बिहार में पिछले कुछ हफ्तों से ताबड़तोड़ हत्याओं और लूट का दौर जारी है और इस बीच नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने विधानसभा के परिसर में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से कहा कि नीतीश कुमार के 20 साल के शासनकाल में बिहार में 60 हजार लोगों की हत्या हुई है।
दिलचस्प बात यह है कि पटना के अखबारों ने इस दावे को सुर्खी में जगह नहीं दी और कुछ अखबारों ने तो सिरे से अपराध की इस संख्या को ही गायब कर दिया। दूसरी ओर नीतीश कुमार की क्राइम मीटिंग की बैठक और उसमें यह दावा कि अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा, पहले पन्ने की सबसे बड़ी खबर बनी हुई है।
ध्यान रहे कि कुछ ही दिन पहले आरा में तनिष्क शोरूम में 25 करोड़ रुपए के जेवरात की लूट की खबर आई थी। इसके बारे में बाद में पुलिस ने दावा किया कि 10 करोड़ की ही लूट हुई है। इससे कुछ ही महीने पहले पूर्णिया के तनिष्क शोरूम में भी तीन करोड़ के जेवर लूट लिए गए थे। होली के आसपास अररिया और मुंगेर में दो एएसआई की पिटाई के बाद मौत की खबर भी आ चुकी है। इसके अलावा आधा दर्जन जगहों पर पुलिस पर हमले हुए हैं।
पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद के वरिष्ठ नेता तेजस्वी यादव ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ‘आधिकारिक आंकड़े’ का हवाला देकर दावा किया कि 20 वर्षों के नीतीश राज में 60 हजार हत्याएं हुईं है। इसी तरह उन्होंने कहा कि बिहार में पिछले 20 वर्षों में 25 हजार से ज्यादा रेप हुआ है। उन्होंने कहा कि पुलिस वालों की सबसे अधिक पिटाई और हत्या भी एनडीए के शासनकाल में हुई है।
तेजस्वी ने कहा कि पिछले कुछ दिनों में अररिया और मुंगेर में एएसआई की हत्या हुई। भागलपुर, नवादा, पटना, मधुबनी और समस्तीपुर में पुलिस टीम पर जानलेवा हमला हुआ जिसमें पुलिस को पीटा गया है।
ध्यान रहे कि बिहार में गृह मंत्रालय का जिम्मा भी नीतीश कुमार ही संभाल रहे हैं। ऐसे में तेजस्वी यादव ने सवाल किया, “अब इस अराजक स्थिति पर सीधा सवाल है कि कहां है कानून व्यवस्था? कहां हैं बिहार के गृहमंत्री? क्या वो अचेत हैं?” तेजस्वी ने कहा, “मुख्यमंत्री अपराधियों के सामने नतमस्तक हो चुके हैं। अगर आज किसी और की सरकार होती तो हाय तौबा मच गया होता। ब्रेकिंग न्यूज पर ब्रेकिंग न्यूज चल रही होती।”
सोमवार को विधानसभा में भी विपक्ष ने बिहार में कानून व्यवस्था की गिरती स्थिति के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। विपक्ष का कहना है की होली के दौरान ही कम से कम 22 लोगों की हत्याएं हुई हैं।
नीतीश कुमार 2005 के पहले के शासनकाल में राज्य की विधि व्यवस्था को जंगल राज बताते थे और अखबारों में भी खबरों को उसी तरह परोसा जाता था। 2005 से पहले बिहार के अखबारों में कई जगह के अपराधों को मिलाकर एक बड़ी खबर बनाई जाती थी लेकिन आजकल अपराध की खबरें अंदर धकेल दी जाती हैं।
एक वरिष्ठ पत्रकार ने याद दिलाया कि बिहार की सीमा पर उत्तर प्रदेश में एक एएसआई की हुई हत्या की खबर बड़े-बड़े हेडलाइन में छापी गई थी लेकिन आज दो-दो एएसआई की हत्या हुई और उस खबर पर कोई गंभीर चर्चा नहीं। उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के शासन के दौरान अपराध के बारे में विपक्षी नेताओं के दावों को पहले पन्ने पर प्रमुख स्थान दिया जाता था लेकिन अभी तेजस्वी के ऐसे गंभीर आरोप को भी नजरअंदाज कर दिया गया। अभी हत्या और लूट की अक्सर खबरें अंदर के पन्नों पर छापी जाती हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने भाषणों में अक्सर यह कहते हैं कि 2005 के पहले लोगों का शाम के बाद चलना फिरना नहीं होता था लेकिन अपने शासनकाल में हुई हत्याओं और दूसरे अपराध के बारे में वह कोई जवाब नहीं देते। नीतीश कुमार और उनके समर्थक पहले तो यह दावा करते हैं कि राज्य में अपराध नहीं है, फिर यह कहते हैं कि राज्य में संगठित अपराध नहीं है और अंत में यह दावा करते हैं कि उनके काल में अगर अपराध होता है तो उस पर तुरंत कार्रवाई होती है।
अब जबकि तेजस्वी यादव ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से इतनी हत्याओं और रेप के बारे में बात की है तो एनडीए के किसी नेता ने अब तक इसके जवाब में कुछ नहीं कहा है। ऐसा लगता है कि बिहार के आगामी चुनाव में कानून व्यवस्था को एक बड़ा मुद्दा बनाने की विपक्ष की कोशिश के सामने फिलहाल नीतीश कुमार और उनके सहयोगी बहुत सहज नहीं हैं। इसीलिए नीतीश कुमार अपराधियों को नहीं बख्शने का बयान दे रहे हैं और केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए एक बड़े पुलिस अधिकारी को वापस बाहर बुला रहे हैं।
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