आज 4 जनवरी है। 'चित्रलेखा', 'अनारकली', 'बहूबेगम'और 'ताजमहल' सरीखी अमर फ़िल्मों के यादगार महान अभिनेता प्रदीप कुमार का जन्मदिन। सन् 2000 के आखिरी दिनों में उनसे अपनी मुलाक़ात को शायद ही कभी भूल पाऊँगा। उसी साल हिन्दी मशहूर पत्रिका हमेशा के लिए बंद हो गई थी। भाइयों के आपसी झगड़े में इलाहाबाद के मित्र प्रकाशन पर ताला पड़ गया था और 'माया' समेत इस प्रकाशन की सारी पत्रिकाएँ बंद हो गईं। 'माया' के बंद होने से मैं भी बेरोज़गार हो गया था। दरअसल, क़रीब बीस वर्षों तक मैं बिहार में 'माया' का ब्यूरो प्रमुख रहा था। बेरोज़गारी के इसी आलम में मैंने अपनी एक पत्रिका शुरू की- 'राष्ट्रीय प्रसंग'। इस पत्रिका के लिए अच्छी सामग्री की तलाश में मैं जगह-जगह भटक रहा था और इसी क्रम में कलकत्ता पहुँचा। कलकत्ता में एक दोपहर अपने अनन्य पत्रकार मित्र 'सान्ध्य महानगर' के संपादक प्रकाश चंडालिया के चैम्बर में बैठा था। अचानक प्रकाश जी ने पूछा, "प्रदीप कुमार जी से मिलिएगा?"