शोहरत हासिल कर चुके लोग आम तौर पर अपनी निजी ज़िंदगी, अपने अतीत के स्याह पहलुओं को ढाँप कर, छुपा कर रखते हैं ताकि किसी को पता न चले। हिंदी फिल्मों के मशहूर निर्माता- निर्देशक महेश भट्ट इनमें एक दिलचस्प अपवाद हैं। महेश भट्ट अपनी निजी ज़िंदगी को उघाड़ कर अर्थ, जनम, ज़ख़्म जैसी संवेदनशील फिल्में बना चुके हैं और लहू के दो रंग, नाम, नाजायज़ जैसी ठेठ मसाला फिल्में भी, जहाँ उनके जीवन के अक्स देखे जा सकते हैं। इस साफ़गोई और बेबाकी के लिए महेश भट्ट काफी तारीफ़ और आलोचना भी हासिल कर चुके हैं।

महेश भट्ट् वूट सेलेक्ट पर वेब सीरीज़ ‘रंजिश ही सही’ में फिर अपनी और परवीन बाबी की प्रेम कहानी को ओटीटी के दर्शकों के लिए नये रंगरूप में सामने लेकर आये हैं।
यह कोई इत्तिफ़ाक़ नहीं कि उनकी फिल्मों में नायक का अवैध संतान होना, प्रेम त्रिकोण और विवाहेतर प्रेम संबंध कहानियों का केंद्रीय तत्व रहे हैं। महेश भट्ट के मन में अपने निजी जीवन की टीस, तकलीफ और नाराज़गी शायद इतनी तीखी और गहरी है कि वह बार-बार ऐसी कहानियों की तरफ लौटते हैं जहाँ किरदारों की आड़ में खुद को बेपर्दा कर सकें।