भारतीय उपमहाद्वीप की शायरी और सिनेमाई गीतकारी का इतिहास तो क्या वर्तमान भी कालजयी शायर मजरूह के ज़िक्र के बग़ैर अधूरा है। पाकिस्तान के फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ सहित कई अजीम शायरों को हम जानते हैं जिन्होंने व्यवस्था के ख़िलाफ़ लिखे लफ्ज़ों के लिए माफ़ी न माँगते हुए बाख़ुशी जेल की सलाखें चुनीं। शेष दुनिया में भी हर्फ़ों के ज़रिए मुख़ालिफ़त के लिए कई क़लमकारों को यातना शिविरों में डाला गया। हिंदुस्तान में ऐसा सबसे बड़ा नाम मजरूह सुल्तानपुरी का था। उन्होंने आज़ाद क़लम की हिफ़ाज़त के लिये जेल जाना मंज़ूर किया, झुकना नहीं।

मजरूह सुल्तानपुरी की पुण्यतिथि- 24 मई पर विशेष
मजरूह इंक़लाबी शायर थे लेकिन ज़्यादातर अवाम उन्हें सिनेमाई गीतकार के तौर पर मानता-जानता है। शायद कम से कम भारत में तो ऐसा ही है कि सिनेमा से वाबस्ता 'लोकप्रिय' बड़ी-बड़ी क़लमों को बड़े-बड़े आलोचक हाशिए पर डालने की कवायद करते हैं। गोया 'पॉपुलर' होना कोई गुनाह हो! अलबत्ता सिनेमाई गीतकारी में भी सुल्तानपुरी जी की पायदारी बेमिसाल और ज़बरदस्त अलहदा है।