डायरेक्टर- तुषार हिरानंदानी
फ़िल्म- सांड की आंख
स्टार कास्ट- तापसी पन्नू, भूमि पेडनेकर, प्रकाश झा, विनीत कुमार सिंह, पवन कुमार
रेटिंग स्टार - 5/3
जहाँ चाह वहाँ राह। यह लाइन आपने ख़ूब सुनी होगी और इसी लाइन को सिद्ध करती है फ़िल्म 'सांड की आँख'। तुषार हिरानंदानी के निर्देशन में बनी फ़िल्म 'सांड की आँख' में कुछ पाने का जुनून है, जज़्बा है और सपने पूरे करने की ललक है। यह फ़िल्म दो तेज़-तर्रार शूटर चन्द्रो तोमर व प्रकाशी तोमर के जीवन और शूटर बनने की उनकी कहानी पर आधारित है। तो आइए जानते हैं कि क्या है फ़िल्म की कहानी-
फ़िल्म 'सांड की आँख' की कहानी शुरू होती है बागपत के जोहर गाँव से जहाँ पर एक परिवार की बहू हैं चन्द्रो तोमर (तापसी पन्नू) और प्रकाशी तोमर (भूमि पेडनेकर), जो औरतें मुँह से नीचे तक का घूँघट करती हों और कभी अकेले घर से बाहर भी न गई हों उनके लिए शूटर बनना आसमान से तारे तोड़ने के बराबर है। लेकिन डॉ. यशपाल (विनीत कुमार सिंह) बताते है कि शूटिंग सीखने के बाद सरकारी नौकरी मिलेगी। यह बात सुनकर चन्द्रो व प्रकाशी अपनी पोती शेफाली व बेटी सीमा को शूटिंग सिखाने की ठान लेती हैं जिससे उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाए। मजेदार बात यह है कि उम्र के 60 साल निकलने के बाद प्रकाशी व चन्द्रो जब अपने बच्चों को शूटिंग सिखाने के लिए लेकर जाती हैं तो उन्हें अपने अंदर छिपी कला के बारे में भी पता चलता है। चन्द्रो व प्रकाशी बहुत अच्छा निशाना लगाना जानती हैं और इस बात से यशपाल बहुत ख़ुश हो जाता है और वह दोनों को शूटिंग सीखने के लिए कहता है।
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घर में बच्चों की देखभाल करने, खेत देखने और चूल्हा फूँकने वाली औरतों को अब शूटिंग सीखने की ललक थी और वे किसी तरह से सीखना चाहती थीं, लेकिन एक परेशानी थी। वह परेशानी उनके जेठ रतन सिंह (प्रकाश झा) थे जो महिलाओं को मर्दों से कम आँकते हैं और उन्हें घर से निकलने या कोई काम करने की आज़ादी नहीं देना चाहते। ऐसे में चन्द्रो तोमर और प्रकाशी तोमर ने तोड़ निकाल ली और वे शूटिंग सीखने जाती हैं और मुक़ाबले में भी हिस्सा लेती हैं। लेकिन ऐसा ज़्यादा दिनों तक नहीं चला। क्या था चन्द्रो और प्रकाशी का आइडिया और उसके बाद शूटिंग में कैसे पाएँगी मुकाम? बच्चियों को सरकारी नौकरी मिल पाएगी या सपने यूँ ही टूट जाएँगे? यह देखने के लिए आप 25 अक्टूबर को फ़िल्म ‘सांड की आँख’ देखने के लिए सिनेमाघर पहुँच जाइए।
कलाकारों की अदाकारी
फ़िल्म ‘सांड की आँख’ में तापसी और भूमि ने अपनी एक्टिंग में जान डाल दी है। उन दोनों की एक्टिंग और कहानी के अनुसार ताल-मेल आपको काफ़ी पसंद आएगा। तापसी हर फ़िल्म में किसी भी किरदार में घुस जाती हैं और उनकी यह ख़ासियत रही है तो वहीं भूमि हमेशा से ऐसे किरदारों में ज़बरदस्त एक्टिंग करती हुई नज़र आई हैं। विनीत कुमार सिंह ने भी अपने किरदार को मज़बूती से अंत तक निभाया और काफ़ी शानदार एक्टिंग की है। रतन सिंह, पवन कुमार और अन्य कलाकारों ने भी अपनी एक्टिंग में कोई कमी नहीं छोड़ी।
डायरेक्शन
तुषार हिरानंदानी ने फ़िल्म ‘सांड की आँख’ का डायरेक्शन हर एक चीज़ को ध्यान में रखते हुए किया है इस फ़िल्म में इमोशन और कॉमेडी का बेहतरीन तड़का लगाया है। डायरेक्टर तुषार 'हाफ़ गर्लफ़्रेंड', 'ग्रेट ग्रैंड मस्ती', 'मैं तेरा हीरो', 'एक विलेन' और 'अतिथि तुम कब जाओगे' जैसी कई फ़िल्मों के राइटर रह चुके हैं। इसके बाद ‘सांड की आँख’ का डायरेक्शन भी उन्होंने काफ़ी बेहतर तरीक़े से किया है।
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फ़िल्म की कमज़ोर कड़ियाँ
फ़िल्म को बहुत ध्यान से देखें तो कहीं-कहीं पर तापसी और भूमि का मेकअप अजीब लगता है। ऐसा लगता है कि वे अपने रियल उम्र में अभिनय कर रही हैं जबकि उनका किरदार बुढ़ापे का है।
क्यों देखें फ़िल्म
फ़िल्म ‘सांड की आँख’ आपको कहीं भी बोर नहीं करेगी। फ़िल्म आपको शुरू से लेकर अंत तक बांधे रखेगी। इसके साथ ही फ़िल्म का स्क्रीन प्ले और बैकग्राउंड म्यूजिक भी बेहतरीन है। पूरी फ़िल्म में उसके गाने कहानी से अच्छी तरह मेल खा रहे हैं और साथ ही आपको इस फ़िल्म से काफ़ी कुछ सीखने को मिलेगा कि अगर आप अपने लक्ष्य को ठान ले तो कोई भी आपको आपके सपने पूरे करने से नहीं रोक सकता।
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