शोहरत हासिल कर चुके लोग आम तौर पर अपनी निजी ज़िंदगी, अपने अतीत के स्याह पहलुओं को ढाँप कर, छुपा कर रखते हैं ताकि किसी को पता न चले। हिंदी फिल्मों के मशहूर निर्माता- निर्देशक महेश भट्ट इनमें एक दिलचस्प अपवाद हैं। महेश भट्ट अपनी निजी ज़िंदगी को उघाड़ कर अर्थ, जनम, ज़ख़्म जैसी संवेदनशील फिल्में बना चुके हैं और लहू के दो रंग, नाम, नाजायज़ जैसी ठेठ मसाला फिल्में भी, जहाँ उनके जीवन के अक्स देखे जा सकते हैं। इस साफ़गोई और बेबाकी के लिए महेश भट्ट काफी तारीफ़ और आलोचना भी हासिल कर चुके हैं।