फ़िल्म- दुर्गामती
डायरेक्टर- जी. अशोक
स्टार कास्ट- भूमि पेडनेकर, अरशद वारसी, जीशु सेनगुप्ता, माही गिल, करण कपाड़िया
स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म- अमेज़ॉन प्राइम वीडियो
रेटिंग- 1.5/5
साल 2018 में तेलुगू फ़िल्म 'भागमती' रिलीज़ हुई थी, अब उसका हिंदी रिमेक फ़िल्म 'दुर्गामती' रिलीज़ हुई है। फ़िल्म का निर्देशन जी. अशोक ने किया है। दिलचस्प बात यह है कि साउथ की फ़िल्म 'भागमती' को भी जी. अशोक ने निर्देशित किया था। 'दुर्गामती' ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म अमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हुई है और इसमें लीड रोल में भूमि पेडनेकर, अरशद वारसी, जीशु सेनगुप्ता, माही गिल और करण कपाड़िया हैं। फ़िल्म की कहानी हॉरर-सस्पेंस ड्रामा के ईर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें राजनीति का मसाला भी डालने की कोशिश की गई है। तो आइये जानते हैं क्या है फ़िल्म की कहानी।
जल संसाधन मंत्री ईश्वर प्रसाद (अरशद वारसी) ईमानदार मंत्री और नेता हैं। सरकार की आँखों में ईश्वर प्रसाद खटकता है और उसे भ्रष्टाचारी साबित करने के लिए साज़िश रची जाती है। सीबीआई अधिकारी शताक्षी गांगुली (माही गिल) को ईश्वर प्रसाद के ख़िलाफ़ सबूत और गवाह इकट्ठा कर उसे गिरफ्तार करने की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है। शताक्षी सबसे पहले ईश्वर की पर्सनल सेक्रेटरी और आईएएस अफ़सर चंचल चौहान (भूमि पेडनेकर) को पूछताछ के लिए बुलाती है।
चंचल चौहान अपने मंगेतर शक्ति सिंह (करण कपाड़िया) की हत्या के इल्ज़ाम में जेल में बंद है। शताक्षी के कहने पर एसीपी अभय सिंह (जीशु सेनगुप्ता) चंचल को गाँव की एक वीरान पुरानी हवेली में पूछताछ के लिए लेकर आता है। गाँव वालों के अनुसार इस हवेली में रानी दुर्गामती की आत्मा वास करती है और चंचल की मुलाक़ात उस आत्मा से हो भी जाती है। यानी दुर्गामती की आत्मा चंचल को अपने क़ब्ज़े में ले लेती है।
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फ़िल्म में कई प्लॉट हैं, पहला ईश्वर प्रसाद को लेकर साज़िश क्यों हो रही है? दूसरा चंचल चौहान ने अपने मंगेतर को क्यों मारा? तीसरा क्या वाक़ई इस हवेली में भूत-प्रेत है या सबकुछ सिर्फ़ दिखावा है? इन सबके अलावा फ़िल्म को हॉरर-सस्पेंस के साथ ही राजनीतिक मोड़ भी दिया जाता है। जिसमें 1800 करोड़ का घोटाला और मंदिर से मूर्तियों का चोरी होना भी शामिल है। अब सबकुछ जानने के लिए आपको 2 घंटे 35 मिनट की फ़िल्म 'दुर्गामती' अमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर देखनी पड़ेगी।
निर्देशन
जी. अशोक ने फ़िल्म 'भागमती' भी बनाई थी और जिन्होंने उस फ़िल्म को देखा होगा उन्हें 'दुर्गामती' जरा भी पसंद नहीं आयेगी। तेलुगू में बनी फ़िल्म 'भागमती' को हिंदी भाषी दर्शकों ने भी काफ़ी पसंद किया था लेकिन 'दुर्गामती' में निर्देशक का वो जादू कहीं ग़ायब हो गया। फ़िल्म के प्लॉट से लेकर इसे पर्दे पर पेश करने तक सब कुछ काफ़ी अधूरा सा ही लगता है, जिसकी वजह है 'दुर्गामती' में सिर्फ़ एक कहानी नहीं बल्कि कई कहानियाँ चलती रहती हैं। इसके साथ ही फ़िल्म के डायलॉग्स भी कुछ ख़ास नहीं हैं और कुछ संवाद के पीछे चल रहा बैकग्राउंड म्यूजिक भी बोर करता है।
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फ़िल्म के निर्माता भूषण कुमार और अक्षय कुमार हैं। कुछ दिनों पहले अक्षय कुमार स्टारर फ़िल्म 'लक्ष्मी' आई थी। वो फ़िल्म भी साउथ फ़िल्म की रिमेक थी और हिंदी भाषा में उसने भी कुछ खास कमाल नहीं दिखाया था। ऐसा ही कुछ अब फ़िल्म 'दुर्गामती' के साथ भी हुआ है।
एक्टिंग
एक्टिंग के मामले में भी 'दुर्गामती' निराश करती है। भूमि पेडनेकर एक सशक्त एक्ट्रेस हैं और लगभग हर फ़िल्म में तारीफ़ें बटोरती हैं लेकिन फ़िल्म के कुछ सीन्स में उनका किरदार कमज़ोर दिखाई पड़ता है। अरशद वारसी मंत्री के किरदार में ख़ूब जमे हैं और उन्होंने अपने किरदार को अच्छे से निभाया है। इसके अलावा सीबीआई अफ़सर के किरदार में माही गिल बंगाली और हिंदी भाषा में ही उलझ कर रह गईं। उनके किरदार को बंगाली दिखाया गया है लेकिन वो बंगाली भाषा का सही से उच्चारण नहीं कर पाती है। जीशु सेनगुप्ता जो कि बंगाली सिनेमा के अच्छे कलाकारों में से एक हैं, उन्होंने अपने किरदार को अच्छे से निभाया है। इसके अलावा करण कपाड़िया भी अपने किरदार में प्रभावी छाप नहीं छोड़ पाते हैं।
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अगर आप डरावनी फ़िल्म सोचकर 'दुर्गामती' को देखने बैंठेगे तो हॉरर-सस्पेंस के नाम पर आपको धोखा मिलेगा। कुछ एक आधे सीन्स को छोड़ दें तो 'दुर्गामती' डराना तो दूर चौंकाती भी नहीं है। फ़िल्म की ढाई घंटे की लंबी अवधि भी इसका एक निगेटिव प्वॉइंट है, जिसे थोड़ा सा कम किया जा सकता था। इसकी वजह से फ़िल्म काफ़ी लंबी और बोरिंग लगने लगती है। फ़िलहाल, अगर आप भूमि पेडनेकर या अन्य किसी कलाकार के फैन हैं तो इस फ़िल्म को एक बार देख सकते हैं।
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