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दिल्ली चुनाव संभाल रहे अमित शाह के साथ चिराग पासवान

दिल्ली चुनाव में चिराग पासवान की एंट्री, क्या बटेंगे दलित वोटर?

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने मंगलवार को अपनी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अगले महीने होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के इरादे की घोषणा की। चिराग पासवान ने कहा कि उनकी एलजेपी (रामविलास) उन सीटों पर चुनाव लड़ेगी जो दिल्ली में बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रवादी लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को मजबूत करने में मदद करेगी।
चिराग ने कहा- "लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की नीति एनडीए गठबंधन को मजबूत करना और केवल उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ना है जहां जीत एनडीए को मजबूत करेगी। झारखंड की तरह, दिल्ली चुनाव में भी जीत की संभावना संख्या से अधिक मायने रखेगी। हम केवल उन सीटों पर चुनाव लड़ेंगे जहां एलजेपी (रामविलास) के उम्मीदवारों का गढ़ है। हम अतिरिक्त सीटों पर चुनाव लड़कर अपने स्ट्राइक रेट से समझौता नहीं करेंगे, हम उन सीटों पर चुनाव लड़ेंगे जो हमें जीतने की उम्मीद होगी।"
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भाजपा ने पहले ही दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 59 के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है। 11 सीटों पर अभी प्रत्याशी घोषित नहीं हैं। समझा जाता है कि बीजेपी इन्हीं 11 सीटों में से कुछ जेडीयू और कुछ चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) को दे सकती है। लेकिन यह देखना अभी बाकी है कि बीजेपी अपने गठबंधन सहयोगियों को दरअसल कितनी सीटें देगी।
दिल्ली में दलित प्रभावित कितनी सीटेंः दिल्ली में 30 विधानसभा क्षेत्र हैं जिनमें 17-45% तक दलित समुदाय के मतदाताओं का वर्चस्व है। इनमें से 12 सीटें एससी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं और 18 अन्य सीटें हैं जहां 25% तक एससी समुदाय के वोट हैं। इन सीटों में राजेंद्र नगर, चांदनी चौक, आदर्श नगर, शाहदरा, तुगलकबाद और बिजवासन शामिल हैं।

बीजेपी को कितनी कामयाबी दलितों मतदाताओं में मिली

बीजेपी ने अपनी दलित रणनीति पर काम किया लेकिन उसे बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली। पार्टी ने हरियाणा और यूपी के अपने दलित नेताओं को बुलाकर 30 सीटों पर प्रचार करना चाहा, लेकिन उसे जिस सफलता की उम्मीद थी, वो उनकी सभाओं में नहीं मिली। इसलिए अब चिराग पासवान के सहारे नैया पार लगाने की तैयारी चल रही है। 2015 और 2020 के राज्य चुनावों में, पार्टी 12 अनुसूचित जाति आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। पिछले चुनावों में भी बीजेपी इनमें से दो या तीन सीटें जीतने में कामयाब रही थी। 
बसपा का प्रदर्शन दलित सीटों पर कैसाः बसपा दलितों की पार्टी है और दलितों से उसे पर्याप्त समर्थन भी मिलता रहा है। लेकिन पिछले कई चुनावों से बसपा का प्रदर्शन दिल्ली में बेहद खराब हो रहा है। बसपा प्रमुख मायावती ने घोषणा की है कि उनकी पार्टी सभी 70 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी।
पिछले दिल्ली विधानसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था।
  • 2020 के चुनाव में सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ 0.71% वोट हासिल किए।
  • 2015 में, बसपा ने सभी 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, 69 सीटों पर जमानत जब्त हो गई।
  • 2013 में, बीएसपी ने 69 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन 63 पर जमानत खो दी और सिर्फ 5.35% वोट हासिल किए।
  • 2008 के चुनाव में, बसपा ने 2 सीटें जीतीं और 14.05% वोट हासिल किए।
बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि आप के उभार के साथ बसपा का आधार कम होता गया। खासकर दिल्ली की मलिन बस्तियों और ग्रामीण इलाकों के मतदाताओं के बीच आधार में काफी गिरावट आई। हालांकि, पार्टी आगामी चुनाव से पहले अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।
हालांकि बसपा ने कुछ-कुछ सीटों पर अपना प्रचार शुरू कर दिया है लेकिन वो आक्रामक नहीं है। मायावती के राजनीतिक उत्तराधिकारी आकाश ने पिछले रविवार को पूर्वी दिल्ली के कोंडली (एससी-आरक्षित) विधानसभा क्षेत्र में एक रैली के साथ पार्टी के विधानसभा चुनाव अभियान की शुरुआत की थी। अपने भाषण में उन्होंने आम आदमी पार्टी (आप), कांग्रेस और बीजेपी को निशाने पर लिया। आकाश ने "भ्रष्ट सरकार" चलाने के लिए आप पर निशाना साधा और तीनों पार्टियों पर राजनीतिक लाभ के लिए बी आर अंबेडकर का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। 
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बसपा दिल्ली के नेताओं का कहना है कि आकाश के आने से दिल्ली की आरक्षित सीटों पर बहुत असर नहीं पड़ने वाला है। अगर खुद मायावती यहां कुछ सीटों पर रैली कर दें तो पार्टी को अच्छा खासा फायदा हो सकता है। लेकिन मायावती ने इधर रैलियों में जाना कम कर दिया है। महाराष्ट्र, झारखंड में उनकी बहुत रैलियां नहीं हो सकी थीं। सिर्फ हरियाणा में ही उनकी कुछ रैलियां हुईं लेकिन नतीजा सिफर रहा। उसके बाद उन्होंने अभय चौटाला की पार्टी इनेलो से गठबंधन तोड़ दिया। 
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क़मर वहीद नक़वी
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