पिछली कड़ी में आपने पढ़ा कि किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया। इस कड़ी में हम धार्मिक सबूतों की बात करेंगे।
अयोध्या: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक भी धर्मग्रंथ राम का जन्मस्थान नहीं बता सका
- अयोध्या विवाद
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- 12 Nov, 2019

पिछली कड़ी में हमने जाना कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में अपना फ़ैसला किस आधार पर दिया है। आधार था कि इस विवादित संपत्ति पर किस पक्ष का ज़्यादा लंबा और विस्तृत नियंत्रण रहा। आज हम उनमें से कुछ सबूतों के बारे में बात करेंगे जिनके बल पर कोर्ट ने यह निर्णय किया और जाँचेंगे कि क्या वे सबूत पर्याप्त थे।
शुरुआत हमें 1528 से करनी होगी जब यह मसजिद बनी या (कुछ स्रोतों के अनुसार) उसका बनना शुरू हुआ। तब यहाँ क्या स्थिति थी? क्या तब वहाँ राम का कोई मंदिर था?
इसके बारे में हमें अगर कोई जानकारी दे सकता है तो वही जो उस दौर में वहाँ रहा हो या वहाँ गया हो। कोर्ट की कार्रवाई में इस सिलसिले में दो नाम आए। एक, गुरु नानक का, दूसरा गोस्वामी तुलसीदास का।
कोर्ट ने गुरु नानक की जन्म साखियों का उल्लेख करते हुए लिखा है -
‘यह सच है कि जन्म साखी के जो अंश दस्तावेज़ के रूप में पेश किए गए हैं, उनमें ऐसी कोई सामग्री नहीं है जिससे राम जन्मभूमि की सही-सही जगह का पता चलता हो। लेकिन गुरु नानक देव जी का राम जन्मभूमि के दर्शन के लिए अयोध्या आना एक घटना है जिससे पता चलता है कि 1528 से पहले भी तीर्थयात्री जन्मभूमि के दर्शन के लिए जाया करते थे। 1510-11 ईसवी में गुरु नानक देव जी की यात्रा और उनका भगवान राम की जन्मभूमि के दर्शन करना हिंदुओं की आस्था और विश्वास को साबित करते हैं।’ (देखें - सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, परिशिष्ट, पैरा 71)
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश