केंद्र सरकार ने हाल के कुछ वर्षों में ही देश के शीर्ष पदों पर बैठे कई नौकरशाहों को उनकी सेवानिवृत होने की तिथि से चंद दिनों पहले सेवा विस्तार दिया है। सरकार के द्वारा दिये जाने वाले इन सेवा विस्तारों पर कई सवाल उठ रहे हैं।
ताजा मामले में केंद्र सरकार ने दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार का कार्यकाल बढ़ा दिया है। अब उन्हें 6 माह का अवधि विस्तार मिलेगा।
इसके खिलाफ दिल्ली की आम आदमी सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार का कार्यकाल बढ़ाने के केंद्र के प्रस्ताव को बुधवार को अनुमति दे दी थी।
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि केंद्र सरकार के पास दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव की नियुक्ति करने का अधिकार है। इन अधिकारों में सेवानिवृत होने वाले अधिकारी का कार्यकाल बढ़ाने का अधिकार भी है।
सुप्रीम कोर्ट ने भले ही उनके सेवा विस्तार की अनुमति केंद्र सरकार को दे दी लेकिन यह सवाल भी उठाया कि "आप नियुक्ति करना चाहते हैं, करें लेकिन क्या आपके पास कोई और अधिकारी नहीं है जो मुख्य सचिव बन सके। क्या आप फंस गए हैं?
दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार पहले अधिकारी नहीं जिन्हें हाल के वर्षों में सेवा विस्तार मिला है। इससे पहले भी केंद्र सरकार ने देश के कई शीर्ष अधिकारियों को सेवा विस्तार दिया है।
इससे पहले केंद्र सरकार ने ईडी प्रमुख संजय कुमार मिश्रा को सेवा विस्तार दिया था। कैबिनेट सचिव राजीव गौबा, केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला को भी सरकार ने सेवा विस्तार दिया था।
केंद्र सरकार द्वारा इन वरिष्ठ अधिकारियों को मिलने वाले सेवा विस्तार पर कई सवाल भी उठ रहे हैं। इसके बावजूद केंद्र को अपने इन्हीं अधिकारियों पर इतना भरोसा है कि तमाम सवालों को दरकिनार कर केंद्र सरकार अपने खास अधिकारियों को सेवा विस्तार दे देती है।
कई अधिकारियों के केस में तो 3 बार भी सेवा विस्तार दिये गये हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट भी कई बार सवाल उठा चुका है कि आखिर इन्हें सेवा विस्तार क्यों दिया जा रहा है?
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इस कारण दिया जाता है नौकरशाहों को सेवा विस्तार
नौकरशाही पर गहराई से नजर रखने वालों का मानना है कि केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, जब भी उसके किसी नौकरशाह को सेवा विस्तार मिलता है तब उसके कारण किसी के हित प्रभावित होते हैं। कई बार राजनैतिक स्वार्थों के कारण भी सेवा विस्तार मिलता है।कई बार सरकार का भरोसा कुछ खास अधिकारियों पर होता है। उस पद पर उसके जैसा कोई दूसरा अधिकारी सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों को उस समय नहीं मिल रहे होते हैं। जिसके कारण सरकारें अपने उस भरोसेमंद अधिकारी को किसी खास पद पर बनाये रखना चाहती हैं। सरकारों को लगता है कि इस पद पर अगर कोई दूसरा अधिकारी आ गया तो उनके मन मुताबिक काम नहीं होगा।
इसलिए सरकारें 6 माह से लेकर एक वर्ष का सेवा विस्तार देती हैं यह सोच कर कि इस अवधि में कोई दूसरा योग्य और सरकार के हितों का ध्यान रखने वाला नौकरशाह वे तलाश लेंगी।
लेकिन जब यह अवधि भी बीत जाती है और कोई नौकरशाह उसे नहीं मिलता जिसे उस खास पद पर बैठाया जा सके तो सरकार फिर दुबारा उसी पुराने और सेवानिवृति की तिथि को पहुंच चुके नौकरशाह को दूसरी या कई बार तो तीसरी बार सेवा विस्तार देती हैं।
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इस सेवा विस्तार की जमकर आलोचना भी होती है
सरकारों के द्वारा सेवानिवृत हो रहे अधिकारियों को दिए जा रहे इस सेवा विस्तार की जमकर आलोचना भी होती है। इस तरह के कदमों के कारण अक्सर ही विपक्षी पार्टियां सरकार की मंशा पर सवाल उठाती हैं। इसके बावजूद यह अब एक परंपरा सी बनती जा रही है।इस के आलोचकों का कहना है कि सरकार से अपेक्षा की जाती है कि किसी खास नौकरशाह को सेवा विस्तार देने के बजाये उसकी जगह पर नए नौकरशाह को मौका दे।
उनका कहना है कि अगर सरकार किसी नौकरशाह को सेवा विस्तार देती है तो जनता को यह बताना चाहिए कि आखिर उसमें ऐसा क्या खास गुण है जिसके कारण सरकार ने यह फैसला लिया है।
उस नौकरशाह के उस विशेष गुण या उसकी प्रतिभा की जानकारी देश को मिलनी चाहिए। सरकार को बताना चाहिए कि आखिर उसने यह फैसला किस आधार पर लिया है।
यह बताना इसलिए भी जरूरी है कि उस संबंधित नौकरशाह को वेतन और दूसरी सुविधाएं जनता से मिले टैक्स के रुपये से ही दी जानी है। इसलिए इतनी पारदर्शिता तो रखी जानी ही चाहिए।
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