यह इंसानी फ़ितरत है। हम ख़ुद में और अपने आसपास देख सकते हैं। हमारी हर फ़िक्र में किसी न किसी तरह ख़ुद का ज़िक्र जारी रहता है। कंगना रनौत इस इंसानी फ़ितरत से परे नहीं हैं। अपनी मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि, शिक्षा-दीक्षा और ज़िंदगी के विविधयामी अनुभवों ने उन्हें अधिक संवेदनशील, फ़िक्रमंद और आक्रामक बना दिया है। वह आए दिन किसी न किसी की फ़िक्र करती हैं। उसी के साथ अपना ज़िक्र ज़रूर करती हैं। हाल के उनके अधिकांश बयानों में इस फ़िक्र और ज़िक्र को पढ़ा-सुना जा सकता है।