अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का जो निर्णय आया है, वह तो सबको समझ में आ गया है कि विवादित ज़मीन हिंदू पक्ष को दे दी जाए। लेकिन कोर्ट ने ऐसा निर्णय क्यों दिया, किस आधार पर दिया, इसको लेकर अधिकतर लोगों के दिमाग़ में तसवीर साफ़ नहीं है। जो इस निर्णय से ख़ुश हैं, वे समझते हैं कि कोर्ट ने यह फ़ैसला इसलिए दिया कि मसजिद जहाँ बनाई गई है, वहाँ पहले एक मंदिर था और पीड़ित (हिंदू) पक्ष के साथ न्याय करने के लिए कोर्ट ने मंदिर वाली जगह हिंदुओं को दे दी। एक लाइन में कहें तो कोर्ट को इस बात के सबूत मिले कि मसजिद बनने से पहले वह जगह हिंदुओं की ही थी, इसीलिए वह जगह उसके असली मालिक यानी हिंदुओं को दे दी।
अयोध्या: कैसे मुसलिम पक्ष की दलील ने दिलवाई हिंदू पक्ष को ज़मीन?
- अयोध्या विवाद
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- 11 Nov, 2019

सुप्रीम कोर्ट ने फिर किस आधार पर विवादित ज़मीन हिंदू पक्ष को दे दी? इसका जवाब सुप्रीम कोर्ट के एक हज़ार से भी ज़्यादा पेज वाले आदेश में है। आदेश पढ़ने पर पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला वास्तव में मुसलिम पक्ष की एक दलील के आधार पर ही आया है। यानी मुसलिम पक्ष ने विवादित ज़मीन पर क़ब्ज़े के लिए जो तर्क दिया, उसी तर्क के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष को यह ज़मीन दे दी।
दूसरी तरफ़ जो इस निर्णय से नाख़ुश हैं, वे कह रहे हैं कि हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मसजिद वाली जगह पर पहले मंदिर था लेकिन उसने यह भी तो कहा है कि मसजिद बनाने के लिए मंदिर को तोड़ा गया, इसका कोई सबूत नहीं है। साथ ही साथ कोर्ट ने यह भी कहा है कि मसजिद वाली जगह पर पहले मंदिर था, इस आधार पर हिंदू पक्ष का उसपर कोई क़ानूनी अधिकार नहीं बनता।
तो जब कोर्ट मानता है कि इसका कोई सबूत नहीं है कि मंदिर तोड़कर मसजिद बनी, और वह यह भी मानता है कि यदि उस ज़मीन पर पहले से कोई (टूटा-फूटा) मंदिर था तो भी उस आधार पर हिंदुओं का उसपर कोई क़ानूनी अधिकार नहीं बनता, तो फिर किस आधार पर उसने ज़मीन हिंदू पक्ष को दे दी?
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश