क्या दिल्ली पुलिस ने यह तय कर लिया है कि वह दिल्ली दंगों का सच सामने लाने की कोशिश करने वाले पत्रकारों और उनके साथियों के साथ बेहूदगी करेगी, उन्हें खाकी का रौब दिखाएगी जिससे वे अपना काम ढंग से न कर सकें। क्या कारवां मैगजीन के द्वारा दिल्ली दंगों को लेकर की गई रिपोर्टिंग के बाद इसके पत्रकार दिल्ली पुलिस के निशाने पर हैं। बीते तीन महीनों में कारवां के चौथे पत्रकार पर राजधानी दिल्ली में हमला किया गया है।
कारवां के पत्रकार अहान पेनकर ने आरोप लगाया है कि शुक्रवार को जब वह उत्तरी दिल्ली में एक नाबालिग दलित लड़की के बलात्कार और हत्या की घटना को कवर कर रहे थे, तभी एडिशनल कमिश्नर ऑफ़ पुलिस (एसीपी) अजय कुमार ने उन पर हमला कर दिया और हिरासत में भेज दिया।
इस दौरान कुछ छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता मॉडल टाउन इलाक़े के पुलिस स्टेशन के बाहर दलित लड़की के साथ हुई इस घटना को लेकर पुलिस के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे थे। पेनकर ने कहा कि मामले में एफ़आईआर तक दर्ज नहीं की गई थी। पुलिस का दावा था कि लड़की ने आत्महत्या की है और यह हत्या का मामला नहीं है।
कारवां की ओर से अहान का एक फ़ोटो जारी किया गया है, जिसमें उनकी पीठ पर चोटों के निशान हैं।
कारवां ने लिखा है कि एसीपी ने पेनकर को मॉडल टाउन स्टेशन के अंदर पहले लात मारी और फिर थप्पड़। इस दौरान पेनकर ने कई बार उन्हें बताया कि वह पत्रकार हैं और उन्हें अपना प्रेस कार्ड भी दिखाया। पेनकर ने पुलिस अफ़सर से कहा कि वह सिर्फ अपना काम कर रहे हैं लेकिन वह नहीं माने।
कारवां के एग्जीक्यूटिव एडिटर विनोद जोस ने ट्वीट कर पेनकर के हवाले से बताया है, ‘एसीपी अजय कुमार ने पहले मेरे चेहरे पर लात मारी, इससे मैं ज़मीन पर गिर गया। तभी एसीपी ने मेरी पीठ और कंधों पर लात मारी। जब मैं उठकर बैठा तो एसीपी ने मेरा सिर पकड़कर मुझे गिरा दिया और फिर से मेरी पीठ पर चोट मारी।’ पेनकर ने कहा है कि एसीपी ने उनके घुटने पर भी लात मारी।
न्यूज़ लॉन्ड्री के मुताबिक़, पेनकर ने कहा, ‘पुलिस अफ़सर ने मुझे मेरी पैंट खींचकर उठा लिया और थाने के अंदर ले गए। मुझ पर दबाव बनाया गया कि मैं अपने फ़ोन से कवर किए गए फ़ोटो और वीडियो डिलीट कर दूं।’
पेनकर ने न्यूज़ लॉन्ड्री को बताया कि उनके अलावा दो और लोगों पर एसीपी ने हमला किया। इनमें से एक शख़्स सिख था, एसीपी ने उसकी पगड़ी उतार दी, उसे पीटा और दूसरे की गर्दन पर पांव रख दिया।
‘देश बदल गया है’
पेनकर ने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर एस.एन.श्रीवास्तव को दी शिकायत में लिखा है कि दिल्ली पुलिस के बर्बर हमले में उनकी नाक, गले और पीठ में चोट आई है। पेनकर के मुताबिक़, एक पुलिस अफ़सर ने उनसे कहा, ‘आप को पता नहीं है कि देश बदल गया है।’
भीड़ ने किया था हमला
अगस्त महीने में भी कारवां के दो रिपोर्टर्स को पीटा गया था और एक महिला पत्रकार पर हमला कर उनसे बदसलूकी की गई थी। ये पत्रकार दिल्ली दंगों को लगातार कवर करते रहे हैं। जब ये लोग दंगों के दौरान हुए महिलाओं के उत्पीड़न को कवर कर रहे थे तभी भीड़ ने उन पर हमला कर दिया था।
हमले में बीजेपी नेता शामिल
यह घटना उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सुभाष मोहल्ला में हुई थी और इस दौरान दो पुरुष रिपोर्टर- प्रभजीत सिंह व शाहिद तांत्रे और एक महिला रिपोर्टर हमले का शिकार हुई थीं। कारवां ने ट्वीट कर बताया था कि भीड़ ने कर्मचारियों के साथ मारपीट की, सांप्रदायिक शब्दों का इस्तेमाल किया और इनमें से भगवा कुर्ता पहने एक व्यक्ति ने दावा किया कि वह बीजेपी का महासचिव था।
दिल्ली पुलिस को दी अपनी शिकायत में प्रभजीत सिंह ने लिखा था कि यदि पुलिसकर्मी वहां मौजूद नहीं होते तो उस भगवा कुर्ते वाले आदमी की अगुवाई वाली भीड़ ने शाहिद को उनकी मुसलिम पहचान के कारण लिंच कर दिया होता।
महिला रिपोर्टर से बदसलूकी
भीड़ ने महिला रिपोर्टर को घेर लिया था, उनकी तसवीरें खींचकर वीडियो बनाए थे और एक शख़्स ने अपने उनके साथ बेहद अश्लीलता भरा बर्ताव किया था। हमलावरों ने महिला के सिर, हाथ, कूल्हों और छाती पर वार किया था। इतने गंभीर आरोप होने के बावजूद पुलिस ने एफ़आईआर तक दर्ज नहीं की।
कारवां मैगज़ीन ने दंगों के पीड़ितों से बातचीत के आधार पर दिल्ली दंगे पर कई ऐसी स्टोरी की हैं जिनमें स्थानीय मुसलिमों को निशाना बनाए जाने की बात सामने आई। दिल्ली दंगों में पुलिस के कामकाज को लेकर ढेरों सवाल उठ चुके हैं।
शायद पुलिस कारवां के पत्रकारों से बदला ले रही है कि उन्होंने दिल्ली दंगों का सच सामने लाने की कोशिश क्यों की। पत्रकारों के साथ पुलिस अफ़सर की मारपीट, उन पर हमले की घटना देश की राजधानी में हो रही है और उनकी कहीं कोई सुनवाई करने वाला नहीं है।
पुलिस के रवैये पर सवाल
दिल्ली पुलिस सीधे गृह मंत्रालय के अधीन आती है और जिस तरह से वह दंगों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों और उनके साथियों को पीट रही है, इससे यही लगता है कि वह नहीं चाहती कि कोई दंगा पीड़ितों से बात करे और उनकी आपबीती को सामने लाए। वह खाकी की दबंगई दिखाकर दिल्ली दंगों के सच को छिपाने और दबाने की भरपूर कोशिश करती दिख रही है। आख़िर वह ऐसा क्यों चाहती है, सच छुपाकर वह किसे बचाने की कोशिश कर रही है, ये बेहद गंभीर सवाल हैं।
अपनी राय बतायें