अर्थशास्त्र का सिद्धांत है - बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से  बाहर कर देती है, वैसे ही बुरी फ़िल्में अच्छी फिल्मों को चलन से बाहर कर देती हैं।  राजनीति में भी यही सिद्धांत चल रहा है। अजय देवगन और माधवन की शैतान का काला जादू, कंगना की चंद्रमुखी 2 के चर्चे खूब  होते हैं। विद्या बालन की भूल भुलैया, तुम्बाड फिल्म का शापित गांव, नाग-नागिन किस्से आदि को दर्शकों का बड़ा वर्ग पसंद करता है।  ऐसे में अंधविश्वासी और ढोंगी ज्योतिषी को एक्सपोज़ करती फिल्म को अच्छे प्रतिसाद की क्या उम्मीद?