कुछ शख्सियतें ज़िंदगी की प्रतिबद्धता की वह खुली किताब होती हैं जिनका जिया एक-एक लफ्ज़ धड़कता है और अपना होना दर्ज कराता है। साहिबजादी ज़ोहरा बेगम मुमताजुल्ला ख़ान उर्फ ज़ोहरा सहगल ऐसी ही एक नायाब शख्सियत थीं। स्त्री अस्मिता की अजब ज़िंदा मिसाल और एक जानदार (यक़ीनन शानदार भी) लौ!
जन्मदिन पर विशेष : वह क्यों कहती थीं- दुनिया में सिर्फ़ और सिर्फ़ 'एक' ज़ोहरा सहगल है?
- सिनेमा
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- 26 Apr, 2020

ज़ोहरा सहगल नारीवादी उस समय भी थीं, जब भारत फ़ेमिनिज़्म नहीं पहुँँचा था। वह मशहूर कान अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म फ़ेस्टिवल पुरस्कार पाने वाली पहली भारतीय कलाकार थीं। उन्होंने उदय शंकर के साथ पूरी दुनिया में घूम-घूम कर नृत्य पेश किया तो ख़्वाज़ा अहमद अब्बास के साथ फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत की। क्या थीं ज़ोहरा सहगल? उनके जन्मदिन पर पढ़ें यह विशेष लेख।
102 वर्ष के अपने लंबे-गहरे जिस्मानी सफर को उन्होंने जिस ज़िंदादिली और ख़ुदमुख़्तारी के साथ जिया-निभाया, वैसा किसी अन्य समकालीन महिला हस्ती ने नहीं। दंभ नहीं बल्कि मज़ाक़ में वह कहा करती थीं कि दुनिया में सिर्फ़ और सिर्फ़ 'एक' ज़ोहरा सहगल है! उनके लिए यह कथन बेशक मज़ाक़ होगा लेकिन हक़ीक़त से इसका रिश्ता बेहद गहरा था। इतना गहरा कि अस्सी साल के अपने कलात्मक पड़ावों में जाने-अनजाने अथवा नैसर्गिकता के बूते ऐसा बहुत कुछ किया जो किसी भी प्रतिभाशाली एवं रचनात्मक कलाकार को ख़ुद-ब-ख़ुद महान किंवदंती में तब्दील कर देता है।