सीन ये है कि अंगद पहुंचते हैं रावण के पास। सीता को वापस करने की नसीहत देते हैं। रावण अपने विशालकाय चमगादड़ पर बैठकर युद्धभूमि पहुंचता है। तभी मेघनाद सीता को लेकर आ जाता है। मुगले आजम की मधुबाला की तरह हथकड़ी और बेड़ी में जकड़ी सीता। मेघनाद सीता की गरदन के पास एक बटन जैसा दबाता है और बेड़ियां खुल जाती हैं। सीता स्लो मोशन में राम की ओर दौड़ती हैं और राम सीता की ओर। इससे पहले दोनों का मिलन हो, मेघनाद पीछे से सीता को पकड़ लेता है और गर्दन पर कटार रख देता है। जैसे आम फिल्मों में विलेन हीरोइन के गले पर चाकू रखता है। तो मेघनाद चाकू ही नहीं रखता, गला रेत देता है।
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देखने वाले त्राहि माम-त्राहि माम कर उठते हैं कि हे भगवान ये क्या दिखा रहा है, क्या देखने को मिल रहा है। लंका में सीता की हत्या..?
सीन आगे बढ़ा। सीता का गला कट गया है, खून बह रहा है, वो इससे पहले गिरतीं, राम ने अपनी बाहों में उन्हें थाम लिया। सीता की आंख बंद हो रही है, अचानक हंसी गूंजती है, सीता की मुस्कान दिखती है और देखते ही देखते राम के हाथ में सीता की जगह एक राक्षस होता है। राम की ऐसी फिरकी लेकर रावण अट्टहास करता है।
राम रावण युद्ध पर बनी फिल्म आदिपुरुष में ऐसे एक नहीं तमाम अजीबोगरीब प्रसंग हैं। कई बार तो ऐसा लगता है कि महर्षि वाल्मीकि और संत तुलसीदास ने कुछ तथ्य दुनिया से छिपा लिए थे, जिसे ओम राउत ने उजागर किया है। जैसे सुषेण वैद्य ने संजीवनी बूटी का पता हनुमान को नहीं बताया था, बल्कि ये काम विभीषण की खूबसूरत पत्नी ने किया था। विभीषण की पत्नी ने ही बूटी को कुटवा पिसवाकर उसका रस निकलवाकर लक्ष्मण को ठीक किया था।
यही नहीं विभीषण ने रावण के नाभि में अमृत वाली बात राम को नहीं बताई थी, बल्कि ये बताया था कि मेघनाद को सिर्फ पानी के भीतर मारा जा सकता है। यानी मेघनाद का सिर कटकर सुलोचना की गोद में गिरने वाली थ्योरी बिल्कुल गलत थी। लक्ष्मण ने मेघनाद को पानी के भीतर गला दबाकर मार डाला था।
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मूछों वाले राम, आधुनिक हेयर स्टाइल में औरंगजेब के लुक में रावण, दाढ़ी वाले लक्ष्मण और हनुमान जी को दर्शाती फिल्म आदिपुरुष में ऐसे टपोरी टाइप डायलॉग हैं कि पूछिए मत।
लंका दहन से पहले हनुमान मेघनाद से कहते हैं- कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, आग भी तेरे बाप की, जलेगी भी तेरे बाप की।
मेघनाद अशोक वाटिका में पहुंचे हनुमान से कहता है- तेरी बुआ का बागीचा है क्या, जो हवा खाने चला आया। रावण को समझाते हुए मंदोदरी कहती हैं- आप अपने काल के लिए कालीन बिछा रहे हैं। हनुमान जी कहते हैं- जो हमारी बहनों को हाथ लगाएंगे उनकी लंका लगा देंगे।
मेघनाद का एक डायलॉग है- मेरे एक सपोले ने तुम्हारे शेषनाग को लंबा कर दिया। अभी तो पूरा पिटारा भरा पड़ा है। ऐेसे कालजयी डायलॉग के लेखक शुक्ला जी को बारंबार नमन है। उनकी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी को भी नमन है, जिससे उठाकर उन्होंने कई डायलॉग चेप दिए हैं।
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त्रेता युगीन कहानी के डायलॉग जिस फूहड़ता के साथ लिखे गए हैं, जिस तरह उसमें उर्दू शब्दों की बारिश की गई है, वो शर्मनाक है।
आदिपुरुष में कुछ नई चीजें भी हैं, ठीक भी हैं। रामायण सीरियल में विभीषण रावण के छोटे भाई थे, लेकिन देखने में रावण ज्यादा जवान दिखता था, विभीषण के आधे बाल पके हुए थे, मूंछें पकी हुई थीं। लेकिन आदिपुरुष का विभीषण अच्छा खासा जवान है, रावण के साथ वाइन वाली ब्लैक ग्लास में शराब पीता है। विभीषण की खूबसूरत पत्नी भी है, जो बहुत बुद्धिमान है। मंदोदरी को अक्सर सीरियल में या फिल्मों में मोटी सी दिखाया गया है, जबकि मंदोदरी का अर्थ ही है-जिसका उदर कम हो, यानी पतली कमर वाली। तो आदिपुरुष की मंदोदरी खूबसूरत है, दुबली पतली है। फिल्म की सूर्पनखा भी गोरी चिट्टी और खूबसूरत है।
रावण भारत में हर साल फूंका जाता है, फिर भी उसे प्रकांड पंडित और महान शिवभक्त बताया जाता है। फिल्म में इसे बाकायदा स्थापित किया गया है। रावण की एंट्री ही तपस्या करते हुए होती है। बर्फीले पहाड़ पर तपस्या कर रहे रावण को ब्रह्मा वरदान देते हैं। इसके बाद रावण महल में बने विशाल शिवलिंग के सामने बैठकर वीणा या वायलिन टाइप कोई चीज बजाता है, इतनी जोर से बजाता है कि अंगुलियां जख्मी हो जाती हैं, तार टूट भी जाता है।
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आदिपुरुष का रावण सोने के सिंहासन पर नहीं बैठता या तो भोलेनाथ के मंदिर में बैठता है या फिर महल की छत पर। रावण स्नेक (सांप) मसाज भी लेता है। दर्जनों अजगरों से वो अपनी मसाज करवाता है।
आदिपुरुष का रावण कर्मयोगी है, मितव्ययी है। उसके पास पुष्पक विमान है, लेकिन शायद डीजल-पेट्रोल की बढ़ी कीमतों की वजह से वो उनका इस्तेमाल नहीं करता, बल्कि एक विशालकाय मांसभक्षी चमगादड़ को अपनी सवारी बनाकर उड़ता रहता है। चमगादड़ की लगाम रावण के हाथों में होती है। उसकी पीठ सपाट है, जिस पर सीता मइया को लिटाकर रावण उन्हें लंका ले आया था।
रावण आत्मनिर्भर है। अपने खड्ग को धार देने के लिए वो नौकरों के भरोसे नहीं रहता, खुद हथौड़ा मार-मारकर उसे पैना करता है। यही नहीं अपने वाहन चमगादड़ को भी अपने हाथों से ही मांस खिलाता है। रावण के पास राक्षसों के अलावा चमगादड़ों की भी एक विशालकाय सेना है।
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आदिपुरुष का रावण कुछ अजीब ढंग से चलता है। दोनों पांवों के बीच फासला है, कुछ लंगड़ाकर या झूमकर चलता है। बगल में बैठे हुए एक दर्शक ने कहा-लगता है कि रावण को खूनी बवासीर हो गया है। एक सीन में रावण सीता को मनाने जाता है, फिर मनाते-मनाते हाथ जोड़ लेता है। हॉल से आवाज आती है-अबे ये करीना नहीं है, माता सीता हैं।
अयोध्या में एक छबीले बाबा थे। राम कथा वो कुछ पंक्तियों में सुना देते थे-
राम रवन्ना दुई जन्ना। एक छत्री, एक बाभन्ना।
वा ने उनकी नार चुराई। तब दोनों में हुई लड़ाई।
बस इतना ही कथन्ना, इस पर रचे तुलसिया पोथन्ना।
(राम और रावण दो लोग थे, एक क्षत्रिय, दूसरा ब्राह्मण। ब्राह्मण ने उनकी पत्नी का हरण कर लिया, जिस पर दोनों में लड़ाई हुई। बस कहानी यही है, जिस पर तुलसीदास ने इतनी मोटी पोथी रच डाली है)
ऐसे ही दो लाइन की कहानी पर ओम राउत आदिपुरुष की रचना की है। रामायण को सोचकर जाएंगे तो गहरी निराशा होगी, दुखी होंगे, माथा पीटेंगे, लेकिन मनोरंजन के लिए जाएंगे तो पूरा एंटरटेनमेंट मिलेगा। वीएफएक्स और स्पेशल इफेक्ट्स तो कमाल के हैं। कुछ कलाकारों का अभिनय भी ठीक है। राम के किरदार में प्रभाष को थोड़ा बहुत टिकाकर रखा है तो वो है शरद केलकर की भारी और गंभीर आवाज। वरना रावण का कैरेक्टर फिल्म में राम पर भारी है।
कभी राम सियासी फायदा देते थे। लेकिन अब पूरा देश राममय हो गया है तो राम फिल्मकारों के लिए भी फायदे का सौदा होने लगे हैं। आदि पुरुष कई हजार करोड़ कमाने के मकसद से बनाई गई है। शुरुआत में ही इसके टीजर पर विवाद हुआ तो फिल्म बनाने वाले संभल गए। फिल्म में राम का नाम ही नहीं है। फिल्म में राम को राघव, लक्ष्मण को शेष, सीता को जानकी, हनुमान को बजरंग नाम से पुकारा गया है। बस बैकग्राउंड में राम सियाराम सियाराम जय जय राम का गाना जरूर बजता है।
हाल में कई बार जय श्रीराम, जय बजरंगबली और हर हर महादेव के नारे भी गूंजे। यानी फिल्म सुपरहिट है, तय जानिए।
फिल्म देखकर निकले तो यू ट्यूब वालों ने बाइट के लिए घेर लिया। एक ने पूछा-क्या इस फिल्म ने हिंदुओं की भावना आहत किया है। मैंने कहा- हिंदुओं की भावना इतनी कमजोर नहीं है कि बात-बात पर आहत हो जाए। राम सिर्फ हिंदुओं के नहीं हैं। इस्लाम को माने वाले भी राम को 'इमामे हिंद' मानते हैं। राम सबके हैं। सबके मन में रमते हैं राम।
राम के नाम पर बनी इस फिल्म को अगर भगवान श्रीराम और हनुमान देखते तो बहुत हंसते और हंसते-हंसते फिल्म बनाने वालों को क्षमा भी कर देते।
(विकास मिश्रा की फेसबुक वॉल से)
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