं, और उसके लिए उन्हें दूसरे अस्पताल जाना होता है।'
बेंच ने कहा, 'यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन अस्पतालों में कोरोना जाँच की सुविधाएँ हैं, वहाँ गये रोगियों को भी बाहर के किसी अस्पताल से जाँच करवा कर रिपोर्ट लानी होती है और उन्हें तब तक इंतजार करते रहना होता है।'
जजों ने फ़ैसले में यह भी कहा है कि 'ऐसा लगता है कि दिल्ली जल्द ही देश की कोरोना राजधानी बनने जा रही है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि वे सभी निजी अस्पताल जहां कोरोना जाँच की सुविधा है, उन्हें बग़ैर समय गंवाए यह जाँच शुरू कर देनी चाहिए। यह इसलिए भी अहम है कि दिल्ली सरकार ने सभी निजी अस्पतालों से कह दिया है कि वे अपने 20 प्रतिशत बिस्तर कोरोना रोगियों के लिए सुरक्षित रखें।'
दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाले राकेश मलहोत्रा ने अदालत से कहा कि जो लोग कोरोना के अलावा दूसरे रोग के लिए भी इलाज कराने निजी अस्पताल जाते हैं, उन्हें भी यह कह कर भर्ती नहीं लिया जाता है कि वे पहले कोरोना की जाँच किसी और जगह से कराएं, वहां निगेटिव रिपोर्ट आने के बाद ही उन्हें भर्ती किया जाएगा।
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