बिहार सरकार के घटक दलों बीजेपी और जनता दल युनाइटेड के बीच खींचतान तो पहले से ही चलती आ रही है, लेकिन अब वह तेज़ हो गई है। जेडीयू आक्रामक हो गया है। इसे इससे समझा जा सकता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और नीति आयोग की ओर से तैयार रिपोर्ट को सिरे खारिज कर दिया है।
बिहार सरकार के गुस्से की वजह यह है कि इस रिपोर्ट में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बिहार की आलोचना की गई है और कहा गया है कि बिहार में एक लाख लोगों पर सिर्फ छह हॉस्पिटल बेड हैं।
यह पूरे देश में सबसे कम बिस्तरों का अनुपात है। सबसे अधिक हॉस्पिटल बेड पुडुचेरी में है, जहां एक लाख लोगों पर 222 बिस्तर हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मानक दिशा निर्देशों के अनुसार, एक लाख की जनसंख्या पर कम से कम 22 हॉस्पिटल बेड होने चाहिए।
क्या है नीति आयोग की रिपोर्ट में?
केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग, नीति आयोग और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने देश के 770 ज़िला अस्पतालों का अध्ययन कर यह रिपोर्ट तैयार की है। इसमें बिहार के 36 ज़िला अस्पतालों को शामिल किया गया है।
बिहार का हाल इतना बुरा है कि सिर्फ तीन अस्पताल डॉक्टरों की उपलब्धता के मानकों को पूरा करते हैं, सिर्फ छह अस्पताल नर्सों के मानकों को पूरा करते हैं। बिहार के सिर्फ 15 अस्पतालों में मानक के अनुसार पैरामेडिकल स्टाफ़ हैं।
रिपोर्ट पर राजनीति
देश के शीर्ष 26 अस्पतालों में एक भी बिहार से नहीं है।
इस रिपोर्ट पर राजनीति भी तेज़ हो गई है। बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता और राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव ने इस पर बिहार सरकार की आलोचना की है।
उन्होंने तंज करते हुए ट्वीट किया,
“
बिहार के मुख्यमंत्री को 16 साल के अथक परिश्रम कर राज्य को नीचे से नंबर एक का राज्य बनाने पर बधाई! बिहार को 40 में से 39 लोकसभा सदस्यों और डबल इंजन की सरकार से बहुत फ़ायदा मिल रहा है।
तेजस्वी यादव, नेता, राष्ट्रीय जनता दल
नीतीश का जवाब
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जवाब बेहद दिलचस्प है। उन्होंने नीति आयोग की यह कह कर आलोचना की है, “सारे राज्यों को एक साथ रख कर तुलना नहीं की जा सकती है, धनी और ग़रीब राज्यों को एक समान नहीं समझा जाना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “
“
मुझे नहीं पता कि नीति आयोग कैसे और किसके साथ मिल कर यह रिपोर्ट तैयार करता है। बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं का पहले क्या हाल था और अब क्या हो गया? बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं में बहुत सुधार हुआ है।
नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार
बीजेपी के मंत्री ने क्या कहा?
स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा, “नीति आयोग को बिहार में 2005 के पहले की स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर भी विचार करना चाहिए था।”
मंगल पांडेय बीजेपी के विधायक हैं।
बता दें कि 2005 में बिहार में राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं और उसके पहले राज्य में लगभग 15 साल तक राष्ट्रीय जनता दल का शासन था, जिसकी काफी आलोचना होती थी।
पर्यवेक्षकों और विश्लेषकों का कहना है कि नीति आयोग की आलोचना भले ही की जाए, पर बिहार सरकार को उसकी बातों पर गौर करना चाहिए।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की बिहार शाखा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉक्टर अजय कुमार ने कहा, “बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार तो हुआ है, पर इसमें अभी भी बहुत खामियाँ हैं।”
कोरोना मौतों से खुली पोल
बता दें कि बिहार में कोरोना की दूसरी लहर में मरने वालों की संख्या चौंकाने वाली थी। दूसरी लहर के दौरान क़रीब 75 हज़ार लोगों की मौतें कैसे हुईं, इसका कोई अंदाज़ा नहीं है। यह एक रिपोर्ट में दावा किया गया था।
दरअसल, बिहार में जनवरी-मई 2019 में लगभग 1.3 लाख मौतें हुई थीं। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के नागरिक पंजीकरण प्रणाली के आँकड़ों के अनुसार 2021 में जनवरी से मई के बीच यह आँकड़ा क़रीब 2.2 लाख रहा। यह पिछले साल से क़रीब 82 हज़ार ज़्यादा है।
इसमें से आधे से ज़्यादा यानी क़रीब 62 फ़ीसदी की बढ़ोतरी इस साल मई में दर्ज की गई थी। यह वह दौर था जब कोरोना संक्रमण अपने शिखर पर था।
क्या कहते हैं आँकड़े?
बिहार सरकार के आँकड़ों के अनुसार, इस साल जनवरी से मई के बीच कोरोना से क़रीब 7700 मौतें हुईं। इसका मतलब है कि जनवरी-मई के दौरान पिछले साल से तुलना करने पर इस साल क़रीब 75,000 मौतें ज़्यादा हैं।
यह रिपोर्ट इस संदर्भ में चौंकाने वाली है क्योंकि कोरोना से मौत के आँकड़े कम दर्ज किए जाने की शिकायतें आ रही हैं। ऐसी शिकायतें देश भर के कई राज्यों से आई हैं। बिहार में भी पहले ऐसी रिपोर्ट आई थी और पटना हाई कोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया था। इसके बाद बिहार सरकार ने आँकड़ों को संशोधित किया था।
ऐसे में नीति आयोग की रिपोर्ट चौंकाने वाली नहीं है। पर बिहार सरकार न इसे मानने को तैयार है न ही इससे कोई शिक्षा लेने को।
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