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पूर्णिया जिले के रुपौली विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी राजपूत समुदाय के शंकर सिंह की जीत के बाद राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा कि यह अति पिछड़ा बेटा और अति पिछड़े बेटी की हार है। उनका इशारा राजद की उम्मीदवार बीमा भारती और जदयू के उम्मीदवार कलाधर मंडल की तरफ था जिन्हें हराकर शंकर सिंह ने जीत हासिल की थी।
शंकर सिंह की जीत के बाद यह चर्चा भी हुई कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) में भारतीय जनता पार्टी के खेमे के लोगों ने समर्थन दिया था। शंकर सिंह इससे पहले 2005 में लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर विधायक चुने गए थे। राजद के उस नेता ने दरअसल यह बताने की कोशिश की थी कि अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की आपसी लड़ाई में सवर्ण उम्मीदवार ने जीत हासिल कर ली। बीमा भारती और कलाधर मंडल दोनों ईबीसी के गंगोता समुदाय से आते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि इस एक हार से यह तो नहीं कहा जा सकता कि नीतीश कुमार और जनता दल (यूनाइटेड) से ईबीसी वोटर दूर चले गए हैं लेकिन बीमा भारती की हार से आरजेडी को इस बात का एहसास ज़रूर हुआ है कि उसके पास ईबीसी वोटर का समर्थन अब भी नहीं है।
बता दें कि बीमा भारती तीन बार रुपौली से जदयू टिकट पर विधायक बनीं लेकिन सांसद बनने की चाहत में उन्होंने नीतीश कुमार का साथ छोड़कर लालू प्रसाद का हाथ थाम लिया। राजद के लिए दोहरे घाटे की बात यह हुई कि पहले पूर्णिया के संसदीय चुनाव में बीमा भारती तीसरे स्थान पर रहीं और बाद में विधानसभा उपचुनाव भी में भी तीसरे ही स्थान पर उन्हें संतोष करना पड़ा।
इस तरह साफ है कि दो ईबीसी उम्मीदवारों की लड़ाई में एक सवर्ण उम्मीदवार को जीत मिल गई।
रुपौली विधानसभा सीट में ईबीसी वोटरों की संख्या लगभग 25 फ़ीसद है जबकि राजपूत मतदाता केवल 7 फ़ीसद हैं। इससे भी यह बात कही जाती है कि भारतीय जनता पार्टी के एक वर्ग ने शंकर सिंह को मदद की और कुछ हद तक चिराग पासवान की पार्टी का भी इसमें योगदान रहा।
कई राजनीतिक विश्लेषक यह सवाल भी उठाते हैं कि क्या राजद ने बीमा भारती को पूर्णिया से लोकसभा उम्मीदवार बनाकर सही कदम उठाया जबकि वहां से पहले ही पप्पू यादव कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके थे। कुछ लोगों का कहना है कि राजद वास्तव में अपना आधार वोट बढ़ाने की कोशिश में है और इसी नीति के तहत उसने कुशवाहा समुदाय के अलावा गंगोता समुदाय के सहारे ईबीसी को भी अपनी ओर करने की कोशिश की है।
विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी के साथ राजद के गठबंधन को भी ईबीसी वोट को अपनी ओर करने की कोशिश के रूप में देखा गया। राजद के लिए परेशानी की बात यह रही कि वीआईपी के उम्मीदवार लोकसभा की उन तीनों सीटों पर हार गए जो उसे आरजेडी से गठबंधन में मिली थीं।
जिस सीट पर बीमा भारती तीन बार जीती हों वहां से उपचुनाव में राजद के उम्मीदवार के तौर पर उनकी करारी हार दरअसल पार्टी के लिए एक संकेत है कि अब भी उसे ईबीसी वोटरों का विश्वास हासिल नहीं हुआ है। यह चुनौती तेजस्वी प्रसाद यादव के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अगला विधानसभा चुनाव अगले साल अक्टूबर में निर्धारित है।
बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी की आबादी लगभग 36 फ़ीसद है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने राजनीतिक पराभव के दौर में हैं लेकिन अब भी उनसे ईबीसी का बड़ा वोट बैंक जुड़ा है। और अगर यह वोट बैंक उनसे छिटकता भी है तो भारतीय जनता पार्टी इसे लपकने के लिए पूरी कोशिश कर रही है।
दूसरी ओर, आरजेडी का अपना आधार वोट लगभग 31-32 फ़ीसद माना जाता है और उसमें इस बार कुशवाहा समुदाय का वोट भी जुड़ा लेकिन अब भी ईबीसी के कुल वोटरों के मुकाबले में यह कम ही है। पिछली बार तेजस्वी यादव की जी तोड़ कोशिश के बावजूद महागठबंधन सरकार बनने से लगभग 15 सीटों से पीछे रह गया था। अगर उसे इसकी भरपाई करनी है तो ईबीसी वोटरों का ख्याल रखना होगा। उम्मीदवारों के चयन में ईबीसी को अधिक प्रतिनिधित्व देना भी इस कोशिश में काम आ सकता है।
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