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एससी-एसटी के रिज़र्वेशन में सब कैटेगरी बनाने के बारे में सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले के बाद जहां सोशल मीडिया पर बवाल मचा हुआ है वहीं बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी के स्टैंड से एनडीए में फूट साफ नज़र आता है।
इस फैसले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कोई ताजा बयान तो सामने नहीं आया है लेकिन उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) और सत्ताधारी एनडीए के एक महत्वपूर्ण घटक दल लोजपा (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान के स्टैंड में साफ़ विरोधाभास नजर आता है। जनता दल (यूनाइटेड) के वरिष्ठ नेता और ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी ने इस बारे में कहा कि रिजर्वेशन के तहत कोटा के अंदर कोटा की जो बात सुप्रीम कोर्ट ने कही है वह काम तो बिहार में नीतीश सरकार ने काफी पहले शुरू कर दिया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वागत योग्य बताया।
दूसरी ओर केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री चिराग पासवान ने सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण में कोटा में कोटा और इसमें क्रीमी लेयर संबंधी निर्णय का समर्थन नहीं किया। चिराग ने कहा कि एससी-एसटी आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लोक जनशक्ति (रामविलास) पक्षधर नहीं है।
चिराग पासवान ने इस फैसले को एससी समुदाय में बंटवारा डालने वाला बताया है और कहा है कि जो राज्य ऐसा डिवाइड ऐंड रूल की सोच रखते हैं, वह इसको बढ़ावा देने की कोशिश करेंगे। उनका कहना है कि अनुसूचित जाति की एकता ही उनकी ताकत है और कई लोग इस ताकत से घबराते हैं और इसीलिए बंटवारा करना चाहते हैं। उनके अनुसार अनुसूचित जाति की जमात का आधार अस्पृश्यता है।
नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री बनने के दो साल बाद ही 2007 में दलित समुदाय को दलित और महादलित में बांटा था। नीतीश सरकार ने महादलित आयोग का भी गठन किया था।
आयोग को अनुसूचित जातियों में शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर जातियों की पहचान करनी थी। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के जिस मामले में ताजा फैसला दिया है वहां भी दलितों में से वाल्मीकि और मजहबी सिख के लिए अलग व्यवस्था की गई थी।
पंजाब और बिहार के मामले में बुनियादी फर्क यह है कि बिहार में हाशिए वाली अनुसूचित जातियों के लिए कुछ सुविधा अलग से दी गई थी जबकि पंजाब में उनके लिए रिजर्वेशन के अंदर 50 फ़ीसदी रिजर्वेशन किया गया है। बिहार सरकार ने महादलित घोषित समुदाय के लिए तीन डिसमिल जमीन और दूसरी सुविधाएं दी थीं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार का यह कदम दरअसल उस वक्त दलित समुदाय के बड़े नेता और चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान के बढ़ते कद को कम करने के लिए किया था। बहुत से लोगों का मानना है कि चिराग पासवान का ताजा बयान दरअसल इस पुराने जख्म को कुरेदने जैसा है।
दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश नेताओं ने कोई बयान जारी नहीं किया है। यह माना जा रहा है कि दरअसल भारतीय जनता पार्टी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पक्ष में है लेकिन वह इस मामले में खुलकर सामने नहीं आना चाहती।
इस मुद्दे पर तेजस्वी यादव और राजद के बयान से साफ है कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ नहीं है और चिराग पासवान की बात से सहमत हैं। तेजस्वी यादव ने एससी-एसटी आरक्षण में कोटे में कोटे का विरोध किया और कहा कि बाबा साहेब आंबेडकर ने संविधान में आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक भेदभाव, छुआछूत और विषमता पाटने के लिए की थी।
तेजस्वी यादव का फिलहाल ज्यादा ध्यान बिहार में आरक्षण की बढ़ाई गई सीमा को नौवीं अनुसूची में शामिल करवाना है लेकिन वह सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले पर भी साफ स्टैंड ले रहे हैं।
ध्यान रहे कि बिहार में जातिगत गणना के बाद आरक्षण की सीमा 50 फ़ीसदी से बढ़कर 65 फ़ीसदी की गई थी लेकिन उसे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था और यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है। ताज़ा मामले में एक और जहां चिराग पासवान ने सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार की बात कही है तो दूसरी ओर तेजस्वी यादव ने साफ तौर पर कहा इस मामले पर सरकार को अध्यादेश लाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले पर एनडीए के अलग-अलग नेताओं की अलग-अलग राय से असहजता का अनुमान लगाया जा सकता है हालांकि वह क्रीमी लेयर के मुद्दे पर एक नजर आते हैं।
जदयू नेता अशोक चौधरी का कहना है कि जहां तक क्रीमी लेयर की बात है तो यह देखना होगा कि अनुसूचित जाति के लोगों को आरक्षण किस आधार पर मिला। उनके अनुसार यह आरक्षण छुआछूत के आधार पर मिला। उनके अनुसार क्रीमी लेयर की बात पिछड़ी जातियों के संदर्भ में है। क्रीमी लेयर के मुद्दे पर तेजस्वी यादव और चिराग पासवान भी इसी तरह की राय रखते हैं।
इस परिस्थिति में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अध्यादेश लाकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों में उप वर्गीकरण को अमान्य करार देगी? अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों में उप वर्गीकरण के मामले में भारतीय जनता पार्टी ऊहापोह का शिकार नजर आती है और जनता दल (यूनाइटेड) सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आदेश के साथ नजर आता है। चिराग पासवान नरमी भरे शब्दों में पुनर्विचार की मांग करते हैं तो तेजस्वी यादव साफ तौर पर अध्यादेश लाने की मांग कर रहे हैं।
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