यह इंसानी फ़ितरत है। हम ख़ुद में और अपने आसपास देख सकते हैं। हमारी हर फ़िक्र में किसी न किसी तरह ख़ुद का ज़िक्र जारी रहता है। कंगना रनौत इस इंसानी फ़ितरत से परे नहीं हैं। अपनी मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि, शिक्षा-दीक्षा और ज़िंदगी के विविधयामी अनुभवों ने उन्हें अधिक संवेदनशील, फ़िक्रमंद और आक्रामक बना दिया है। वह आए दिन किसी न किसी की फ़िक्र करती हैं। उसी के साथ अपना ज़िक्र ज़रूर करती हैं। हाल के उनके अधिकांश बयानों में इस फ़िक्र और ज़िक्र को पढ़ा-सुना जा सकता है।
आख़िर कंगना रनौत को ग़ुस्सा क्यों आता है?
- सिनेमा
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- 23 Aug, 2020

बॉलीवुड में नेपोटिज़्म से लेकर सुशांत सिंह राजपूत की घटना तक कंगना के बयान पर विवाद होता आ रहा है और उसपर कंगना ग़ुस्सा भी निकालती हैं। आख़िर उन्हें इतना ग़ुस्सा क्यों आता है? सुशांत केस ने कंगना रनौत को उद्वेलित किया है। वह शुरू से ही पूरे मामले को निजी अनुभवों के नज़रिए से पेश करती रही हैं। उनकी बातों में सच्चाई रहती है, लेकिन आत्मश्लाघा से वह अपनी तीक्ष्णता कम कर देती हैं।
बहुत पहले लोकप्रिय जीवन जी रहे एक कलाकार ने कहा था कि आप पक्ष में बोलें या विपक्ष में बोलें, लेकिन मेरे बारे में ही बोलें। चर्चा में रहने के लिए ज़रूरी है कि किसी न किसी बहाने नाम आए। नाम का उल्लेख हो, कंगना इस उक्ति पर यक़ीन करती हैं। सोशल मीडिया के इस दौर में पक्ष-विपक्ष में बोली उनकी हर बात वायरल हो जाती है। अगर ‘कॉफी विद करण’ का बहुचर्चित एपिसोड फिर से देखें तो याद आएगा कि करण जौहर का सवाल था… फ़िल्म इंडस्ट्री में कौन आपको अनावश्यक एटीट्यूड दिखाता है- मेल या फ़ीमेल स्टार? कंगना का जवाब था… आप करण!