दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों वाली 9वीं विधानसभा के लिए चुनाव साल 2025 फरवरी में होने की संभावना है। दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल 15 फरवरी को समाप्त होने वाला है। वर्तमान परिस्थितियों में यह चुनाव पहले हुए चुनावों के मुकाबले अधिक रोचक और कड़ा होनेवाला है। सभी राजनीतिक पार्टियाँ- भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अपनी रणनीति बनाने में जुट गई हैं। पिछली 2 बार- 2015 और 2020 से आम आदमी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार दिल्ली की सत्ता में है। सरकार के दूसरे कार्यकाल में आम आदमी पार्टी के कई बड़े नेताओं को भष्टाचार के आरोपों के कराण जेल में जाना पड़ा। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, कैबिनेट मंत्री सत्येंद्र जैन, राज्यसभा सदस्य संजय सिंह अभी जमानत पर हैं।
भ्रष्टाचार को आधार बना कर अन्ना हजारे के आंदोलन के द्वारा अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी अब खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी हुई है। एक दशक से ज्यादा राजनीति और सत्ता में रह चुकी आम आदमी पार्टी के लिए अबकी बार चुनौतियां कम नहीं हैं। भाजपा भी आम आदमी पार्टी को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। दिल्ली के उपराज्यपाल के साथ संवैधानिक प्रशासनिक अधिकारों को लेकर टकराव भी निरंतर आम आदमी पार्टी का बना हुआ है।
2020 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीट पर जीत हासिल की थी, जबकि भाजपा को केवल 8 सीटें ही मिली थीं। कांग्रेस का सबसे बुरा प्रदर्शन रहा और उसे कोई सीट पर जीत नहीं मिल सकी थी। लोकसभा 2024 के चुनाव में पर्याप्त बहुमत हासिल न कर पाने की निराशा के बाद हरियाणा व महाराष्ट्र के चुनावों की जीत से भाजपा इस बार फिर नए उत्साह और उम्मीद में है। वहीं कांग्रेस भी इंडिया गठबंधन के बड़े घटक दल होने के चलते दिल्ली में अपनी खोयी हुयी राजनीतिक जमीन को तलशने लगी है। आम आदमी पार्टी ने तो नवंबर में ही अपनी पहली सूची में कुछ प्रत्याशियों की घोषणा भी कर दी और अब उसने दूसरी सूची भी जारी कर दी है। चुनाव में टिकट कटने या न मिलने की संभावनाओं के चलते पार्टियों के नेताओं का पार्टी अदला बदली का दौर भी शुरू हो गया है।
चुनाव के मुद्दे पार्टियों द्वारा तय किये जाने लगे हैं। आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग द्वारा मतदाताओं के नाम सूचियों से काटे जाने को लेकर चुनाव आयोग और भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए हैं। भाजपा आम आदमी पार्टी के भ्रष्टाचार को जोर शोर से उठाने में लगी है। ‘अब नहीं सहेंगे बदल के रहेंगे’ भाजपा ने नया नारा दिल्ली के लिए गढ़ा है।
लोकसभा चुनावों में जातीय राजनीति भाजपा को भारी पड़ी थी लेकिन 4 राज्यों के चुनावों में हरियाणा और महाराष्ट्र की जीत में सफल होती भी दिखाई दी।
दिल्ली विधानसभा चुनावों से ऐन पहले इंडिया ब्लॉक के अंदर ही टकराव उभरने लगा है। घटक दलों में ममता बनर्जी के साथ-साथ अखिलेश यादव की भी नाराजगी सामने आ रही है। कांग्रेस नेतृत्व और रणनीति पर सवाल उठने लगे हैं। कांग्रेस के लिए दिल्ली में अपनी साख को बचाने की चुनौती भी बहुत गंभीर बनी हुयी है। खुद को साबित करने और जनता में किसी अंश का विश्वास हासिल करने में कांग्रेस कितनी कामयाब हो पाती या देश की राजधानी में अपने अस्तित्व को गंवा बैठती है, ये भी इन चुनावों में तय होगा। हालांकि हाल ही हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के चुनावों में चार में से 2 पदों पर जीत ने कुछ उम्मीद कांग्रेस के लिए बनाई है।
दिल्ली के राजनीतिक मिजाज में मतदाता किसको पार लगाएंगे, यह हिंदुत्व की राजनीति के भविष्य को भी तय करेगा और नए भारत की इबारत को भी।
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