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हरियाणा में दलित वंचित वर्ग का उपवर्गीकरण, कितना फायदा मिलेगा

समाजिक व्यवस्था में लम्बे समय से दलित वंचित वर्ग मानवीय सम्मान के लिए संघर्षरत रहा है। भारतीय समाजिक व्यवस्था में दलित वंचित वर्ग लोगों का वो समूह रहा है जिसे बहिष्कार शोषण हिंसा से गुजरना पड़ा है। उन्हें जीवन की मूल आवश्कताओं जैसे शिक्षा स्वास्थ्य पूर्ण भोजन यात्रा के अधिकार व समान्य संसाधनों से वंचित रहना पड़ा।  समजिक संरचना में समाजिक स्तरीकरण के पदक्रम में शक्ति और स्थिति के संदर्भ में वर्गों के विभाजन में सबसे  निचले स्तर पर ये समूह विधमान हैं। उपहार विनिमय और पारस्परिकता जैसी सार्वभौमिक प्रक्रियाओं के समान्य हिस्सा बनाने से भी अक्सर यह समूह वंचित श्रेणी में रहा। उच्च वर्गों के समाजिक व्यवहार के मानदंडों के सख्त पालन के महत्व के कारण भी इन समूहों को एक अलगाव को सहने के लिए विवश होना पड़ा।  
पश्चिमी भारत में ज्योति राव फूले के समाज सुधार के प्रयत्नों के कारण छुआछूत व अन्य समाजिक कुरीतियों के अंत की शुरुआत हुई, जिसके परिणम स्वरूप समाज के वंचित वर्गों के उत्थान के लिए स्वतंत्र भारत में संविधान दवारा इनके हितों को सुरक्षित किये जाने को बल मिला। विभिन्न समाजिक  मानदंडों और जटिलताओं से मुक्त करने के उद्श्य से इन वर्गों के लिए आरक्षण की वयवस्था संविधान द्वारा निश्चित की गई। राष्ट्र के निर्माण के  समाजिक ताने बाने में अंतर्निहित प्रासंगिक कारकों ने इन सुधारों के लिए अपेक्षित स्थान निर्धारित किया। संविधान द्वारा इन वर्गों को अनुसूचित जाती जन जातियों में परिभाषित किया गया।  
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राजनीति में इन वर्गों के महत्व को आंका गया और विभिन्न राजनितिक दलों ने इन वर्गों के प्रतिनिधित्व को स्वीकार किया । एक बड़ी संख्या मतदाता के तौर पर इन वर्गों की राजनितिक दलों के लिए महत्वपूर्ण बन गयी। दलितों में महा दलित के एक नये वर्ग को भी राजनीतिक वर्गीकरण में चिन्हित किया जाने लगा। देश के आज़ाद होने के बाद से अधिकतर ये वर्ग कांग्रेस के परम्परागत वोटर ही रहे। लेकिन व्याप्त विंगतियों के कारण अपेक्षकृत लाभ उस मात्रा में नहीं मिला जो समझा जा रहा था। इसी को आधार बना कर अन्य राजनीतिक विचारधाराओं की समांतर उत्पति राजनितिक दलों के रूप में हुई जिसमे बहुजन समाज पार्टी मुख्य तौर पर इन वर्गों का प्रतिनिधित्व करने लगी।  
भारतीय जनता पार्टी ने भी समय अनुसार इन वर्गों को अपने पक्ष में लाने के लिए अपनी राजनीति को साधना शुरू किया और 2014 के बाद खास तौर पर इस बड़े मतदाता वर्ग के लिए लाभार्थी योजनों को सरकार के कार्यक्रम में शामिल किया जिसका राजनितिक लाभ भाजपा को मिला।
1 अगस्त 2024 को सर्वोच्च न्यायालय का पंजाब बनाम देवेंद्र सिंह मामले में जो फैसला आया है कि अनुसूचित जातियों ( एस सी ) और अनुसूचित जनजातियों (एस टी ) का उपवर्गीकरण संवैधानिक रूप से स्वीकार्य है ने राज्य सरकारों के लिए एक नया रास्ता खोल दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि उप-वर्गीकरण "औपचारिक समानता" के बजाय "मौलिक समानता" हासिल करने का एक तरीका है।  अदालत ने फैसला सुनाया कि ऐतिहासिक साक्ष्य और सामाजिक मानदंड दर्शाते हैं कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक समरूप वर्ग नहीं हैं। अदालत ने फैसला दिया कि राज्य कुछ वर्गों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर उप-वर्गीकरण कर सकता है।   
अदालत ने फैसला सुनाया कि राज्य को प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता पर डेटा एकत्र करना होगा। अदालत ने फैसला सुनाया कि राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बीच "क्रीमी लेयर" की पहचान करने और उन्हें सकारात्मक कार्रवाई से बाहर रखने के लिए एक नीति विकसित करनी चाहिए।
 न्यायालय के इस निर्णय से ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में 2004 में दिए गए उसके फैसले को खारिज कर दिया गया, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक समरूप वर्ग हैं और उन्हें उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
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इस फैसले को आधार बना कर हरियाणा में भाजपा की तीसरी बार बनी सरकार ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की अनुशंसा पर एक आदेश जारी करके हरियाणा में अनुसूचित जातियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व लाभ सुरक्षित करने के लिए वर्गीकरण को लागु कर दिया है। वर्तमान में हरियाणा में अनुसूचितजाति के लिए 15 % और अनुसुचितजनजाति के लिए 7. 5 % आरक्षण निश्चित है। हरियाणा में अनुसूचित जनजाति की कोई संख्या है नहीं। सरकार का कहना है कि अब आरक्षण का उचित लाभ वंचितों के उन वर्गों को भी निष्पक्षता से मिल सकेगा जिनका अभी प्रतिनिधित्व कम है। 
वंचित अनुसूचित जातियों में वर्गीकरण करने को सरकार ने मंजूरी दे दी है। गृह मंत्रालय के 1975 के आदेश के अनुसार हरियाणा में लगभग यही अनुसूचित जातियां दर्ज की गई थी। आनेवाले समय में देखना होगा की किस प्रकार से लाभ इन वंचित वर्गीकृत जातियों को प्राप्त  होते हैं। भाजपा का यह प्रयोग राजनीतिक दृष्टि से कितना सफल हो पाता है यह भी समय तय करेगा।
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जगदीप सिंधु
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