पटना से मुज़फ्फरपुर होते हुए मधुबनी और वहां से मोतिहारी के सफर के दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग बुरे हाल में मिले। ट्रकों पर लदे दिल्ली की तरफ जाते मजदूर मिले। बाजारों में परेशान हाल व्यापारी मिले। महंगाई की शिकायत करते आम लोग मिले। बाढ़ से तबाह खेत मिले। जो नहीं मिला वह था बिहार का चुनाव।

नीतीश कुमार के समर्थन में लोग तर्क देते हुए मिले लेकिन उनकी बातों में थकावट और असंतोष भी मिला। नीतीश कुमार के शुरू के कामों की खूब तारीफ भी मिली लेकिन इस साल हुई परेशानी के लिए कई लोगों ने उन्हें अपशब्द भी कहे। कई लोगों ने यह तर्क दिया कि सामने वाला नीतीश से बेहतर होगा तब ही न बदलिएगा।
न कोई झंडा-पताका, न कोई लाउडस्पीकर, न प्रचार-प्रसार। यह माहौल कहीं से कुछ भी यह इशारा नहीं कर रहा था कि अगले 20 दिनों के अन्दर बिहार में नयी सरकार बननी है। किसी को इस बात में दिलचस्पी लेते नहीं देखा कि नीतीश कुमार जाएंगे या रहेंगे। कोई यह नहीं बतिया रहा था कि चिराग पासवान एनडीए से अलग हट गये हैं तो क्या होगा।